खेल विभाग का खेल... कोच बन गए अधिकारी

Posted By: Himmat Jaithwar
3/9/2020

-विधानसभा में दागा गया सवाल : मलाईदार विभाग में वर्षों तक जमे रहे थे अफसर

रतलाम। जिला खेल एवं युवक कल्याण विभाग के माध्यम से जिले से प्रतिभावान खिलाडिय़ों को खोजा जाना था, मगर इस विभाग में पदस्थ अफसर वर्षों तक यहीं जमे रहकर अपने खजाने की खोज करते रहे और इसमें सफल होकर चलते बने। खेल विभाग में अब तक हुए घोटालों के खुलासे के लिए विधानसभा में सवाल उठाया गया है। इन सवालों के जवाब बाहर आते है रतलाम का जिला खेल विभाग प्रदेशभर में सुर्खियों बटोर लेगा। जिला स्तर पर शुरु की गई जांच के परिणाम भी आना अभी बाकी है। जानकारों की माने तो खेल विभाग का दायित्व संभालने वाले रतलाम, जावरा, आलोट, बाजना और सैलाना के कोच बनाम खेल अधिकारी मुख्यालाय पर काम करने और अपने विकासखंड की खेल प्रतिभाओं को निखारने की बजाय प्रायवेट स्कूल में सेवा देते है वहीं कई-कई माह तक अपने दफ्तरों में झांकते भी नही है।
खेलों के नाम पर जमकर वसूली
कई मामले ऐसे भी प्रकाश में आ रहे है जिनमे प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को विभिन्न प्रतियोगिताओं में शामिल करने के नाम पर तीन से पांच हजार रुपए तक की वसूली भी की जाती रही है। खेल विभाग की मलाई खाकर मस्त होने वाले इन कोचों के खेल का आलम यह भी है कि ये ऐसी भी प्रतियोगिताएं करवा देते है जिन खेलों का कोई वजूद ही नहीं है। स्केटिंग सहित ऐसे ही अन्य खेलों के नाम पर वसूली भी इस विभाग के काम का हिस्सा माना जाता है। खेल के नाम पर आने वाले अनुदान की स्थिति ये है कि प्रतियोगिताएं होती ही नहीं है और इनके नाम पर बिलों का भुगतान हो जाता है। इस गोरखधंधे में स्कूलों प्राचार्यों की भी सहभागिता रहती आई है।
खेल विभाग के माध्यम से रजिस्ट्रेड संस्थाओं को कितना अनुदान कब-कब दिया जाता रहा है इस मामले की जांच भी कई तरह के खुलासे कर सकती है। इस विभाग में प्रदेश की नई सरकार ने भी नया कारनामा करते हुए राजनीति के आधार पर कुछ नियुक्तियां की है। आम चर्चा है कि रतलाम को आधार मानकर अब पूरे मध्यप्रदेश में सरकार राजनीतिक आधार भी खेल एवं युवा कल्याण विभाग में नियुक्तियां करेगी।
विभाग के माध्यम से होने वाले आयोजित होने वाली खेल प्रतियोगिताओं में जितनी राशि खर्च की जाना चाहिए उससे Óयादा राशि खेल प्रतियोगिता के शुभारंभ और समापन खर्च की जाती है ताकि इस मौके पर आने वाले अतिथियों (नेताओं) की चरणचंपी अ'छे से की जा सके।
उधर खेल एवं युवक कल्याण विभाग की तरफ से नियुक्त रहे जिला खेल अधिकारी के कार्यकाल में हुई आर्थिक और अन्य तरह की अनियमितताओं की जांच जिला पंचायत सीईओ द्वारा गठित टीम कर रही है। इसी मामले को लेकर आलोट क्षेत्र के विधायक मनोज चावला ने भी इस मामले को विधानसभा में उठाने का फैसला किया है। उन्होंने इसी माह के दूसरे पखवाड़े में शुरू होने वाले विधानसभा सत्र से पहले विधायकों द्वारा लगाए जाने वाले प्रश्न में इस प्रश्न को विधानसभा में पहुंचा दिया है। उनका कहना है कि जिला खेल अधिकारी के पूरे कार्यकाल में हुई सारी खरीदारी, स्टोर रिकार्ड सहित तमाम जानकारी उन्होंने विधानसभा के माध्यम से मांगी है। साथ ही इसकी पूरी निष्पक्ष जांच की मांग भी जिला प्रशासन से कर रहे हैें। तत्कालीन जिला खेल अधिकारी मुकुल राय बैंजामिन का कार्यकाल करीब पांच साल तक रहा है। बताया जाता है कि इस दौरान खेल एवं युवक कल्याण विभाग की तरफ से जिले को मिले फंड की जमकर अफरा-तफरी की गई। इसी को लेकर हुई शिकायतों के बाद जिला प्रशासन ने यह जांच बैठाई है। पिछले महीने उनका तबादला होने के बाद भी वे न तो किसी को चार्ज दे रहे थे और न ही रिलीव हो रहे थे। इस पर जिला पंचायत सीईओ ने उन्हें एकतरफा रिलीव करके सहायक जिला खेल अधिकारी के रूप में खेल शिक्षक दीपेंद्रसिंह ठाकुर को नियुक्त कर तीन सदस्यों की जांच समिति बना दी थी।
जांच भी शुरू नहीं हो पाई
बैंजामिन को एकतरफा रिलीव कर दिए जाने के बाद बैंजामिन ने अपने खास विश्वास पात्र सहयोगी मल्लखंभ प्रशिक्षक जितेंद्र धूलिया को चार्ज देकर चाबी भी सौंप दी थी। सहायक खेल अधिकारी के रूप में नियुक्त ठाकुर चार्ज लेने गए तो उन्हें ताला ही मिला था। जांच के लिए नियुक्त टीम को न तो तत्कालीन खेल अधिकारी और न ही उनके द्वारा जिसे चार्ज दिया गया था उन्होंने कोई रिकार्ड उपलब्ध कराया। इस वजह से टीम अब तक ठीक से जांच भी शुरू नहीं कर पाई है। टीम जांच के लिए दो-तीन बार कार्यालय में होकर आ चुकी है किंतु अब तक उन्हें किसी तरह का रिकार्ड नहीं मिला है।



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