विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक अधिक मास में दान देने की परंपरा है। इस महीने में किए गए दान का 10 गुना फल मिलता है। पुरुषोत्तम मास के देवता भगवान विष्णु हैं। इसलिए इस महीने में उनकी कृपा पाने के लिए पूजा में नैवैद्य के रूप में पुआ बनाकर चढ़ाना चाहिए। फिर इसका प्रसाद दान देना चाहिए। वेदों और उपनिषदों के साथ ही कई पुराणों और महाभारत में भी दान का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि किस दान का कैसा फल मिलता है। वहीं, दान करने का मनोवैज्ञानिक महत्व भी है। इसलिए अधिक मास में भी दान देने की परंपरा है।
वेदों और उपनिषदों में दान
वेदों में बताया गया है कि धर्म की उन्नति के लिए दिया गया दान उत्तम होता है। इसके अलावा प्रसिद्धि पाने या स्वार्थ के लिए किया गया दान मध्यम होता है। शुक्ल यजुर्वेद के बृहदारण्यक उपनिषद् के मुताबिक ब्रह्मा ने मनुष्यों के लिए उपदेश में द अक्षर कहा। तब मनुष्यों ने उसका अर्थ दान करो समझा। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि तुम सही समझे। इसके अलावा तैत्तिरीय उपनिषद में कहा गया है कि श्रद्धा, लज्जा या भय की भावना से भी किए गए दान का फल मिलता ही है।
पुराणों में दान
स्कंद पुराण के प्रभासखंड में महादान का महत्व बताया गया है। इनमें गाय, सोना, चांदी, रत्न, विद्या, तिल, कन्या, हाथी, घोड़ा, शय्या, वस्त्र, भूमि, अन्न, दूध, छत्र और जरूरी चीजों के साथ घर का दान करना चाहिए। इनके अलावा अग्नि पुराण का कहना है कि अधिक मास में सोना, अश्व (घोड़ा), तिल, हाथी, रथ, भूमि, घर, कन्या और कपिला गाय का दान करना चाहिए। गरुड़ पुराण कहता है कि दान न देने से प्राणी दरिद्र होता है और दरिद्र होने के बाद पाप करता है। श्रीमद्भागवत पुराण का कहना है कि जीवन के लिए जरूरी संपत्ति, चीजें और धन रखनी चाहिए। अन्य का दान कर देना चाहिए। महाभारत में बताया गया है कि जो धन प्राप्त होता है उसका भोग या संग्रह करने से तो दान देना अच्छा है।
दान का मनोविज्ञान
दान करने के कई मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलते हैं। हॉवर्ड बिजनेस स्कूल के मनोविज्ञान की प्रोफेसर मिशेल नॉर्टन और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ सोंजा ल्युबोमिरस्कि ने एक जर्नल में लिखा है कि दान करने में जो खुशी मिलती है। वो खुद पर खर्चा करने की खुशी से ज्यादा होती है। इसके अलावा टेक्सास यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक आर्ट मार्कमेन का भी कहना है कि दान करने पर मिलने वाली खुशी का शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है। दान करने से मन और विचारों में खुलापन आता है। दान से मोह की शक्ति कमजोर पड़ती है। हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दान करने से इंसान का अहम और मोह खत्म होता है। दान करने से मन की कई ग्रंथियां खुलती है और अपार संतुष्टि मिलती है। दान करने से कई तरह के दोष भी खत्म होते हैं।
दान का फल
धर्म ग्रंथों के मुताबिक कुछ दान का फल इसी जन्म में मिल जाता है तो कुछ दान का फल अगले जन्म में मिलता है। जिसके प्रभाव से जीवन में अचानक बड़े बदलाव हो जाते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जल दान तृप्ति मिलती है। अन्न दान से अक्षय सुख, तिल के दान से संतान सुख, भूमि दान से मनचाही चीज मिल सकती है। सोने का दान करने से लंबी उम्र मिलती है। घर का दान करने से उत्तम भवन और चांदी का दान देने से अच्छा रूप मिलता है। इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि अपनी स्थिति को देखते हुए दान देना चाहिए।