प्रदेश में शुक्रवार को कोरोना संक्रमितों की संख्या एक लाख के पार (100458) हो गई है। संक्रमण की रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि इनमें से 50 हजार केस सिर्फ 29 दिन में बढ़ गए। जबकि पहले के 50 हजार बढ़ने में 151 दिन लगे थे। तब 21 अगस्त को 50640 संक्रमित थे। शुक्रवार को भी 2552 नए केस मिले, जो कि बीते छह माह में किसी एक दिन का सबसे बड़ा आंकड़ा है। रफ्तार यही रही तो 10 नवंबर के आसपास दो लाख संक्रमित हो सकते हैं।
24 नई मौतों के साथ कुल मृतकों का आंकड़ा 1901 पर पहुंच गया है। चौंकाने वाली बात ये है कि संक्रमण बढ़ने के बावजूद रिकवरी रेट तेजी से बढ़ रहा है। गुरुवार को यह 75.98% था, जो शुक्रवार को 76.60% हो गया। यह देश के रिकवरी रेट 79.06% से 2.46% ही कम है। अब मप्र देश में 16वां ऐसा राज्य बन गया है, जहां एक लाख से अधिक संक्रमित हो गए हैं।
इंदौर में एक्टिव केस सबसे ज्यादा तो ग्वालियर में संक्रमण दर
अनलॉक-4 : सबसे ज्यादा संक्रमण दर, सबसे कम डेथ रेट
भोपाल में पहले 116 दिन में थे 4088 केस, सितंबर के 18 दिन में ही 4142 मिल गए
इधर, राजधानी के 291 नए संक्रमितों में पीएचई मंत्री एदल सिंह कंसाना और भाजपा प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी भी शामिल हैं। 15 मरीजों की मौत हो गई, इनमें 5 भोपाल, 5 होशंगाबाद और 5 अन्य शहरों के हैं। यहां सितंबर के 18 दिन में 4142 मरीज मिले हैं, जबकि इसके पहले के 116 दिन में 4088 मरीज मिले थे। अगस्त में रिकवरी रेट 102.49% थी, जो अब 89.40% रह गई है।
भोपाल में कोरोना के साढ़े छह महीने
19% विधायक हो चुके संक्रमित
कंसाना के पॉजिटिव होने के बाद संक्रमित मंत्री-विधायकों की संख्या 41 हो चुकी है। यहां विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या 203 का 19% है।
एक्सपर्ट- डॉ. लोकेंद्र दवे, स्टेट कोरोना को-ऑर्डिनेटर
बड़ा सवाल - कोरोना अब तेजी से क्यों फैल रहा?
जवाब : डिस्चार्ज हो चुके मरीजों का इलाज पर गैर जिम्मेदाराना बयान दूसरों को लापरवाह बना रहा
1.इलाज के बाद इलाज का दुष्प्रचार
- कोरोना मरीजों के तेजी से बढ़ने में सबसे बड़ी भूमिका बिना लक्षण वाले मरीज अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद बयान देकर निभा रहे हैं। इन मरीजों में संक्रमण का स्तर सामान्य से कम होता है। इस कारण कोविड पॉजिटिव होने के बाद इनकी तबीयत ज्यादा नहीं बिगड़ती। अस्पताल में डॉक्टर, इस श्रेणी के मरीजों को केवल एहतियातन बुखार को नियंत्रित रखने और विटामिन सी सहित दूसरी सामान्य दवाएं देते हैं। डिस्चार्ज होने के बाद ये मरीज बाहर कहते हैं कि कोरोना से कुछ नहीं होता। अस्पताल में एक-दो दवाएं खानापूर्ति के लिए खिलाई जाती हैं। ऐसे मरीजों के बयान आम आदमी को संक्रमण के प्रति लापरवाह बनाते हैं।
2.तब मरीज कम थे, देखरेख ज्यादा थी, अब स्थिति उलट है
- मई-जून में प्रदेश में मरीज कम थे। लेकिन, संक्रमण को रोकने के लिए एक्टिविटी ज्यादा हो रही थी। आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, नगर निगम, जिला प्रशासन, पुलिस बिना मास्क घूमने वालों पर जुर्माना लगा रही थी। रैपिड रिस्पॉन्स टीमें पॉजिटिव मरीज की कॉलोनी में 20 से 50 मकानों में सैंपल ले रही थीं। अब मरीजों की संख्या ज्यादा है और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, पेशेंट के मकान का सैनिटाइजेशन, फीवर सर्वे की एक्टिविटी कम हो रही है।
3.बड़े शहरों में घनी आबादी
- संक्रमण फैलने की बड़ी वजह भोपाल जैसे शहरों की घनी आबादी होना है। कोविड व्यक्ति भर्ती होने के पहले परिवार के एक से दो सदस्यों को संक्रमित कर चुका होता है। इसी कारण अप्रैल से जून के बीच जहांगीराबाद व मंगलवारा में केस बढ़े थे।
4. गाइडलाइन न मानना
- घर, ऑफिस, चाय की गुमटी और दूसरे स्थानों पर कोरोना से बचने की गाइडलाइन (सोशल डिस्टेंसिंग, सेनीटाइजेशन, मास्क लगाने की अनिवार्यता) मानने की सलाह 90 प्रतिशत लोग देते हैं। लेकिन जब इसके अमल की जरूरत होती है, तो अवेयरनेस सिर्फ 40 फीसदी बचती है।
कोरोना वाॅरियर्स को सलाम- सीएए आंदोलनों में ड्यूटी में संक्रमित हुए, जान गंवाने वाले पहले कोरोना योद्धा
देवेंद्र चंद्रवंशी (7 जुलाई 1977-19 अप्रैल 2020)
को रोना संक्रमण काल में इंदौर के थाना जूनी इंदौर टीआई देवेंद्र कुमार चंद्रवंशी को 31 मार्च को कोरोना के लक्षण मिले थे और 19 अप्रैल की रात उनकी मौत हो गई। देवेंद्र दिसंबर से लेकर मार्च तक लगातार सीएए और एनआरसी के खिलाफ चल रहे आंदोलन में घंटों नौकरी करते रहे थे। शांति स्थापित करने के लिए उन्होंने इस दौरान कई मुस्लिम संगठनों के नेताओं के साथ बैठकें भी कीं। शहर में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति न बिगड़े, इसके लिए वे बिना आराम किए ड्यूटी करते रहे। इसी दौरान उन्हें संक्रमण हुआ। उनकी पत्नी सुषमा व दो बेटियां भी इसकी चपेट में आ गई थीं। उनकी मौत के बाद सरकार की मदद से उनकी पत्नी को मप्र पुलिस में सीहोर में सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। देवेंद्र ने टीआई रहते हुए कई गरीब परिवार की बच्चियों की स्कूल फीस जमा कर पढ़ाया और आर्थिक मदद की।