भोपाल। मध्यप्रदेश में एक के बाद एक 24 विधायक कमलनाथ को अपना नेता मानने से इनकार करते हुए कांग्रेस पार्टी और विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं। बिकाऊ-टिकाऊ बयानों के बावजूद यह हालात किसी भी नेता के अस्तित्व के लिए संकट का विषय बन जाते हैं। स्वभाविक है कमलनाथ की 40 साल की राजनीति दांव पर लग गई है। इसलिए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने शेष बचे सभी कांग्रेस विधायकों को बुलाकर शपथ दिलवाई कि कोई भी विधायक किसी भी स्थिति में कांग्रेस पार्टी छोड़कर नहीं जाएगा।
विधायकों से पहले कहा था यदि कुछ मिल रहा है तो ले लो अब वन-टू-वन चर्चा
दरअसल, कमलनाथ ने 15 महीने में इतनी गलतियां की कि 40 साल का अनुभव और गांधी परिवार से नजदीकी का जादू काम नहीं कर पाया। मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले विधायकों ने कमलनाथ से कहा था कि उनके पास कुछ प्रस्ताव आ रहे हैं। तब कमलनाथ ने वन-टू-वन चर्चा करने के बजाए मीडिया के सामने आकर बयान दिया था कि यदि विधायकों को कहीं से कुछ मिल रहा है तो ले ले। इस तरह उन्होंने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था कि इस मुद्दे पर वह कोई बात करना नहीं चाहते और अब प्रद्युम्न लोधी और सुमित्रा कासेडकर के जाने के बाद कमलनाथ ने शेष बचे सभी विधायकों से वन-टू-वन चर्चा की। इस दौरान यह भी जानने की कोशिश की कि किस विधायक के पास किस तरह का ऑफर आ रहा है।
यदि 5 विधायक और चले गए कमलनाथ से राजनीति रुठ जाएगी
कांग्रेस पार्टी में कमलनाथ के लिए यह संकट का समय चल रहा है। मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित होने के बाद कमलनाथ ने सोशल मीडिया अभियान के दौरान जिस तरह से खुद को मध्य प्रदेश का सबसे सफल राजनेता घोषित किया था, एक-एक करके सारी परतें खुलती जा रही है। चुनाव के दौरान बसपा ने गठबंधन करने से इंकार कर दिया, लोकसभा का चुनाव हार चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया को हर कदम पर जलील करने (राजधानी भोपाल में एक सरकारी बंगला तक नहीं दिया) के बावजूद उनके साथ ही विधायकों को आकर्षित नहीं कर पाए, विधायकों को एवं मध्य प्रदेश की राजनीति से जुड़े लोगों के आत्म सम्मान को चोट पहुंचाने वाले बयान दिए। सत्ता परिवर्तन के बाद दो विधायक इस्तीफा देकर चले गए। पब्लिक में भले ही बिकाऊ-टिकाऊ के बयान और बंद कमरे में दिग्विजय सिंह को जिम्मेदार ठहरा दिया जाए परंतु सच सिर्फ एक ही है और वह यह कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कमलनाथ थे। वह अपनी कुर्सी बचा नहीं पाए। और अब प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी खतरे में है। यदि इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र ना होते, तो शायद हाईकमान की किचन केबिनेट के शिकार हो चुके होते हैं।