तुलसीदास के अखाड़े में 450 सालों से हो रही कुश्ती, लड़कियां भी हो रहीं ट्रेंड, यहां के पहलवान सेना और सरकारी महकमों में भी नौकरी पा रहे हैं

Posted By: Himmat Jaithwar
7/20/2020

सुबह के छह बजते ही तुलसी घाट के पीछे अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास में पहलवानों का जुटना शुरू हो जाता है। यह साधारण अखाड़ा नहीं है। इसकी स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। बीते करीब 450 वर्षों से लगातार यहां पहलवान प्रैक्टिस कर रहे हैं। कुछ तो पीढ़ियों से। इसे अखाड़ा स्वामीनाथ के नाम से भी जाना जाता है।

फिलहाल यहां सौ से अधिक पहलवान आते हैं। एक समय भारत केसरी, उत्तर प्रदेश केसरी जैसे पहलवान देने वाले इस अखाड़े से आज हर वर्ष दो या चार पहलवान स्पोर्ट्स कोटे से सेना और सरकारी महकमों में नौकरी पाते हैं। बीते चार वर्षों से लड़कियां भी कुश्ती सीखने आती हैं।

अखाड़ा अस्सी घाट का हिस्सा है

अखाड़े के महंत और बीएचयू आईआईटी में प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्रा कहते हैं कि यह तुलसीघाट अखाड़ा अस्सी घाट का ही एक हिस्सा है। तुलसीदास जी ने यहीं रहकर किष्किन्धा कांड और उसके बाद की रामचरित मानस लिखी थी। मिश्रा बताते हैं कि स्थापना का सही समय तो नहीं पता, लेकिन इस अखाड़े को करीब 450 वर्ष हो गए होंगे।

मैं खुद अपनी 14वीं पीढ़ी से हूं जो यहां पहलवानी कर रहा हूं। अखाड़े से मेवा पहलवान, भारत केसरी कल्लू पहलवान और उत्तर प्रदेश केसरी श्यामलाल पहलवान निकले हैं। अभी भी सौ से अधिक पहलवान रोजाना यहां कुश्ती सीखने आते हैं।

2016 से लड़कियों को अखाड़े से जोड़ा गया 

वर्ष 2016 से लड़कियों को भी अखाड़े से जोड़ा गया है। हर साल नवंबर में वार्षिक मीट होती है, जिसमें पूरे प्रदेश से पहलवान आते हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स, पटियाला से रेसलिंग में डिप्लोमा करने वाले विजय कुमार यादव अखाड़े के कोच हैं। विजय कहते हैं कि यहां की बच्चियां राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहीं हैं।

खुशी, पूजा, गुनगुन स्कूल वर्ग में नेशनल लेवल पर कुश्ती कर रही हैं। वहीं प्रशांत यादव ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी लेवल पर खेल चुके हैं। अशोक पाल सीआरपीएफ में, रामप्रवेश, चंदन यादव और गुलाब यादव सेना-बीएसएफ में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी कर रहे हैं।



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