दूसरे राज्यों के लड़के पैसे देकर शादी करते हैं, फिर लड़की को तीन-तीन बार बेच देते हैं

Posted By: Himmat Jaithwar
7/25/2020

लॉकडाउन की ही बात है। बिहार के सुपौल जिले में आने वाले हुलास गांव में एक लड़का झूठी शादी कर रहा था, जबकि दिल्ली में पहले ही एक लड़की से लव मैरिज कर चुका था। लॉकडाउन में अपने गांव आया और दूसरा रिश्ता तय कर लिया। लड़की नाबालिग थी, लेकिन मां-बाप गरीब थे तो उन्होंने रिश्ता कर दिया। लड़के ने पहली शादी के बारे में नहीं बताया। ऐन मौके पर सामाजिक संस्था ग्राम विकास परिषद को पता चला तो उसने शादी रुकवा दी। लड़के को पुलिस के हवाले नहीं किया बल्कि, समझा-बुझाकर मामला खत्म करवा दिया।

फोटो में दिख रही लड़की (चेहरा ब्लर) नाबालिग है, लड़का बालिग। सोशल एक्टिविस्ट के दखल के बाद इनकी शादी रुकवाई गई।

बिहार में झूठी शादियों का ट्रेंड कई सालों से चल रहा है। पंजाब, हरियाणा, यूपी के लोग बिहार आते हैं। वहां पैसे देकर लड़कियों से शादी करते हैं और उन्हें अपने साथ ले जाते हैं। सबसे ज्यादा मामले पंजाब-हरियाणा के होते हैं। मुसीबतों के समय ये गिरोह ज्यादा सक्रिय हो जाता है, क्योंकि लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने का मौका मिल जाता है। बिहार इन दिनों कोरोनावायरस के साथ ही बाढ़ का सामना कर रहा है। जिनके घर डूबे हैं वे सड़क पर रहने को मजबूर हैं। इन हालात में झूठी शादियों की आशंका और बढ़ गई है।

इस फोटो में दिख रही लड़की (चेहरा ब्लर) की उम्र सिर्फ 13 साल है। अधेड़ उम्र के आदमी से उसकी शादी करवाई जा रही थी।

पिछले 12 सालों से फेक मैरिज के खिलाफ लड़ रहीं मधुबनी की सामाजिक कार्यकर्ता हेमलता पांडे कहती हैं कि, हमने सिर्फ 2017 से 2019 के बीच ही मानव तस्करी के 13 मामले पकड़े और इसमें 32 लोगों की गिरफ्तारी हुई। ये ऐसे मामले थे, जिनमें पंजाब-हरियाणा-यूपी के लोग बिहार के गांव में आए और पैसों का लेनदेन कर गरीब लड़कियों से मंदिर में शादी कर ली।

कई मामलों का सही समय पर खुलासा हो गया तो शादी तुड़वा दी गई। कुछ मामलों में यह भी पता चला कि जो लड़की शादी होकर गई है, वह हरियाणा में तीन-तीन परिवारों की बहू बनी हुई है। बहुत से मामलों में सामने आया कि लड़का कुछ साल लड़की को साथ रखता है, फिर किसी और को बेच देता है।

ये बिहार के गांवों के ही लड़के हैं, जो लड़कियों को खरीदने-बेचने वाले गिरोह में शामिल थे।

बिहार में यह काम नेटवर्किंग के जरिए चल रहा है। रोजगार के लिए यहां के लड़के पंजाब-हरियाणा जाते हैं। वहां के लड़कों से इनकी दोस्ती होती है। पैसों के लालच में ये ही उन लोगों को अपने गांव में लाते हैं। कुछ दिन साथ में रखते हैं, फिर किसी गरीब परिवार को देखकर शादी की बात करते हैं। लड़की के घरवालों को पैसा ऑफर किया जाता है। तरह-तरह के सपने दिखाए जाते हैं। जैसे, लड़का शहर में नौकरी-बिजनेस करता है और काफी पैसे वाला है। लड़की को खुश रखेगा। इतने में गरीब परिवार शादी के लिए हामी भर देता है।

पांडे के मुताबिक, मोटी रकम तो बीच वाला दलाल खा जाता है। परिवार को 20-25 हजार रुपए दे देते हैं और किसी मंदिर में शादी कर लड़की को लेकर फरार हो जाते हैं। लड़की के परिवार को लगता है कि, बेटी की शादी भी हो गई और पैसे खर्च होने की जगह मिल गए, इसलिए वे खुश हो जाते हैं। बाद में लड़की जिस दलदल में फंसती है, उसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता।

सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से गांवों में बहुत सी झूठी शादियां रुकवाई गईं।

2008 में भी बिहार में कोसी की बाढ़ ने बहुत कुछ तबाह किया था। लाखों लोग सड़क पर आ गए थे। खाने-पीने तक का इंतजाम नहीं था। घर पानी में बह गए थे। तब भी ऐसे मामले ज्यादा होने लगे थे। तब ग्राम विकास परिषद संस्था ने एक सर्वे किया था। जिसमें 95 ऐसे मामले सामने आए थे, जिनमें पैसों का लेनदेन कर लड़कियों को हरियाणा-पंजाब ले जाया गया। परिषद के प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर राजेश कुमार झा के मुताबिक यह काम आज भी चल रहा है, लेकिन अब सब बहुत गुपचुप तरीके से होने लगा।

मानव तस्करी सिर्फ अंदरूनी राज्यों में ही नहीं हो रही बल्कि भारत-नेपाल बॉर्डर पर भी हो रही है। सिर्फ लड़की ही नहीं बल्कि लड़कों की भी तस्करी की जाती है। बहुत से ऐसे मामले भी हैं, जिनमें बिहार के लड़के नेपाल की लड़की को ब्याह कर ले आते हैं और फिर यहां किसी दलाल के जरिए हरियाणा-पंजाब भेज देते हैं और बीच में खुद दलाली खा लेते हैं। ऐसे ही जो दलाल नेपाल में सक्रिय हैं, वो खुद वहां की लड़कियों को काम का झांसा देकर बिहार लाते हैं और फिर यहां दलालों को बेच देते हैं। इन लोगों का टारगेट पिछ़ड़े गांव होते हैं, जहां लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं और गरीबी ज्यादा है।

शादी करने वाले लड़के के साथ ही गिरोह में शामिल लोगों पर भी पुलिस ने कार्रवाई की है, लेकिन यह काम रुक नहीं रहा।

लॉकडाउन में ही नाबालिग बच्ची की शादी का मामला रामनगर में भी सामने आया। मां-बाप ने बेटी की शादी सिर्फ इसलिए करवा दी क्योंकि उनकी आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। दोनों परिवारों ने आपसी सहमति से शादी की। लड़का बालिग था, लड़की नाबालिग। हालांकि, इस मामले में लड़का बाहर का नहीं था बल्कि बिहार का ही था। सुपौल में एक अखबार के लिए रिपोर्टिंग करने वाले प्रवीण कुमार मंडल ने बताया कि, जिन गरीब मां-बाप की तीन-चार लड़कियां होती हैं, वे लड़कियों की शादी इसी तरह कर देते हैं।

पिछले पांच सालों में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ा है, क्योंकि गांव में लोगों के पास काम-धंधा ही नहीं है। अब घर कैसे चलाएं? कुछ मामले पता चलते हैं तो पुलिस को सूचना दे देते हैं, लेकिन आजकल सब बहुत गुपचुप हो जाता है। किसी को भनक ही नहीं लगती। सब होने के बाद गांव वालों को पता चल पाता है। लड़की का परिवार ना तो लड़के बारे में छानबीन करता है और ना ही उसका घर देखने जाता है। ऐसे लोग कम पढ़े-लिखे और बहुत गरीब होते हैं। इसलिए लड़का जो बातें करता है, वही इन्हें सही लगती हैं। दलाल ही लड़कों के रिश्तेदार बनकर आते हैं और सब तय करवा देते हैं।

ग्राम विकास परिषद के को-ऑर्डिनेटर राजेश कहते हैं हम 47 गांवों में अपना नेटवर्क बना चुके हैं। हमारी विजिलेंस कमेटी हैं। सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं। किशोर-किशोरी समूह हैं। अब इन गांवों में कुछ भी होता है तो हमारे किसी ना किसी सदस्य को जानकारी मिल जाती है। जानकारी मिलते ही हम प्रशासन को इन्फॉर्म करते हैं। कई बार प्रशासन मदद करता है, कई बार नहीं करता।

जब मदद नहीं मिलती तो हम ग्रामीणों के साथ मिलकर खुद ही शादी रुकवा देते हैं। बाहर से आने वालों का पहला टारगेट नाबालिग लड़कियां होती हैं। हालांकि, बालिग लड़कियों के भी बहुत मामले आते हैं। अभी दलाल फिर सक्रिय हैं, क्योंकि गरीब लोग हाईवे पर रह रहे हैं। कोरोना के चलते कोई भीड़ नहीं है। ऐसे में दलालों का काम आसान हो गया है। इस माहौल को देखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गए हैं।



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