वैक्सीन का काम कर रहा मास्क, 90%वायरस रोक लेता है; इंटरनेशनल जर्नल की रिपोर्ट में दावा

Posted By: Himmat Jaithwar
9/14/2020

भोपाल। जो लोग नियमित रूप से और ठीक ढंग से (मुंह और नाक दोनों को कवर करने वाला) फेस मास्क लगाते हैं, उनके लिए अच्छी खबर है। मास्क पहनने वालों के शरीर में वायरस की काफी कम मात्रा ही प्रवेश कर पाती है। इस कारण वायरस लोड काफी कम होता है। अपने आप ही लोगों के शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगती है। इस सिद्धांत को वैरियोलेशन कहा जाता है। जहां लोग मास्क का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं, वहां ज्यादातर कोरोना मरीज ए-सिमटोमैटिक (कोरोना के लक्षण नहीं) पाए गए हैं।

यह दावा इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की हाल ही में प्रकाशित एक ताजा शोध में किया गया है। इस रिपोर्ट को तैयार किया है अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को के स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर (मेडिसिन) मोनिका गांधी और एपिडियोमॉलिजी एंड बायोइन्फोमैटिक्स के प्रोफेसर जॉर्ज रदरफोर्ड ने। रिपोर्ट कहती है कि फेसमास्क काफी हद तक वैक्सीन जैसा ही काम कर रहा है।

आईसीएमआर के भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हेल्थ (निरेह) के निदेशक और एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. आरएन तिवारी ने बताया कि कोविड महामारी के शुरुआत से ही कहा जा रहा था कि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क का उपयोग सामाजिक वैक्सीन के रूप में कार्य करेगा। मास्क, संक्रमित मनुष्य से, वायरस को वातावरण में फैलने से बहुत हद तक रोकता है। कोरोना से लड़ते हुए अब तक के अनुभव में यह पाया गया है ज्यादातर संक्रमित ऐसे लोग जिनमें कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं उनमें वायरस लोड काफी कम होता है।

शरीर का इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाएगा

डॉ. डीके पाल, सीनियर एपिमियमोलॉजिस्ट विभागाध्यक्ष,
डॉ. डीके पाल, सीनियर एपिमियमोलॉजिस्ट विभागाध्यक्ष,

जीएमसी,कम्युनिटी एंड प्रिवेंटिव मेडिसिन डिपार्टमेंट, सीनियर एपिमियमोलॉजिस्ट विभागाध्यक्ष,डॉ. डीके पाल ​​​​​​​ने कहा कि मास्क कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन को रोकता है। यदि आप ऐसे एनवायरोमेंट में हैं, जहां कोरोना का संक्रमण मौजूद है, लेकिन आपने मास्क लगाया हुआ है तो वायरस का काफी कम एमाउंट शरीर के अंदर जा पाएगा। इससे सिर्फ सबक्लीनिकल इन्फेक्शन होगा, वायरस के कम लोड के कारण शरीर का इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाएगा। इस कारण सिर्फ माइल्ड (मामूली) या एसिम्टोमैटिक इन्फेक्शन होगा।

मास्क का इस्तेमाल ही सबसे कारगर

डॉ. सरमन सिंह
डॉ. सरमन सिंह

माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट और डायरेक्टर एम्स,भोपाल के डॉ. सरमन सिंह ने बताया कि यह पहली स्टडी है जो वैरियोलेशन पर बात करते हुए बताती है कि कोरोना का 10 से 20 फीसदी तक मामूली संक्रमण होना भी इससे बचाव का तरीका है। यानी थ्री-प्लाई मास्क जो वायरस से 70 से 80 फीसदी तक बचाव करता है, वह भी बेहतर है। एन-95 मास्क संक्रमण से 95 फीसदी तक बचाव करता है। जापान, कोरिया व सिंगापुर जैसे देशों ने बिना वैक्सीन मास लेवल पर फेस मास्क के इस्तेमाल से कोरोना को काबू किया है।

वैरियोलेशन सिद्धांत...18वीं शताब्दी के अंत में स्माल पाॅक्स के इलाज से हुई थी शुरुआत
वैरियोलेशन सिंद्धात को वैक्सीन का जनक माना जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड के डॉक्टर एडवड जैनर ने स्मालपॉक्स (छोटी माता) के इलाज के जरिए इस सिद्धांत का पता लगाया था। निरेह भोपाल के एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. योगेश साबदे के मुताबिक वैक्सीन के से पहले स्मॉलपॉक्स के संक्रमण से लोगों को बचाने इस बीमारी से ठीक हो चुके लोगों शरीर से निकली सूखी त्वचा के मामूली हिस्से को स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा पर रगड़ दिया जाता था। इससे स्वस्थ व्यक्ति में स्मालपॉक्स वायरस का मामूली संक्रमण होता था और वायर के प्रति इम्युनिटी विकसित हो जाती है, इस कारण वह व्यक्ति बाद में बीमार नहीं पड़ता था। वैक्सीन के पहले इसी सिद्धांत का इलाज में इस्तेमाल किया गया।



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