प्रायवेट कॉलेज परीक्षा मामले में उच्च शिक्षा विभाग का फैसला और विवाद

Posted By: Himmat Jaithwar
9/4/2020

भोपाल। मध्य प्रदेश में स्नातक के प्रथम और द्वितीय वर्ष के प्राइवेट विद्यार्थियों को परीक्षा देनी होगी। यह निर्णय उच्च शिक्षा विभाग ने लिया है। इस आधार पर सभी विश्वविद्यालयों ने संबद्घ कॉलेजों के प्राचार्यों को निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके तहत विद्यार्थियों के प्रश्न पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी कॉलेज के प्राचार्यों को दी गई है। साथ ही विद्यार्थी परीक्षा अनिवार्य तौर पर दें, इसकी जिम्मेदारी भी संबंधित कॉलेज के प्राचार्य की होगी। हालांकि विभाग के इस निर्णय को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है। प्रोफेसरों का कहना है कि जब फीस विश्वविद्यालय वसूल कर रहा है तो परीक्षा कराने की जिम्मेदारी कॉलेज को क्यों दी जा रही है।

वहीं स्नातक के प्रथम और द्वितीय वर्ष के नियमित विद्यार्थियों को परीक्षा नहीं देनी होगी। इसकी वजह है नियमित विद्यार्थियों के नतीजे सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) के आधार पर जारी कर दिए जाएंगे, जबकि प्राइवेट विद्यार्थियों का सीसीई नहीं होता है। इस वजह से उन्हें परीक्षा देनी होगी। प्रदेश में स्नातक प्रथम और द्वितीय वर्ष की प्राइवेट परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों की संख्या करीब चार लाख होगी। 

कोरोना के चलते विद्यार्थियों की परीक्षा नहीं कराने का निर्णय लिया गया है। नियमित विद्यार्थियों के नतीजे पिछली कक्षा के अंक समेत इस साल के सीसीई के आधार पर तैयार किए जाएंगे, लेकिन प्राइवेट विद्यार्थियों के लिए सीसीई की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें परीक्षा देनी होगी।

बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में स्नातक प्रथम एवं द्वितीय वर्ष के करीब पचास हजार छात्र होंगे। बीयू ने प्रति छात्र से परीक्षा फॉर्म भराने के एवज में 14 सौ रुपए जमा कराए हैं। इस लिहाज से बीयू के पास करीब 7 करोड़ रुपए परीक्षा फॉर्म की राशि के तौर पर जमा हुए हैं। अब परीक्षा कराने की जिम्मेदारी कॉलेजों के पास जाने से यह पूरी रकम बीयू के पास बच जाएगी।

जब परीक्षा फॉर्म विश्वविद्यालय जमा करा रहा है, उसकी फीस भी वही वसूल रहा है तो परीक्षा कराने की जिम्मेदारी भी विश्वविद्यालय की होनी चाहिए न की कॉलेजों की। सरकार का यह निर्णय गलत है।
डॉ कैलाश त्यागी, अध्यक्ष प्रदेश प्राध्यापक संघ



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