बाबा के नेगेटिव किरदार में नहीं जमे बॉबी देओल, बोझिल और बेरंग है प्रकाश झा की 'आश्रम' वेब सीरज

Posted By: Himmat Jaithwar
8/28/2020

देखकर दुख होता है कि ‘आश्रम’ प्रकाश झा जैसे टैलेंटेड मेकर की प्रस्‍तुति है। बॉबी देओल स्टारर वेब सीरिज जिन्‍होंने हाल ही में अपनी दमदार वापसी ‘क्‍लास ऑफ 83’ से की है। दिलचस्‍प बात तो यह कि नौ एपिसोड वाले इस पहले सीजन के बाद सीजन टू की भी घोषणा हुई है। मेकर्स ने खुद को कोसों दूर रखा है कि ‘आश्रम’ उस बाबा राम रहीम सिंह से प्रेरित नहीं है, जो सलाखों के पीछे हैं। असल में मगर कहानी उन्‍हीं को ध्‍यान में रख बनाई गई है।

यह शूट तो फैजाबाद, गोंडा और अयोध्‍या में हुई है, मगर इसका लोकेल काल्‍पनिक रखा गया है। मेरठ की पम्‍मी निचली जाति से आती है। पहलवानबाजी करती है, पर इलाके के सर्वण होने नहीं देते। वह भी मैच के दौरान एक्‍स सीएम हुकूम सिंह के सामने। पम्‍मी के भाई के दोस्‍त को घोड़ी चढ़कर ब्‍याह रचानी है, पर वह अरमान भी पास के सर्वण पूरे नहीं होने देते। आन की लड़ाई में पम्‍मी के भाई को लहुलुहान कर दिया जाता है। स्‍थानीय पुलिस का प्रमुख उजागर सिंह है। वह भी पम्‍मी का साथ नहीं देता। तभी बाबा निराला की एंट्री होती है। वह सब ठीक कर देता है। पम्‍मी के इलाके के लोग बाबा के भक्‍त बन जाते हैं।

यहां से प्रदेश के सीएम और बाबा निराला में महाभारत शुरू होती है। बीच में मोहरे बनते हैं इलाके की पुलिस, एक्‍स सीएम, पम्‍मी व उसका भाई और कुछेक किरदार।

राजनीति दिखाने में चूके प्रकाश झा

‘गंगाजल’ में पुलिस के मकड़जाल और ‘राजनीति’ में नेताओं के दांव पेंच को बखूबी दिखाने वाले प्रकाश झा यहां चूक गए हैं। कसी हुई स्क्रिप्‍ट की फिल्‍में बनाने वाले यहां अपने वेब शो के साथ डेली सोप सा ट्रीटमेंट कर गए हैं। कई जगहों पर एक-एक सीन चार से पांच मिनटों के बन गए हैं। जबकि उनकी लम्‍बाई डेढ़ मिनटों की हो सकती थी। यह एंगेजिंग तो कतई नहीं है। उकताहट सी होने लगती है।

‘क्‍लास ऑफ 83’ में बॉबी देओल ने हाल ही में जोरदार एक्टिंग की थी। पर यहां बाबा निराला के किरदार में वो जम नहीं पाए हैं। वह किरदार हर तरह के गलीज काम करता है, पर उसकी क्रूरता उन सीन में बॉबी ला नहीं पाए हैं। उनकी सौम्‍यता बाबा निराला के काइंयेपन पर हावी है।

किरदारों में नहीं दिखा दम

बाकी किरदार भी इंप्रेस नहीं कर पाते। उजागर सिंह सर्वण इंस्‍पेक्‍टर है। अक्‍खड़ है। दर्शन कुमार ने उसकी सामंती सोच को जाहिर करने की पूरी कोशिश की है। बाबा निराला के राइट हैंड भूपा स्‍वामी के रोल में चंदन रॉय सान्‍याल हैं। पोस्‍टमॉर्टम करने वाली डॉक्‍टर नताशा की भूमिका अनुप्रिया गोयनका ने प्‍ले की है। बाबा के बाद पूरी सीरिज में पम्‍मी व उसका भाई नजर आता है। उसे अदित पोहणकर और छिछोरे फेम तुषार पांडे ने प्‍ले किया है। दोनों का काम अच्‍छा बन पड़ा है। बाकी किरदार असरहीन हैं।

संवाद संजय मासूम के हैं। वो विट्टी हैं, जो उनकी ताकत है। पर पटकथा में कसावट कमतर है। कहीं भी रोमांच की अनुभूति नहीं है। जैसे जैसे किरदार आते हैं, वैसे वैसे कहानी के राज आसानी से खुलते जाते हैं। फर्जी बाबाओं की ताकत को जरूर प्रकाश झा बखूबी पेश कर पाए हैं। पर इसे नौ एपिसोड में क्‍यों बनाया गया है, वह समझ से परे है। हर किरदार व कहानी में आने वाले मोड़ ठीक वैसे हैं, जैसे फॉर्मूला फिल्‍मों में दिखते रहे हैं।



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