पिछले साल पद्मश्री से नवाजे गए थे
पेशे से साइकिल मिस्त्री 80 साल के मोहम्मद शरीफ अयोध्या में खिड़की अली बेग मोहल्ले के रहने वाले हैं। लोग उन्हें चचा शरीफ कहते हैं। उन्हें पिछले साल पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था। शरीफ अब तक 25 हजार से ज्यादा लावारिस शवों को बाकायदा रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर चुके हैं। वे रोज लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए कब्रिस्तान और श्मशान के चक्कर लगाते हैं। अगर वे किसी कारणवश न पहुंच पाएं तो पुलिस, श्मशान स्थल या कब्रिस्तान के निगरानीकर्ता उन्हें सूचित कर देते हैं। इस काम का पूरा खर्च वे खुद वहन करते हैं।
28 साल पहले शुरू किया ये काम
शरीफ के अनुसार, उनके चार बेटों में से दो की मौत हो चुकी है। उनमें एक मोहम्मद रईस भी थे। वह केमिस्ट था। किसी काम के सिलसिले में वह 28 साल पहले सुल्तानपुर गया था। वहीं से लापता हो गया। यह वह दौर था जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया था। सांप्रदायिक दंगे फैल रहे थे। करीब एक महीने बाद पता चला कि उसका शव रेल पटरी पर मिला। वह भी दंगों का शिकार हो गया। यह एक ऐसी घटना थी, जिसने जिंदगी बदल दी। बेटे के शव का लावारिस समझकर अंतिम संस्कार हुआ था। इसके बाद से शरीफ ने जिले में लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठा ली। उन्होंने आर्थिक तंगी झेलते हुए भी यह काम जारी रखा है। लोग उन्हें इस काम के लिए चंदा भी देते हैं।
पेशे से साइकिल मिस्त्री हैं मोहम्मद शरीफ।
मुझे भूमि पूजन में जाने से कोई परहेज नहीं, पीएम से मिलने की इच्छा
मोहम्मद शरीफ कहते हैं कि मैंने कभी हिंदू-मुस्लिम या किसी भी धर्म में भेद नहीं किया। इसलिए राम मंदिर के भूमि पूजन में शामिल होने से कोई परहेज नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुझ जैसे शख्स को पद्मश्री के लिए चयनित किया, यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। अब पीएम मोदी अयोध्या आ रहे हैं तो मेरी उनसे मिलने की तमन्ना है।