इंदौर में 80 साल की महिला को 28 अगस्त की रात सांस में तकलीफ होने पर मेदांता अस्पताल ले गए। वहां एक्सरे करने पर पता चला कि निमोनिया है। बेड नहीं होने से अरविंदो अस्पताल भेजा। वहां भी दो घंटे तक बेड नहीं मिला। फिर इंडेक्स ले गए। वहां भी बेड नहीं मिला। वहां से ग्रेटर कैलाश अस्पताल ले गए। बावजूद महिला ने दम तोड़ दिया।
यह काेई एक वाक्या नहीं है, ऐसे ढेरों दुखद मामले आपको कोरोनाकाल में सुनाई दे जाएंगे, जहां बेड नहीं मिल पाया और मिला भी तो भर्ती होने के एक दिन बाद ही मरीज ने दम तोड़ दिया। कोरोना संक्रमण से होने वाली मौत के कारणों का पता लगाने के लिए प्रशासन डेथ-ऑडिट करवा रहा है। जिसके लिए 8 सदस्यीय समिति बनाई गई है। इस समिति ने भी इस बार माना है कि मरने वाले कुछ मरीज ऐसे थे जो रातभर कई अस्पताल भटके हैं। उन्हें बेड नहीं होने का बताकर रैफर कर दिया गया। कुछ तो 5 से 7 अस्पताल भटके थे, जिसके कारण कुछ की एक या दो दिन में ही मौत हो गई। इनमें से 90 फीसदी डायबिटीज, अस्थमा और हाइपरटेंशन सरीखी पुरानी बीमारियों से भी पीड़ित थे।
इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा यह भी हुआ डेंगू के एक मरीज को कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। बावजूद अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई। अस्पतालों में भटके, लेकिन किसी ने भर्ती नहीं किया। दो दिन बाद वह पॉजीटिव आ गई, लेकिन तब तक उसकी मौत हो गई। धार, झाबुआ, बड़वानी से आए मरीजों को भी यहां लाने में देर की गई। समिति ने सैंपलिंग और क्वारैंटाइन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कहा गया है। इसमें तीनों मेडिकल कॉलेजों को यह निर्देश दिए गए हैं कि यह जानकारी ली जाए कि मरीजों को क्यों निजी अस्पतालों से रैफर किया जा रहा है। इसके अलावा यह टिप्पणी भी की गई है कि मरीज निजी अस्पताल जाना इसलिए पसंद कर रहे हैं, क्योंकि वहां सफाई और सुविधाएं सरकारी अस्पतालों से बेहतर है।
केस 1: 64 वर्षीय महिला को चार दिन से बुखार आ रहा था। डेंगू की जांच कराई तो डेंगू की पुष्टि हुई। फेरिटिन लेवल भी 1600 हो गया। प्लेटलेट्स भी कम हो गए थे। दवा चल रही थी। मरीज काे सर्दी-जुकाम भी नहीं था और सांस लेने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। यानी कोरोना बीमारी के कोई लक्षण नहीं थे। 29 अगस्त को अचानक सीने में दर्द हुआ तो उन्हें चोइथराम अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टर ने कहा कि कोरोना नहीं है। अभी भर्ती नहीं कर सकते। वहां भर्ती करने से मना किया। यही स्थिति एप्पल हॉस्पिटल में भी हुई। इसके बाद परिजनों ने इंडेक्स अस्पताल में बात की। वहां पर भी मना कर दिया गया। परिजन फिर मयूर अस्पताल ले गए और महिला को भर्ती करवाया गया। 30 अगस्त को कोरोना वायरस जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई, लेकिन उसी दिन उनकी मौत हो गई। मरीज को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और मोटापा की समस्या थी। बीमार होने के बाद अस्पताल में यह सिर्फ एक ही दिन भर्ती रहे।
केस 2: इसी तरह 58 साल के मरीज को जब सांस लेने में तकलीफ हुई तो उन्हें विशेष हॉस्पिटल ले जाया गया। यह अस्पताल नेमावर रोड पर शिफ्ट हो गया था तो परिजन सुयश अस्पताल ले गए। वह भर्ती करने से मना कर दिया गया। इसके बाद से सैम्स अस्पताल ले गए। जहां बैठ की समस्या के कारण भर्ती नहीं किया गया। परिजन गोकुलदास अस्पताल ले गए तो वहां बताया गया कि बेड खाली हैं, लेकिन ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं है। इसके बाद परिजन राजश्री अपोलो अस्पताल ले गए। वहां भी बेड खाली नहीं था। मेदांता अस्पताल में फोन करने पर पता चला बेड खाली नहीं है। 29 अगस्त को मरीज को सिनर्जी अस्पताल में भर्ती किया गया। जहां पर ऑक्सीजन सेचुरेशन 30 फीसदी बताया गया। 29 अगस्त की सुबह ही उनका ऑक्सीजन लेवल 80 से 87 फीसदी हो गया था, लेकिन उसी दिन उसकी मौत हो गई। मरीज का अस्पताल स्टे केवल एक ही दिन पाया गया।