इंदौर मेट्रो ट्रेन का रूट 31.55 किमी की पूरी रिंग है। इसमें से पहले चरण में आईएसबीटी से लेकर मुमताज बाग कॉलोनी तक 5.27 किमी के सिविल कार्य का ही टेंडर हुआ है। इस हिस्से में भी हम अब तक एक पिलर तक खड़ा नहीं कर पाए हैं, जबकि यह काम सबसे आसान सिविल वर्क के अंतर्गत आता है। पूरे प्रोजेक्ट में हमें 23 एलीवेटेड स्टेशन, 6 अंडरग्राउंड स्टेशन और कोच जैसे कठिन काम भी बाकी हैं। नागपुर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के एमडी ब्रजेश दीक्षित से भास्कर ने जाना कि आखिर मेट्रो प्रोजेक्ट में अभी किस-किस तरह की चुनौतियां आना बाकी हैं।
उन्होंने बताया मेट्रो प्रोजेक्ट में सबसे आसान काम ही सिविल वर्क का होता है। इसके बाद तो असली चुनौतियां शुरू होंगी। रेलवे के एलीवेटेड और अंडरग्राउंड स्टेशन के साथ ही कोच सहित बहुत से काम हैं, जिनमें विशेषज्ञता के साथ समर्पण की जरूरत है। नागपुर मेट्रो की खासियत यह है कि वहां एक भी स्टेशन अंडरग्राउंड नहीं है। मेट्रो की प्लानिंग ही ऐसी की गई कि अंडरग्राउंड जाने की जरूरत ही नहीं पड़े।
तस्वीर नागपुर मेट्रो प्रोजेक्ट की। महज डेढ़ साल में वहां सिविल वर्क, सेगमेंट, पटरी और इलेक्ट्रिफिकेशन, इंस्पेक्शन और ट्रायल के साथ ही स्टेशन तैयार कर कोच के साथ ट्रायल रन भी कर लिया गया। ट्रायल को जॉय राइड का नाम दिया।
इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट में अभी 5 तरह के बड़े काम बाकी हैं
1. सेगमेंट, पटरी और इलेक्ट्रिफिकेशन : बेसिक ढांचा खड़ा होने के बाद तकनीकी काम शुरू हो जाता है। इसमें दिल्ली मेट्रो के अधिकारी आकर जांच के बाद गर्डर के ऊपर सेगमेंट तैयार करवाते हैं। इसके बाद पटरी बिछाई जाती है और फिर सिग्नल लगते हैं। आदर्श स्थिति में पूरे ट्रैक पर सबसे पहले सेगमेंट तैयार होता है। उसके बाद पटरी और फिर सिग्नल लगते हैं, जबकि नागपुर मेट्रो की टीम ने तीनों काम एकसाथ शुरू किए, जिससे उसका पूरा ट्रैक तैयार होता गया।
2. सिविल वर्क : मेट्रो के पिलर खड़े करने के साथ गर्डर डालना सबसे बेसिक काम है। नागपुर ने भी इंदौर की तरह ही सबसे पहले 5 किमी के जमीनी रूट पर काम शुरू किया था।
3. स्टेशन तैयार करना : इसके बाद स्टेशन का काम शुरू होता है। इसे तैयार होने में कम से कम छह महीने तो लगते ही हैं। नागपुर की टीम को भी सबसे ज्यादा समय इसी काम में लगा, क्योंकि स्टेशन के साथ बहुत सी सुविधाएं जुड़ी होती हैं।
4. इंस्पेक्शन और ट्रायल : तैयार रूट की जांच के लिए फिर दिल्ली मेट्रो की टीम आती है और बारीकी से जांच करती है। इस दौरान बार-बार रूट की मजबूती का ट्रायल होता है। इसके बिना कोई काम आगे नहीं बढ़ता।
5. कोच के साथ ट्रायल रन : नागपुर मेट्रो के सभी कोच चाइना से तैयार होकर आए हैं। मेट्रो का काम शुरू होने के साथ ही सभी कोच के ऑर्डर दिए जा चुके थे। यही कारण रहा कि ट्रैक तैयार होने के डेढ़ साल में ही नागपुर मेट्रो की ट्रायल राइड शुरू हो गई। इसे जॉय राइड का नाम दिया गया।