भोपाल के लखेरापुरा के रवींद्र गुप्ता ने 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवा के दौरान ही मंदिर निर्माण पूरा होने तक अविवाहित रहने का संकल्प ले लिया। मां-पिता की डांट-फटकार खाकर अयोध्या गए रवींद्र ने वापस आकर जब यह संकल्प सुनाया तो घर माता- पिता और नाराज हो गए, लेकिन उस समय 22 वर्षीय युवक रवींद्र ने अपना संकल्प निभाया। इन 28 वर्षों में 4 बार नर्मदा परिक्रमा कर चुके रवींद्र मंदिर निर्माण पर खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि अब शेष जीवन मां नर्मदा की सेवा में ही लगाएंगे। इन दिनों वे अपनी नर्मदा परिक्रमाओं पर एक पुस्तक भी लिख रहे हैं। रवींद्र गुप्ता जो कि अब भोजपाली बाबा के नाम से जाने जाते हैं।
अयोध्या से घर लौटने पर जब अपना फैसला सुनाया तो पड़ी डांट
संघ की शाखा में जाने के कारण अयोध्या आंदोलन को लेकर उत्साह था। 6 दिसंबर की कार सेवा के लिए अन्य मित्र अयोध्या जाने की तैयारी कर रहे थे, तब घर से मुझे जाने की इजाजत नहीं मिल रही थी। मैं बिना कपड़े और खाली जेब में ही स्टेशन आ गया। घर वालों को भनक लगी तो बड़े भैया स्टेशन आए और उसकी जिद के आगे हार कर उसे कुछ रुपए दिए। मैं और मेरेे मित्र अयोध्या से ईंट लेकर आए। इसी दौरान उन्होंने संकल्प ले लिया कि जब तक भव्य मंदिर नहीं बन जाता, विवाह नहीं करेंगे। मन में कहीं यह था कि माहौल अनुकूल है, दो-चार साल में मंदिर बन ही जाएगा और अभी अपनी उम्र ही क्या है। इसके बाद भोपाल आकर जब घर पर फैसला सुनाया तो जमकर डांट पड़ी, लेकिन अपनी बात पर कायम रहते हुए करीब 12 साल यानी 2004 तक भोपाल में विद्यार्थी परिषद और आरएसएस में सक्रिय भूमिका निभाई। फिर वह 2004 में पूर्णकालिक प्रचारक हो गए। 2007 में विश्व हिंदू परिषद में पूर्णकालीक संगठन मंत्री हो गए। इन दिनों अपनी नर्मदा यात्राओं पर एक पुस्तक लिख रहे हूं। रवींद्र अब शीघ्र ही संन्यास की घोषणा करने की तैयारी कर रहे हैं।