ताइपे। चीन के साथ तनाव के बीच ताइवान के एक चीनी फाइटर के मार गिराने की रिपोर्ट्स आ रही है। हालांकि चीन और ताइवान में से किसी ने अभी इसकी पुष्टि नहीं की है। टीवी रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि ताइवान ने अपने एयर स्पेस में घुस आए चीनी सुखोई-35 विमान को मार गिराया है। बताया जा रहा है कि इस हमले में ताइवान ने अमेरिकी पेट्रियाट मिसाइल डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया है। खबरों में दावा किया जा रहा है कि ताइवान ने चीनी विमान को कई बार चेतावनी दी लेकिन उसके बाद चीनी विमान ताइवान के एयरस्पेस में बना रहा। इसके बाद ताइवान ने उसे मार गिराया। बताया जा रहा है कि इस घटना में पायलट घायल हो गया है। अगर यह घटना सच साबित होती है तो दोनों ही देशों में जंग की नौबत आ सकती है। बता दें कि चीन पिछले कई दिनों से ताइवान के एयरस्पेस में अपने लड़ाकू विमान भेज रहा है। ताइवान ने चीन के किसी भी हिमाकत का जोरदार जवाब देने के लिए अपनी सैन्य क्षमता को और मजबूत करने की तैयारी शुरू कर दी है। चीन के किसी भी प्रकार के आक्रामक रवैये से निपटने के लिए ताइवान की नेवी और एयरफोर्स अलर्ट पर है। राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने ताइवान के सैन्य ताकत में इजाफा करने के लिए रिजर्व सैन्य बलों को और मजबूत करने के लिए कई नई घोषणाएं की हैं। जिसके तहत रिजर्व फोर्स को ताइवानी सेना के लिए मजबूत बैकअप के रूप में विकसित किया जाएगा। ताइवान पर हमले की तैयारी में चीन, अमेरिका ने भेजे फाइटर जेट, युद्धपोत अमेरिकी सैन्य ताकत के प्रतीक यूएसएस रोनाल्ड रीगन के नेतृत्व में कैरियर स्ट्राइक ग्रुप ने विवादित दक्षिण चीन सागर में जोरदार अभ्यास किया है। अमेरिकी सेना ने एक बयान जारी करके कहा कि इस अभ्यास का मकसद अपने सहयोगियों के साथ संयुक्त भागीदारी करना है और अपनी मारक क्षमता को बढ़ाना है। साथ ही इंडो-पसफिक इलाके में स्वतंत्र और मुक्त आवागमन बनाए रखना है। अमेरिकी नौसेना ने यह अभ्यास ऐसे समय पर किया है जब चीन से इलाके में तनाव बढ़ता जा रहा है। अमेरिका ने चीन के साउथ चाइना सी पर दावे का विरोध किया है। चीन के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिए अमेरिका लगातार साउथ चाइना सी में अपने एयरक्राफ्ट कैरियर भेज रहा है। अमेरिका ने कहा है कि चीन कोरोना वायरस महामारी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है और अपने क्षेत्रीय दावे को आगे बढ़ाने में लगा है। चीन ने अमेरिका के इस अभ्यास का विरोध किया है। यही नहीं चीन अब तटीय इलाके में अपने सैन्य ठिकानों की संख्या को काफी ज्यादा बढ़ा रहा है। चीन ने ताइवान पर दबाव बनाने के लिए ताइवान स्ट्रेट के पास करीब 40 हजार सैनिक तैनात किए हैं। इसके लिए उसने दो मरीन ब्रिगेड बनाए हैं। चीन ने धमकी दी है कि अगर राजनीतिक तरीके से ताइवान चीन का हिस्सा नहीं बनेगा तो वह ताकत के बल पर ताइवान पर कब्जा कर लेंगे। पेइचिंग के सैन्य विशेषज्ञ झोउ चेनमिंग ने कहा कि हालिया युद्धाभ्यास ताइवान सरकार को राजनीतिक चेतावनी है। हॉन्ग कॉन्ग के सैन्य विशेषज्ञ सोंग झोंगपिंग का कहना है कि नवंबर में अमेरिकी चुनाव से पहले चीन और बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास कर सकता है। इस बीच चीन से निपटने के लिए ताइवान ने सोमवार को अमेरिका की हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड के साथ 62 अरब डॉलर के F-16 फाइटर जेट खरीदने का सौदा किया है। यह सौदा करीब 10 साल में पूरा होगा। माना जा रहा है कि इस सौदे के बाद ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ सकता है। इस सौदे की संवेदनशीलता को देखते हुए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने इस सौदे का तो ऐलान किया लेकिन खरीददार का नाम नहीं बताया है। उधर, इस सौदे से जुड़े लोगों ने पुष्टि की है कि 62 अरब डॉलर की भारी-भरकम डील ताइवान के साथ की गई है। नए सौदे के तहत ताइवान शुरू में 90 फाइटर जेट खरीदेगा जो अत्याधुनिक तकनीकों और हथियारों से लैस होंगे। इससे पहले पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम और स्ट्रिंगर मिसाइल भी अमेरिका ने ताइवान को दिए थे। अमेरिका ने भले ही वर्ष 1979 में चीन को मान्यता दी हो, फिर भी वह ताइवान का सबसे शक्तिशाली सहयोगी और हथियारों का सप्लायर है। यह सौदा ऐसे समय पर हुआ है जब हॉन्ग कॉन्ग के लिए चीन ने जबरन सुरक्षा कानून पारित किया है। इस कानून के