नई दिल्ली/जयपुर
राजस्थान की राजनीति के 'जादूगर' माने जाने वाले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने एक बार फिर से अपना दांव दिखाया। उन्होंने आंकड़ों के जरिए न केवल अपने उन विरोधियों को चुप कर दिया जो तख्तापलट की योजना बना रहे थे, बल्कि अपनी पार्टी के सामने भी अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास कराया। वो जिस तरह से पार्टी और सरकार में बगावत के बीच सीएम की कुर्सी बचाने में सफल रहे, ये उनके रणनीतिक कौशल का ही नतीजा है। ये कोई पहली बार नहीं है जब कांग्रेस आलाकमान ने उन पर भरोसा जताया है।
गांधी परिवार के करीबी बने रहे गहलोत
अशोक गहलोत की सियासी पारी पर नजर डालें तो उन्होंने बड़ी ही सफाई से अपने प्रतिद्वंद्वियों के बीच से अपनी राह बनाई। गहलोत ने अपने दांव से जनार्दन सिंह गहलोत, हरिदेव जोशी, पारसराम मदेरणा, सी.पी. जोशी और अब सचिन पायलट जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ा। कांग्रेस में भी उन्हें जो जिम्मेदारी दी गई उसे निभाने से नहीं हिचके। हालांकि, इस दौरान कई बार उन्हें विफलताओं का भी सामना करना पड़ा, लेकिन गहलोत हमेशा गांधी परिवार के करीबी बने रहे। वो वर्तमान कांग्रेस नेताओं में अकेले ऐसे नेता हैं जो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी यानी पूरे गांधी परिवार की लगातार पसंद बने रहे हैं।
इसलिए राजस्थान की राजनीति के 'जादूगर' कहलाते हैं गहलोत
स्वाभाविक रूप से बहुतों की आंख में अशोक गहलोत खटकते भी रहे, फिर भी उनका जादू बरकरार रहा। उन्हें राजनीति का जादूगर इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि उनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत राजस्थान के जाने-माने जादूगर थे। पिता के साथ रहते हुए अशोक गहलोत ने जादू की कई ट्रिक्स सीख ली थीं। जिसे उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में कई बार राहुल और प्रियंका गांधी के सामने दिखाया भी था।
सचिन पायलट Vs अशोक गहलोत
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद, सचिन पायलट ने मान लिया कि मुख्यमंत्री का पद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते उन्हें ही मिलेगा। इसकी वजह भी थी कि उन्होंने सूबे में पूरे पांच साल जमकर मेहनत की थी। लेकिन नतीजों के बाद सोनिया गांधी और प्रियंका ने गहलोत का समर्थन किया और फिर राहुल को भी उनके साथ जाने के लिए राजी होना पड़ा। उस समय लिया गया फैसला पायलट के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था। मौजूदा समय में राजस्थान कांग्रेस का टकराव उसी समय से शुरू हुआ माना जा रहा है।
इस ट्रिक से गहलोत ने साधा सियासी समीकरण
फिलहाल मौजूदा सियासी स्थिति में गहलोत को पता है कि ट्रंप कार्ड उनके पक्ष में हैं। राजस्थान विधानसभा में 13 निर्दलीय विधायकों में से 11 उनका समर्थन कर रहे हैं। उनमें कई ऐसे भी हैं जिन्हें 2018 में कांग्रेस ने टिकट देने से इनकार कर दिया था, और फिर उन्होंने निर्दलीय चुनाव में उतरकर जीत दर्ज की थी। इस तरह से गहलोत ने इस दांव के जरिए अपनी सरकार बचा ली है। पार्टी की मानें तो 107 से ज्यादा विधायकों का गहलोत सरकार को समर्थन है। लेकिन जिस तरह से पार्टी में विद्रोह सामने आया इसने कहीं न कहीं कांग्रेस आलाकमान की नाकामी को जरूर उजागर कर दिया।
क्या राजस्थान की स्थिति समझने कांग्रेस नेतृत्व से हुई चूक
जानकारी के मुताबिक, पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल को इस सियासी घटनाक्रम का ज्यादा पता समय से नहीं चल सका। इसे उनकी बड़ी नाकामी माना जा रहा है। यही नहीं 10 अगस्त को सोनिया गांधी के अंतरिम पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल भी पूरा हो रहा है लेकिन अभी तक इसको लेकर पार्टी के महासचिव के नाते वेणुगोपाल की ओर से इसको लेकर कोई बैठक या फिर चर्चा की जानकारी नहीं मिली है। साथ ही सचिन पायलट को लेकर भी पार्टी के फैसले का इंतजार सभी को है।