नई दिल्ली। परंपराएं जीवन शैली को समृद्ध करती हैं और मनुष्य के जीवन को सक्षम बनाती हैं। भारत का श्रृंगार करतीं ये परंपराएं ही भारत को महान बनाती हैं। होलिका दहन में अग्नि देव की पूजा का भी महत्व है। आइए इसी कड़ी में आपको बताते हैं होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कथा का महत्व, पूजन विधि और शुभ मुहूर्त.
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होली से जुड़ी अनेक कथाएं इतिहास-पुराण में पाई जाती हैं। इसमें हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है। रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है।
कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात उनके पिता हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को नहीं जला सकती।
भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गई, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ।