कोलकाता. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अगले साल होना है। लेकिन, राजनीतिक सरगर्मी अभी से शुरू हो गई है। कोलकाता में ‘बांग्लार गर्बो ममता' के पोस्टर टंगे हैं। वर्चुअल रैलियों का दौर शुरू है। डोर-टू-डोर संपर्क के तहत पर्चे बांटे जा रहे हैं। भाजपा केंद्र सरकार की उपलब्धियों को लेकर रोज साढ़े चार- पांच लाख पर्चे बांट रही है। टारगेट 1 करोड़ घरों तक पहुंचने का है। शनिवार तक 80 लाख घरों तक पर्चा बांटा जा चुका है।
यहां सबकुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दोनों के ऊपर ‘माता' (मेरा आदमी, तेरा आदमी) के इर्द-गिर्द तेजी से घूमने लगा है। माता की बात इसलिए कि यहां पार्टियां एक-एक व्यक्ति को किसी न किसी दल का कैडर मानती हैं और उसी हिसाब से संवाद करती हैं। यहां जाति के नाम पर नहीं, मोहल्ले, टोले, गांव, पंचायतों के लोग पार्टियों के नाम पर बंटे हैं। लोग खुलेआम कहते हैं कि हम इस पार्टी के हैं।
यहां दादा और दीदी की ही चलती है
लोगों का कहना है कि बंगाल में वही होता है जो ‘दादा' और ‘दीदी' चाहते हैं। दादा यानी इलाके का दबंग, वह कोई भी हो सकता है। पंचायत सदस्य से लेकर सांसद व विधायक तक।
‘दीदी' यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। भाजपा ने ममता और उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर जंग छेड़ रखी है तो ममता बात-बात पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूकतीं। दोनों दल माहौल को इस तरह बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वाम दल और कांग्रेस के लिए सीमित स्पेस ही बचे।
टीएमसी के लिए प्रशांत किशोर बना रहे हैं रणनीति
संगठन के लिहाज से देखें तो भाजपा ने 23 जिलों वाले प.बंगाल में 29 जिला इकाइयां बनाई हैं। प्रत्येक की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्रियों और राज्य के वरिष्ठ नेताओं को देने की तैयारी है। तृणमूल की रणनीति को पूरी गोपनीयता के साथ पर्दे के पीछे से अंजाम देने में प्रशांत किशोर लगे हैं।
कांग्रेस और वाम दलों को उम्मीद है कि तृणमूल और भाजपा में गए उसके लोग वापस लौट आएंगे। लोकसभा चुनाव में दोनों दलों का 20.69% वोट खिसक गया था। सबसे ज्यादा वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ था। राहत और रोजगार के सवाल पर दोनों दल अपने आधार को बनाने में जुटे हैं। इनकी निगाह 27% से ज्यादा वाले अल्पसंख्यक मतों की वापसी पर है।
वर्चुअल रैलियों के सहारे वोट बैंक साधने की कोशिश
भाजपा के बड़े नेताओं की वर्चुअल रैलियों के बाद अब विधानसभा के हिसाब से रैलियां शुरू हो गईं हैं। इन रैलियों का मुख्य मुद्दा कोरोना से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से घोषित 20 लाख करोड़ का पैकेज और ममता सरकार की विफलता को लोगों के सामने रखना है।
इधर, तृणमूल की रणनीति बूथों तक पहुंचना है। पार्टी के दिवंगत कार्यकर्ताओं की याद में हर साल 21 जुलाई को कोलकाता में होने वाले 'शहीद समारोह' को कोरोना के चलते वर्चुअल रैली में तब्दील कर दिया गया है। इस दिन ममता बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगी। दोनों पक्ष की तैयारियां बता रहीं कि चुनाव में कांटे की जोर-आजमाइश होगी, जिसकी बुनियाद लोकसभा चुनाव में रखी जा चुकी है।
यही वजह है कि पार्टी कोई भी हो, नेता बातचीत में 2019 लोकसभा चुनाव में मिले वोटों का जिक्र करना नहीं भूलते और उसी हिसाब से गणित भी समझाते हैं। प्रदेश भाजपा के महासचिव संजय सिंह हो या तृणमूल सरकार के मंत्री मंटू राम पाखिरा, दोनों लोकसभा और उसके बाद हुए उप चुनाव के नतीजों के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हैं। सिंह कहते हैं कि तृणमूल से आगे निकलने के लिए हमें सिर्फ 17,28,828 वोटों का गैप पाटना है। वहीं, पाखिरा का तर्क है लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फर्क है।