बाद ताइवान की टेंशन और ज्यादा बढ़ गई है। उसे यह डर सता रहा है कि अगला नंबर उसका हो सकता है। इस सौदे से ठीक पहले अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री ताइवान की यात्रा पर गए थे। वर्ष 1979 के बाद पहली बार इतने शीर्ष स्तर का नेता ताइवान पहुंचा था। सेना के समान रिजर्व फोर्स बनाने की तैयारी जिसके तहत एक रिजर्व फोर्स को बनाया जाएगा जो नियमित सशस्त्र बलों की तरह ही ताकतवर होगी। उन्हें वे सभी हथियार और सैन्य साजो समान दिए जाएंगे जिसका इस्तेमाल ताइवानी सेना करती है। इसके अलावा विभिन्न बलों के बीच में रणनीतिक समझ और विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों के बीच घनिष्ठ सहयोग भी विकसित किया जाएगा। चीन ने हाल के दिनों में तेज की कार्रवाई ताइवानी राष्ट्रपति की यह घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन ने आज ही हॉन्ग कॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू किया है और ताइवान को भी एक देश दो तंत्र के तहत मिलाने की धमकी दी है। इसके अलावा चीन हमेशा से ताइवान को अपने देश में सैन्य ताकत से मिलाने की धमकी देता रहा है। हाल के दिनों में कई बार चीनी एयरक्राफ्ट से ताइवानी एयरस्पेस का उल्लंघन भी किया है।
अमेरिकी सैन्य ताकत के प्रतीक यूएसएस रोनाल्ड रीगन के नेतृत्व में कैरियर स्ट्राइक ग्रुप ने विवादित दक्षिण चीन सागर में जोरदार अभ्यास किया है। अमेरिकी सेना ने एक बयान जारी करके कहा कि इस अभ्यास का मकसद अपने सहयोगियों के साथ संयुक्त भागीदारी करना है और अपनी मारक क्षमता को बढ़ाना है। साथ ही इंडो-पसफिक इलाके में स्वतंत्र और मुक्त आवागमन बनाए रखना है। अमेरिकी नौसेना ने यह अभ्यास ऐसे समय पर किया है जब चीन से इलाके में तनाव बढ़ता जा रहा है।
अमेरिका ने चीन के साउथ चाइना सी पर दावे का विरोध किया है। चीन के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिए अमेरिका लगातार साउथ चाइना सी में अपने एयरक्राफ्ट कैरियर भेज रहा है। अमेरिका ने कहा है कि चीन कोरोना वायरस महामारी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है और अपने क्षेत्रीय दावे को आगे बढ़ाने में लगा है। चीन ने अमेरिका के इस अभ्यास का विरोध किया है। यही नहीं चीन अब तटीय इलाके में अपने सैन्य ठिकानों की संख्या को काफी ज्यादा बढ़ा रहा है।
चीन ने ताइवान पर दबाव बनाने के लिए ताइवान स्ट्रेट के पास करीब 40 हजार सैनिक तैनात किए हैं। इसके लिए उसने दो मरीन ब्रिगेड बनाए हैं। चीन ने धमकी दी है कि अगर राजनीतिक तरीके से ताइवान चीन का हिस्सा नहीं बनेगा तो वह ताकत के बल पर ताइवान पर कब्जा कर लेंगे। पेइचिंग के सैन्य विशेषज्ञ झोउ चेनमिंग ने कहा कि हालिया युद्धाभ्यास ताइवान सरकार को राजनीतिक चेतावनी है। हॉन्ग कॉन्ग के सैन्य विशेषज्ञ सोंग झोंगपिंग का कहना है कि नवंबर में अमेरिकी चुनाव से पहले चीन और बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास कर सकता है।
इस बीच चीन से निपटने के लिए ताइवान ने सोमवार को अमेरिका की हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड के साथ 62 अरब डॉलर के F-16 फाइटर जेट खरीदने का सौदा किया है। यह सौदा करीब 10 साल में पूरा होगा। माना जा रहा है कि इस सौदे के बाद ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनाव काफी बढ़ सकता है। इस सौदे की संवेदनशीलता को देखते हुए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने इस सौदे का तो ऐलान किया लेकिन खरीददार का नाम नहीं बताया है। उधर, इस सौदे से जुड़े लोगों ने पुष्टि की है कि 62 अरब डॉलर की भारी-भरकम डील ताइवान के साथ की गई है।
नए सौदे के तहत ताइवान शुरू में 90 फाइटर जेट खरीदेगा जो अत्याधुनिक तकनीकों और हथियारों से लैस होंगे। इससे पहले पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम और स्ट्रिंगर मिसाइल भी अमेरिका ने ताइवान को दिए थे। अमेरिका ने भले ही वर्ष 1979 में चीन को मान्यता दी हो, फिर भी वह ताइवान का सबसे शक्तिशाली सहयोगी और हथियारों का सप्लायर है। यह सौदा ऐसे समय पर हुआ है जब हॉन्ग कॉन्ग के लिए चीन ने जबरन सुरक्षा कानून पारित किया है। इस कानून के बाद ताइवान की टेंशन और ज्यादा बढ़ गई है। उसे यह डर सता रहा है कि अगला नंबर उसका हो सकता है। इस सौदे से ठीक पहले अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री ताइवान की यात्रा पर गए थे। वर्ष 1979 के बाद पहली बार इतने शीर्ष स्तर का नेता ताइवान पहुंचा था।