भोपाल। भोपाल से महज 35 किमी दूर सीहोर में भगवान चिंतामन सिद्ध गणेश का एक ऐसा मंदिर है, जिसकी ख्याति देशभर में है। फिलहाल कोरोना के चलते मंदिर में सीमित संख्या में भक्तों को प्रवेश दिया जा रहा है। वैसे तो यहां हर बुधवार मेले सा नजारा रहता है। गणेशोत्सव के दौरान भी यहां मेले की परंपरा रही है। यह मंदिर स्वयंभू गणेश प्रतिमा वाले देश के चार प्रमुख मंदिरों में शामिल है। तीन अन्य मंदिर रणथंभौर (राजस्थान), उज्जैन और सिद्धपुर (गुजरात) में हैं। विक्रमादित्य कालीन इस मंदिर में गणेश प्रतिमा आधी भूमि में धंसी हुई है। नाभि से शीश तक का हिस्सा ही ऊपर है। मंदिर में रोज चार आरती मंदिर में चिंतामन सिद्ध गणेश की रोज चार आरती होती हैं। पहली आरती सुबह, दूसरी दोपहर 12 बजे, तीसरी शाम को और रात 11 बजे शयन आरती की जाती है। यहां गणेशजी को मोदक और बूंदी के लड्डू का भोग मुख्य रूप से लगाया जाता है। बुधवार को विशेष शृंगार व महाआरती होती है। गणेश चतुर्थी पर भंडारा होता है, जो इस साल नहीं होगा। प्रतिमा में परिवर्तित हो गया था कमल पुष्प मंदिर के प्रबंधक पं. पृथ्वी वल्लभ दुबे बताते हैं कि इतिहासकारों व उनके परिवार के बुजुर्गों के मुताबिक यह मंदिर पूर्व उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य की देन है। वे हर बुधवार को रणथंभौर स्थित किले में चिंतामन गणेश के दर्शन करने जाते थे। मान्यता है कि उसी दौरान स्वप्न में गणेशजी ने राजा से कहा कि तुम पार्वती नदी में शिव-पार्वती के संगम स्थल पर जो सीवन नदी है (जिसका पुराना नाम शिवनाथ पार्वती नदी है) वहां जाओ, मैं तुम्हें वहां कमल पुष्प में मिलूंगा। तब राजा ने ऐसा ही किया। वे नदी से प्राप्त कमल पुष्प को रथ पर ले जा रहे थे, तभी आकाशवाणी हुई कि रात ही में चाहे जहां तक ले चलो। सुबह जहां होगी, मैं वहीं रुक जाऊंगा। तब एक जगह रथ का पहिया फंस गया। काफी कोशिश के बाद भी पहिया नहीं निकला। सुबह होते ही कमल पुष्प मूर्ति में परिवर्तित हो गया। जब राजा ने प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया ताे वह भूमि में धंसने लगी। जब आधी प्रतिमा अंदर धंस गई, तब राजा ने उसकी वहीं स्थापना कर दी। विक्रम संवत् 155 में मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर श्रीयंत्र के कोणों पर स्थित है। तब इस कस्बे का नाम सिद्धपुर था।