लोकसभा चुनाव के गणित पर भी नजर
बड़ी-बड़ी मार्जिन की लीड लेने वाली भाजपा उत्तर दिनाजपुर की कलियागंज और खड़गपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में उतनी ही बड़ी मार्जिन से हारी। खड़गपुर सीट तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की ही थी। भाजपा पहले यह तो बताए प्रदेश में उसका चेहरा कौन होगा? दीदी के सामने दिलीप घोष का कोई कद नहीं है।
'चेहरे' के सवाल पर संजय सिंह कहते हैं, भाजपा चेहरे पर नहीं, विचारधारा पर चलती है। हमें अकेले इतनी सीटें मिलेंगी कि हम सरकार बना लेंगे। वाम मोर्चा के सत्ता में रहते टीएमसी को 2009 के लोकसभा चुनाव में 19 सीटें मिली थीं। उसके दो साल बाद विधानसभा चुनाव में वह सत्ता में आ गई। भाजपा को भी वैसी ही उम्मीद है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था। यही वजह है कि इस बार ममता को प्रशांत किशोर की मदद लेनी पड़ी है। मौजूदा दौर में बीजेपी व केंद्र के प्रति ममता बनर्जी जितनी आक्रामक दिखाई रही हैं, उससे ज्यादा बचाव की मुद्रा में हैं। समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री और उत्तर बंगाल में आदिवासियों और दलितों के बीच सक्रिय रंजीत कुमार राय बताते हैं कि सवाल यह नहीं है कि किसकी स्थिति मजबूत है या कमजोर। लोग किसके पक्ष में हैं या किसके पक्ष में नहीं।
कुछ लोगों में नाराजगी बीजेपी और टीएमसी दोनों के प्रति
राय ने कहा कि आमलोग बीजेपी और टीएमसी से भी असंतुष्ट हैं। कोरोना महामारी में आम आदमी की समस्या कम करने की बजाय दोनों प्रमुख दल अपनी-अपनी राजनीति को धार देने में जुटे हैं। कोरोना के कारण पैदा हुई समस्याएं, मंहगाई, बेरोजगारी को लेकर लोगों में केंद्र के खिलाफ नाराजगी है, तो राज्य में भ्रष्टाचार, दबंगई, अव्यवस्था के लिए टीएमसी के प्रति गुस्सा है।
राय का कहना है कि इस बार चुनाव में कांग्रेस, सीपीएम व सीपीआई का गठजोड़ भी अहम हो सकता है। यह गठजोड़ टीएमसी और बीजेपी, दोनों का वोट काटेगा। टीएमसी का ज्यादा वोट कटेगा तो बीजेपी को फायदा, बीजेपी का ज्यादा वोट कटने पर टीएमसी को फायदा होगा। पं. बंगाल में पुलिस बल के इस्तेमाल की अलग राजनीतिक तकनीक है। केंद्र अपने पुलिस बल का इस्तेमाल करेगा। राज्य सरकार अपनी पुलिस का इस्तेमाल करेगी। चुनाव की निष्पक्षता पर भी नतीजा निर्भर करेगा।
गठबंधन की भी हो सकती है गुंजाइश
कवि व नाट्यकर्मी महेश जायसवाल का कहना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने के लिए बीजेपी विरोधी वोटों को बंटने से रोकने की पूरी कोशिश करेंगी। वह कांग्रेस और वाम दलों से चुनावी तालमेल की पेशकश कर सकती हैं।
वाम दलों से तालमेल नहीं होने की स्थिति में वो कांग्रेस से चुनावी तालमेल के लिए तैयार रहेंगी। कांग्रेस चाहती है कि उसकी स्थिति सुधरे। विधानसभा चुनाव में उसकी स्थिति सुधरने और विश्वसनीयता बढ़ने पर उसे अगले लोकसभा चुनाव में फायदा होता सकता है।
उत्तर चौबीस परगना जिले के बैरकपुर कोर्ट के जाने माने वकील रामजीत राम की मानें तो आने वाले विधानसभा चुनाव में धांधली के सारे पुराने रिकॉर्ड टूट जाएंगे। धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल खुल कर और जमकर होगा। टीएमसी के भीतर ही चुनाव के वक्त धोखा देने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या एकाएक बढ़ने की संभावना है। लोकसभा चुनाव में इसकी बानगी दिख चुकी है। ममता बनर्जी को अंदर और बाहर, दोनों जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, उनके लिए सत्ता बचाना आसान नहीं होगा। चुनाव आयोग और केंद्रीय बलों की भूमिका भी खास मायने रखेगी।