भोपाल। किसने कितने रोड़े अटकाए और कौन किस विभाग की जिद पर अड़ा है, आम जनता को इन सब पचड़ों में पढ़ने की जरूरत नहीं है। मैसेज तो केवल एक ही नजर आ रहा है और वह यह कि भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के लिए अयोग्य साबित हो गए हैं। मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद 1 सप्ताह तक मंत्रियों के बीच विभागों का वितरण ना हो पाना मुख्यमंत्री की असफलता को प्रमाणित करता है।
शिवराज सिंह को सहानुभूति नहीं मिल सकती
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हुए व्यक्ति को कई प्रकार की राजनीतिक साजिशों का सामना करना ही पड़ता है। उसके विरोधी उसे कुर्सी से गिराने के लिए हमेशा कोशिश करते रहते हैं। हर मंत्री चाहता है कि उसे उसकी मर्जी का विभाग मिले। किसी भी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व हमेशा राज्य की सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश करता है। केंद्रीय नेतृत्व की मंजूरी और अनापत्ति अनिवार्य होती ही है। इस बार कुछ भी ऐसा नहीं हो रहा है जो नया हो, या फिर अजीब सा हो।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले स्थिति स्पष्ट कर लेनी चाहिए थी
श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जब अपने साथी विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे थे, तभी यह स्पष्ट हो गया था कि वह सत्ता में महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा करेंगे। केंद्रीय नेतृत्व से उनकी बातचीत हुई है। सुना है नियम और शर्तें भी तय हुई है। ऐसी स्थिति में शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले अपनी स्थिति स्पष्ट कर लेनी चाहिए थी। बाबूलाल गौर को हटाकर शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री बनाना और कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को गिराकर सत्ता में आना, दो अलग-अलग बातें हैं। यदि शिवराज सिंह चौहान में ऐसी सिचुएशन को हैंडल करने की क्षमता नहीं थी, तो बेहतर होता कि अपनी भद पिटवाने के बजाए शपथ ग्रहण ही ना करते।