सूखा ही बीतेगा सावन, जुलाई में भारी बारिश की संभावना कम; मौसम वैज्ञानिकों के तर्क- जमीन में पड़ी दरार, 15 दिन तेज बारिश नहीं ताे आधी फसल बर्बाद

Posted By: Himmat Jaithwar
8/4/2020

1 जुलाई तक मप्र में सामान्य से ज्यादा बारिश का आंकड़ा 62 फीसदी था, जो 19 जुलाई काे घटकर सिर्फ 5 फीसदी रह गया। इस दौरान प्रदेश के सिर्फ 2 जिलाें ग्वालियर व जबलपुर में ही सामान्य से कम बारिश हुई थी, 19 जुलाई तक सामान्य से कम बारिश वाले जिलाें की तादाद बढ़कर 14 हाे गई। इन 19 जिलों में भोपाल जिले में सामान्य से ज्यादा बारिश का आंकड़ा 224 से घटकर 62 फीसदी रह गया। मानसून की इस बेरुखी से जमीन सवा फीट तक सूख चुकी है। सोयाबीन के पौधे मुरझाने लगे हैं। खेतों में जमीन पर दरारें पड़ चुकी है।

एक्सपर्ट : एके शुक्ला- वरिष्ठ माैसम वैज्ञानिक, वेद प्रकाश- डाॅप्लर राडार इंचार्ज

मानसून ट्रफ लाइन रविवार से देश के उत्तरी हिस्से में शिफ्ट हाे गई है। इसके कारण इस माह भाेपाल संभाग समेत प्रदेश के ज्यादातर इलाकाें में भारी बारिश के आसार कम हैं। मप्र में भारी बारिश के लिए बंगाल की खाड़ी में लाे प्रेशर एरिया यानी कम दबाव का क्षेत्र बनना जरुरी है। मानसूनी सिस्टमाें का सपाेर्ट भी जरुरी है। फिलहाल, ऐसी संभावनाएं भी कम हैं। यही दाे वजह हैं कि इस माह प्रदेश के ज्यादातर संभागाें में एक साथ मूसलाधार बारिश नहीं हाेने का अनुमान है।

एक्सपर्ट : याेगेश द्विवेदी- सीईओ सेंट्रल इंडिया फार्मर्स कंसाेर्टियम

प्रदेश में पिछले साल साेयाबीन का रकबा 55 लाख हेक्टेयर था। इस बार यह बढ़कर 57 लाख हेक्टेयर हाे गया। यदि 10-15 दिन तेज बारिश नहीं हुई ताे साेयाबीन की फसल काे 40-50% तक नुकसान हाेने की आशंका है। कम वर्षा के कारण पौधों में तने व जड़ों का अनुपात बिगड़ जाता है। जड़ें ज्यादा बड़ी हो जाती है एवं तने छोटे रह जाते हैं। पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया धीमी होने से पौधों का विकास भी धीमा हो जाता है और पैदावार काफी कम हो जाती है।



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