भगवान कृष्ण ने यहीं पाया था गीता का ज्ञान, 64 दिनों में सीख ली थी 14 विद्या और 64 कलाएं, गुरु पुत्र को यमराज के पास से ले आए थे वापस

Posted By: Himmat Jaithwar
8/11/2020

देशभर में इस बार जन्माष्टमी दो दिन मनाई जा रही है। कोरोनाकाल के कारण इस बार पर्व में थोड़ी रौनक कम दिखाई दे रही है, लेकिन श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली उज्जैन में जन्मोत्सव का अपना एक अलग ही अंदाज है। भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली संदीपनि आश्रम में यह पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। काेरोना को देखते हुए यहां सोशल डिस्टेंसिंग के साथ भक्तों को दर्शन करवाए जा रहे हैं। हालांकि यहां पर भी इस बार कोई बड़ा आयोजन नहीं किया जा रहा है। कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर जारिए संदीपनि आश्रम के बारे में...

उज्जैन के मंगलनाथ रोड स्थित ऋषि सांदीपनि आश्रम महर्षि संदीपनि की तप स्थली है। यहां महर्षि ने घोर तपस्या की थी। इसी स्थान पर महर्षि संदीपनि ने वेद-पुराण शास्त्रादि की शिक्षा के लिए आश्रम का निर्माण करवाया था। दुनियाभर से संदीपनी आश्रम में श्रद्धालु आते हैं और श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली के रूप में दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहीं पर 5236 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण का विद्यारंभ संस्कार हुआ था। श्रीकृष्ण को गुरु सांदीपनि ने स्लेट पर तीन मंत्र लिखवाए थे। यहां यह परंपरा आज भी चल रही है। अब बच्चों को विद्यारंभ संस्कार में मंत्रों की जगह अ, आ, इ, ई, उ, ऊ और ए, बी, सी, डी, ई तथा 1, 2, 3, 4, 5 लिखवाए जाते हैं।

जन्माष्टमी के मौके पर भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया है।

पुजारी रूपम व्यास के अनुसार महर्षि सांदीपनि भगवान श्रीकृष्ण के गुरु थे। मथुरा में कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को वसुदेव और देवकी ने शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवंतिका नगरी (वर्तमान में मध्यप्रदेश के उज्जैन) में गुरु सांदीपनि के पास भेजा। श्रीकृष्ण व बलराम इनसे शिक्षा प्राप्त करने मथुरा से उज्जयिनी आए थे। महर्षि सांदीपनि ने ही भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं की शिक्षा दी थी। श्रीकृष्ण ने भाई बलराम के साथ 64 दिन शिक्षा ली थी। इस दौरान उन्होंने 14 विद्याएं और 64 कलाएं सीखी थीं। उज्जैन से मिली शिक्षा ही कुरुक्षेत्र में गीता के रूप में श्रीकृष्ण के मुख से प्रकट हुई। इसके बाद ही वे योगेश्वर और जगद्गुरु भी कहलाए।

कृष्ण ने 64 दिनों में ली थी पूरी शिक्षा
पुजारी रूपम व्यास के अुनसार भगवान श्री कृष्ण ने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में 4 वेद, 6 दिनों में 6 शास्त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं, 20 दिनों में गीता का ज्ञान, उसके साथ ही गुरु दक्षिणा और गुरु सेवा का काम पूरा कर लिया था। महर्षि सांदीपनि आश्रम शिप्रा नदी के गंगा घाट पर स्थित है। इस स्थान पर गोमती कुंड भी बना हुआ है। यहां पर गुरु संदीपनी के साथ ही कृष्ण, बलराम और सुदामा की मूर्तियां स्थापित हैं।

भगवान की पाठशाला, यहीं पर भगवान ने शिक्षा ग्रहण की थी।

ऐसी है गुरु दक्षिणा की कहानी...
शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब गुरुदक्षिणा की बात आई तो ऋषि सांदीपनि ने श्रीकृष्ण से कहा कि तुमसे क्या मांगू, संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं जो तुमसे मांगी जाए और तुम न दे सको। श्रीकृष्ण ने कहा कि आप मुझसे कुछ भी मांग लीजिए, मैं लाकर दूंगा। तभी गुरु दक्षिणा पूरी हो पाएगी। ऋषि सांदीपनि ने कहा कि शंखासुर नाम का एक दैत्य मेरे पुत्र को उठाकर ले गया है। उसे लौटा लाओ।

यमराज से गुरु पुत्र को लाए थे वापस
श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को लौटा लाने का वचन दे दिया और बलराम के साथ उसे खोजने निकल पड़े। खोजते-खोजते सागर किनारे तक आ गए। समुद्र से पूछने पर उसने भगवान को बताया कि पंचज जाति का दैत्य शंख के रूप में समुद्र में छिपा है। हो सकता है कि उसी ने आपके गुरु पुत्र को खाया हो। भगवान ने समुद्र में जाकर शंखासुर को मारकर उसके पेट में अपने गुरु पुत्र को खोजा, लेकिन वो नहीं मिला। शंखासुर के शरीर का शंख लेकर भगवान यमलोक गए। भगवान ने यमराज से गुरु पुत्र को वापस लाए और गुरु सांदीपनि को उनका पुत्र लौटाकर गुरु दक्षिणा पूरी की।

आश्रम परिसर स्थित श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर।

पत्थर पर लिखी है 1 से 100 तक गिनती
सांदीपनि आश्रम में एक प्राचीन पत्थर है, जिस पर 1 से 100 तक गिनती उकेरी हुई है। ऐसी मान्यता है कि गुरु संदीपनी ने भगवान से यह गिनती लिखवाई थी। इसके अलावा यहां पर एक गोमती कुंड भी है। कुंड को लेकर मान्यता है कि श्रीकृष्ण को गुरु से जो सीख मिलती थी, वे उसे एक पाटी में लिखते थे, इसके बाद उस पाटी को गोमती कुंड के जल से धोते थे। पाटी में लिखे अंक को इस जल से मिटाने के कारण इस क्षेत्र का नाम अंकपात क्षेत्र पड़ा।

मंगलनाथ रोड स्थित ऋषि सांदीपनि आश्रम।

शिवलिंग की जलाधारी में पत्थर के शेषनाग
आश्रम के पिछले भाग में श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि मंदिर में 6000 साल पुराने शिवलिंग स्थापित हैं। इस शिवलिंग को महर्षि सांदीपनि ने बिल्व पत्र के जरिए अपने तप से उत्पन्न किया था। शिवलिंग की खास बात यह है कि जलाधारी में पत्थर के शेषनाग भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके साथ ही शिवलिंग के सामने खड़े हुए नंदी की दुर्लभ प्रतिमा भी है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब आश्रम पहुंचे थे तो नंदी ने उनका खड़े होकर स्वागत किया था।

मंदिर को विशेषतौर पर सजाया गया

पंडित व्यास ने बताया कि जन्माष्टमी के पर्व पर उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में मंदिर को विशेषतौर पर सजाया गया है। रात 12 बजे भगवान श्री कृष्ण की आरती के बाद दिनभर श्रद्धालुओं के लिए मंदिर को खोल दिया जाएगा। यह मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पर भगवान श्री कृष्णा, बलराम सहित उनके सखा सुदामा और गुरु सांदीपनि की मूर्ति एक ही जगह विराजित हैं। इन्हीं मान्यताओं के चलते जन्माष्टमी पर सांदीपनि आश्रम में श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शनों के लिए उज्जैन पहुंचते हैं।



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