गयारह माह से अधिक समय से गायब नाबालिग को ढूंढने के मामले में पुलिस द्वारा बरती जा रही लापरवाही पर मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने कड़ी नाराजगी जताई है। पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने मप्र के डीजीपी से पूछा- क्या लॉकडाउन के दौरान सभी मामलों की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया? क्या संपूर्ण मप्र में किसी भी मामले की जांच नहीं की गई और क्या किसी भी मामले में संबंधित आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया?
कोर्ट ने कहा, इस मामले की जांच में भिंड एसपी हमारा विश्वास खो चुके हैं। कोर्ट ने चंबल आईजी को जांच का जिम्मा सौंपते हुए पांच दिन में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी। दरअसल, गोहद के रहने वाले घनश्याम (परिवर्तित नाम) ने मालनपुर में रहने वाले आशीष परमार पर नाबालिग बेटी को बंदी बनाकर रखने का आरोप लगाया। सितंबर में याचिका दायर की गई, जिसमें कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह नाबालिग को बरामद कर कोर्ट में पेश करें।
कई बार अवसर देने के बाद भी पुलिस नाबालिग को बरामद नहीं कर सकी। मार्च में नाबालिग का पिता के पास फोन आया। उसने बताया कि आशीष परमार से उसका विवाह हो चुका है और वह चार माह की गर्भवती है। इसकी जानकारी जब पिता ने पुलिस को दी। नंबर ट्रेस करने पर पुलिस को पता चला कि नाबालिग आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम में हैं। गुरुवार को हुई सुनवाई में जब कोर्ट ने पैनल अधिवक्ता से पूछा कि नाबालिग को लेने पुलिस क्यों नहीं गई।
विशाखापटनम पुलिस पर आरोप कोर्ट को स्वीकार नहीं
नाबालिग की लोकेशन मिलने के बाद स्थानीय पुलिस से मदद लेने के संबंध में जब कोर्ट ने सवाल पूछा तो पैनल अधिवक्ता ने बताया, जांच अधिकारी का ये मानना रहा कि यदि वहां की स्थानीय पुलिस से मदद ली तो शायद वे नाबालिग को इसकी सूचना दे दें और वह अपना पता बदल ले। इसलिए स्थानीय पुलिस को भरोसे में नहीं लिया गया। कोर्ट ने कहा कि यह विशाखापटनम पुलिस पर सीधे-सीधे आरोप लगाना है जो कि अस्वीकार है।