कोराेना संक्रमण का असर पर्वों के साथ भाई-बहन के त्यौहार रक्षाबंधन पर भी पड़ा है। लॉकडाउन होने के कारण शहर में पिछले साल के मुकाबले करीब 40 फीसदी राखियां कम अाई है। दुकानदारों का कहना है कि चायना से इस बार बिलकुल भी माल शहर में नहीं आया। वैसे शहर में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई से सबसे ज्यादा राखियां आती है लेकिन इस बार अहमदाबाद, अजमेर व इंदौर से राखियां लाए है। ऐसे में मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं हो पाई और दुकानदार ने भी परिस्थितियों को देखते हुए कम ही माल मंगवाया। इस बार भाव भी 10 से 15 फीसदी ज्यादा है। शहर में रक्षाबंधन के एक सप्ताह पहले ही ग्राहकी शुरू हो जाती थी, लेकिन अब तक बाजार में पिछले साल जैसा माहौल नहीं है। इस बार ग्रामीण क्षेत्र की ग्राहकी नाममात्र की है, दुकानदारों को उम्मीद है कि आज से ग्राहकी बढ़ जाएगी और आश्वस्त है कि सरकार द्वारा बाजार खोलने की अनुमति देने से ज्यादा नुकसान नहीं होगा। राखी व्यवसाय से जुडे थोक व खेरची दुकानदारों ने बताया कि सबसे सस्ता माल दिल्ली से आता है, लेकिन वहां से नाममात्र की सप्लाई हुई है। जबकि क्वालिटी व फैंसी राखियां कोलकाता से आती है, वहां से भी इस बार माल कम ही आया। क्योंकि इन क्षेत्रों में बाजार देर से खुले। ऐसे में जबकि अहमदाबाद, अजमेर, इंदौर का बाजार जल्दी खुल गया था। शहर के जो व्यापारी सीधे खरीददारी करते है उन्होंने अहमदाबाद, अजमेर सहित आस-पास के शहरों से ही खरीदी की है। इस बार शहर में करीब 40 फीसदी माल कम आया है, इसके पीछे दुकानदारों द्वारा कोरोना संक्रमण के कारण ग्राहकी कमजोर होने के भय के कारण कम खरीदी की। दूसरी तरफ जहां से माल आता है वहां मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हाेना। यहीं नहीं दुकानदारों का कहना है कि हर साल माल बचता है, जिसे हम साल भर संभालकर रखते है, ऐसे में कुछ माल पुराना भी पड़ा है।
शहर में 1 रुपए से लेकर 450 रुपए तक मिल रहे फूंदे व राखी
शहर में 1 रुपए से लेकर 450 रुपए तक के फुंदे व राखियां उपलब्ध हंै। इसमें फुंदे 1 से लेकर 60 रुपए तक के है, जबकि राखियां 3 से लेकर 450 रुपए तक की हैं। अधिकांश राखियां मोतियों व कसीदे वाली है, क्योंकि अहमदाबाद से इसी पैटर्न पर राखियां आती है। इसमें बच्चों से लेकर बड़ों और लड़कियों व महिलाओं के लिए भी राखियों की डिजाइन है।
लॉकडाउन के कारण व्यापार नहीं चल रहा
टैगाेर मार्ग पर दुकान लगाने वाले लक्ष्मीनारायण गर्ग बताते है वै 45 साल से भी ज्यादा समय से राखियां बेच रहे है। उस समय 8-10 प्रकार की डिजाइन ही अाया करती थी और तिलक मार्ग पर 14-15 परिवार ही दुकानें लगाते थे, आज 100 से ज्यादा परिवार दुकानें लगाते है। 15 साल से भी कम उम्र थी, तब से मौसमी व्यापार कर रहा हूं। इतने सालों में काफी बदलाव आया, लेकिन 45 साल में पहली बार इतनी मंदी देखी है। आज शहर में 100 से ज्यादा परिवार इससे जुड़े है और 60 फीसदी भी ग्राहकी नजर नहीं आ रही है।