गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में निष्कलंक महादेव मंदिर है। यहां पर सागर की लहरें रोज शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं। लोग पानी में पैदल चलकर ही दर्शन करने जाते हैं। इसके लिए उन्हें ज्वार के उतरने का इंतजार करना पड़ता है। भारी ज्वार के वक्त केवल मंदिर की पताका और खम्भा ही नजर आता है। इसे देखकर कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता की समुद्र में महादेव का प्राचीन मंदिर है। भगवान शिव ने दिए थे दर्शन इस मंदिर में शिवजी के पांच स्वयंभू शिवलिंग हैं। पांचों शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी है। पांचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी हैं। जिसे पांडव तालाब कहते हैं। श्रद्धालु पहले उसमें अपने हाथ पैर धोते हैं और फिर शिवलिंगों की पूजा अर्चना करते हैं। अमावस्या पर होती है विशेष पूजा चूंकि यहां पर आकर पांडवों को अपने भाइयों के कलंक से मुक्ति मिली थी, इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते हैं। भाद्रपद महीने की अमावस्या पर यहां मेला लगता है जिसे भाद्रवी कहा जाता है। हर अमावस पर इस मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। हालांकि पूर्णिमा और अमावस के दिन ज्वार अधिक सक्रिय रहता है फिर भी श्रद्धालु ज्वार के उतर जाने इंतजार करते हैं और फिर भगवान शिव का दर्शन करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आकर भक्तों और श्रद्धालुओं के सारे पाप धुल जाते हैं। यहां मिली थी पांडवों को पाप से मुक्ति इनका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। महाभारत की युद्ध समाप्ति के बाद पांडव बड़े दुखी हुए कि उन्हें अपने ही सगे-सम्बन्धि यों की हत्या का पाप लगा है। श्रीकृष्ण के कहे अनुसार वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पार पहुंचे और भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे। भगवान भोलेनाथ उनकी तपस्या से खुश हुए और पांचो भाइयों को लिंग रूप में अलग-अलग दर्शन दिए। वहीं पांचों शिवलिंग अभी भी हैं।