4 अगस्त। इंदौर से 300 से अधिक लोग गुप्त वाहिनी के माध्यम से अयोध्या के लिए निकले थे। 5-5 के समूह में अलग-अलग मार्ग रवाना हुए। इसमें बड़ी महिलाएं भी शामिल थीं। इनका नेतृत्व सुमित्रा महाजन ने किया। चित्रकूट पर ही बसों को रोक दिया गया। वहां पर राजमाता सिंधिया, उमा भारती एवं सुमित्रा महाजन ने गिरफ्तारियां दी। जब कार सेवकों का जुलूस कपड़ा मार्केट से प्रारंभ हुआ उसके पूर्व ही लोगों से अपील कर दी कि कार सेवकों के लिए ऐसी सामग्री दान करें जो 15 दिन तक खराब ना हो। दो ट्रक सूखा सामान एकत्रित हो गया था। आंदोलन में लक्ष्मण सिंह गौड़, कैलाश विजयवर्गीय कैलाश शर्मा, सुदर्शन गुप्ता आदि का सहयोग रहा। 1990 में विजय यात्रा निकाली गई। इसमें दुर्गाजी की प्रतिमा रखी थी। यह विशाल यात्रा का पहला सिरा गांधी हाल तो दूसरा राजबाड़ा पर था।
इंदौर में 1988 में श्रीराम जानकी रथ यात्रा आई जिसने पूरे शहर में भ्रमण किया। यात्रा का नेतृत्व सुमित्रा महाजन ने किया था। भ्रमण के दौरान माहेश्वरी समाज ने यात्रा का स्वागत किया।
कारसेवकों का अस्थि कलश आया था, रोज यात्रा निकाली जाती थी
4 अगस्त। दिसंबर 1992 में कारसेवकों का अस्थि कलश इंदौर आया उसको भी गांधी हाल पर स्थापित किया गया था। प्रतिदिन उसकी यात्रा निकाली जाती थी। 1 दिन जुनी इंदौर गाड़ी अड्डा पर अस्थि कलश यात्रा रोक दी गई तब 4000 से भी अधिक कारसेवकों ने अपनी गिरफ्तारी दी थी। यात्रा रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा का भी फोन आया। अस्थि कलश को भी श्रद्धांजलि देने बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन पहुंचते थे। इसके बाद भी आंदोलनों को विभिन्न स्वरूप में जारी रखा गया। 6 दिसंबर की घटना के बाद मप्र में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद भी कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारी के लिए पुलिस उनके घरों पर पहुंची, लेकिन कार्यकर्ता पहले ही अंडर ग्राउंड हो गए थे। यात्रा के दौरान मीडिया प्रभारी राम मूंदड़ा से सारी जानकारी सामने आती थी। (- जयप्रकाश भुराड़िया, राम मंदिर आंदोलन में प्रमुख भूमिका रही)
अभी श्री रामजन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास के साथ श्रीराम कार सेवा समिति के जयप्रकाश भुराड़िया।
आंदोलन का असर, पहली बार आठों विस सीट भाजपा ने जीती
4 अगस्त। 1989 से 92 तक चले मंदिर आंदोलन का असर इंदाैर में सर्वाधिक देखा गया। भगवा लहर में उस समय संगठन मंत्री थे रणवीर सिंह भदौरिया। 93 में विधानसभा चुनाव हुए तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने। लेकिन इंदौर की आठों सीटों पर भाजपा जीती। इंदौर में आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ था। इसके बाद भी आठों सीट कभी नहीं जीतीं।
भुराड़िया के नेतृत्व में गए कार सेवकों का दल उत्तर प्रदेश के जायस गांव में।
6 दिसंबर 1992 को शांत रहा शहर
4 अगस्त। 6 दिसंबर को जब विवादित ढांचा ढहाया गया, तत्काल मप्र की पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इंदौर में भी कर्फ्यू लगा। बावजूद उज्जैन और भोपाल में दंगे हुए, लेकिन इंदौर में शांति रही।