शहर में गुरुवार को कोरोना के 99 नए मरीज मिले, जबकि एक की मौत हो गई। कुल 1565 सैंपल की जांच में 1444 निगेटिव मिले हैं। पॉजिटिव दर 6.32 रही है, जो लगातार चिंता का विषय बनी हुई है। 30 मरीज स्वस्थ होकर घर पहुंचे। अब तक 4549 स्वस्थ हो चुके। इन सबके बीच लोगों की लापरवाही के कारण संक्रमित क्षेत्रों और मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अभी तक 10-12 इलाके रोज चिह्नित किए जा रहे थे, लेकिन अब 21 नए क्षेत्रों में भी कोरोना फैला है। भगवानदीन नगर, ऋषि विहार, द्वारकाधीश कॉलोनी, संजय गांधी नगर, सुल्फाखेड़ी इंदिरा नगर, सांवेर वार्ड 5, मालवा काउंटी मांगलिया, महू का तांगा खाना, ड्रीम सिटी तलावली चांदा, जल विहार कॉलोनी, प्रगति विहार बिचौली हप्सी, सिमरोल, हेवन्स गार्डन बोरखेड़ी, अनिल नगर, गंगाबाई जोशी नगर, रेशम गली, हाथी चौक ग्राम धन्नड़, शेल्बी हॉस्पिटल से लगे क्षेत्र में मरीज मिले हैं।
25 मई के बाद पॉजिटिव रेट 7 फीसदी के पार
कोरोना मरीजों का पॉजिटिव रेट 7.72 फीसदी पर पहुंच गया है। जून और जुलाई के पहले हफ्ते में यह घटकर 2 फीसदी हो गया था, लेकिन जैसे ही मरीज बढ़ने लगे, इसमें भी बढ़ोतरी हुई। 24 मार्च से अब तक का रिकॉर्ड देखें तो 25 मई को ये 7 फीसदी था, उसके 57 दिन बाद फिर 7 के पार हुआ है। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि आने वाले दिनों में ये घटकर 5 के आसपास आ जाएगा।
सब्जी मंडी, किराना, दूध डेयरी और मेडिकल दुकान से सिर्फ 3.75 फीसदी हुए संक्रमित
इंदौर में कोरोना फैलने की वजह बताई जा रही सब्जी मंडी, किराना और मेडिकल दुकान असल में उतने बड़े कारण हैं नहीं। हाल ही में स्वास्थ्य विभाग की पड़ताल और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के आधार पर जो आंकड़े सामने आए हैं, उसके मुताबिक, कुल संक्रमितों में से सिर्फ 3.75 फीसदी मरीज ही इन जगहों पर जाने से बीमार हुए। ज्यादातर तो अस्पताल जाने या वहां सेवा देने (मेडिकल स्टॉफ), मरीजों के संपर्क में आने, कंटेनमेंट एरिया में जाने से पॉजिटिव हो गए।
सबसे ज्यादा 142 मौतें अप्रैल में
कोरोना संक्रमण में मृत्यु दर छुपाने के लिए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने 80 मौतों के आंकड़े में हेरफेर किया। अप्रैल में जब कोरोना चरम पर था, तब 142 मरीजों की मृत्यु हो चुकी थी, लेकिन विभाग 72 ही बताता रहा। इसका नतीजा ये हुआ कि मई और जून में भी बैकलॉग की ये संख्या क्लीयर नहीं हो सकी और विभाग लीपापोती के लिए जुलाई तक मृतकों के आंकड़े नए-पुराने जोड़कर देता रहा। मई में ये स्थिति और बिगड़ी, जब मौतें तो 219 हो चुकी थीं, पर स्वास्थ्य विभाग बुलेटिन में 132 ही दर्शा रहा था। अफसरों का इसके पीछे वही तर्क है कि निजी अस्पतालों के आंकड़ों से मिलान में देरी से ये गड़बड़ हुई, जबकि अस्पताल प्रबंधन पहले ही कह चुका है कि प्रोटोकॉल के चलते किसी भी मृत्यु के मामले में उन्होंने सूचना देने में कोई देरी नहीं की। हालांकि अब अफसरों का कहना है कि बैकलॉग क्लीयर हो चुका है, यही वजह है कि तीन-चार दिन से एक या दो मौत ही रजिस्टर्ड हो रही।