अधिकतर लोग दूसरों के रंग-रूप को देखकर उनकी परख करते हैं, लेकिन ये सही नहीं है। किसी व्यक्ति की सही परख उसके आचरण को देखकर करनी चाहिए। इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार पुराने समय में एक राजा के महल के द्वार पर एक भिखारी आया। भिखारी ने द्वारपाल से कहा कि अपने राजा से कहना आपका भाई आया है।
द्वारपाल ने सोचा कि ये राजा का कोई रिश्तेदार हो सकता है, इसीलिए उसने राजा तक समाचार पहुंचा दिया। राजा ने भी तुरंत इस भिखारी को अपने दरबार में बुलवा लिया। भिखारी ने राजा से उसके हालचाल पूछे तो राजा ने कहा मैं ठीक हूं। आप अपने बारे में बताइए।
भिखारी ने कहा कि मैं बहुत परेशानी में हूं। मेरा महल जर्जर हो चुका है। मेरे 32 नौकर छोड़कर चले गए हैं। पांचों रानियां वृद्ध हो गई हैं। ये बातें सुनकर राजा ने भिखारी को दस स्वर्ण मुद्राएं दे दीं।
भिखारी ने राजा से कहा कि भाई इनसे मेरा कुछ नहीं होगा। मेरे राज्य की हालत खराब है। मेरे पैर जहां पड़ते हैं, वहां अकाल पड़ जाता है। अगर मेरे पैर किसी समुद्र में पड़े तो वहां का सारा पानी सूख जाता है। मेरे पैरों की शक्ति तो आपने भी देख ही ली है।
ये बातें सुनकर राजा बहुत ने भिखारी को हजार स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। ये देखकर राजा के मंत्री हैरान थे। मंत्रियों को हैरान देखकर राजा ने कहा कि ये कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। ये बहुत बुद्धिमान है।
इसने कहा था कि इसका महल जर्जर हो गया है यानी इसका शरीर वृद्ध हो गया है। 32 नौकर यानी इसके 32 दांत इसे छोड़कर चले गए हैं। पांच रानियां यानी पांच इंद्रियों काम करना बंद कर दिया है।
जब मैंने उसे 10 मुद्राएं दीं तो उसने समुद्र के बहाने मुझे ताना मारा था कि जहां वह जाता है, वहां अकाल पड़ जाता है। मैं राजा हूं, मेरे खजाने भरे पड़े हैं, उसके पैर महल में पड़ते ही मेरा खजाना सूख गया और मैंने उसे सिर्फ 10 स्वर्ण मुद्राएं दीं। बुद्धिमानी देखकर ही मैंने उसे हजार स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। हम उसे अपने दरबार में सलाहकार नियुक्त करेंगे।