श्रीनगर. पिछले शनिवार की बात है। साउथ कश्मीर के कुलगाम में आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच गोलीबारी जारी थी। कुछ देर के लिए वहां सन्नाटा छा गया। फिर खुसफुसाहट के बीच एक छोटे लाउडस्पीकर पर एक आवाज आई। ये आवाज उस एनकाउंटर में फंसे आतंकवादी हिलाल अहमद के मां-बाप की थी। वो हिलाल से हथियार छोड़ सरेंडर करने की गुहार लगा रहे थे।
सीन काफी इमोशनल कर देने वाला था। वो बार-बार अपील कर रहे थे, लेकिन उनका बेटा सरेंडर को तैयार नहीं हुआ। उसने मां-बाप की गुहार भी नहीं सुनी। पूरे दिन चली गोलीबारी में हिलाल और उसके साथ वहां मौजूद आतंकी, दोनों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया।
ये कोई पहला मौका नहीं था जब सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों को यूं एनकाउंटर के दौरान आखिरी मौके पर सरेंडर करने का मौका दिया हो। हालांकि, इन कोशिशों का कभी कोई नतीजा नहीं निकला। शायद यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में सरकार और सुरक्षाबल मिलकर नई सरेंडर पॉलिसी लाने की तैयारी कर रहे हैं। ये कोशिश युवाओं को आतंक का रास्ता छोड़ने के लिए राजी करने और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की है।
पिछले कुछ दिनों में कश्मीर में स्थानीय युवाओं के आतंकी बनने की संख्या में कमी आई है। इस साल जनवरी से जून के बीच 67 स्थानीय कश्मीरी युवा आतंकवादी बने थे, जबकि पिछले साल ये संख्या 129 थी। ये अहम है कि इस साल स्थानीय युवाओं के आतंकवादी बनने की संख्या 48% गिर गई है।
आईजी पुलिस विजय कुमार के मुताबिक, उन्होंने कश्मीर में आतंकियों के पैरेंट्स से अपील की है कि वो अपने बच्चों को आतंकवाद से लौटने को कहें। हम उनके खिलाफ कोई केस रजिस्टर नहीं करेंगे।
25 जून को जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गर्वनर जीसी मुर्मू ने यूनिफाइड कमांड की एक बैठक में हिस्सा लिया। इसका हिस्सा पुलिस, सीआरपीएफ और सेना से जुड़े बड़े अफसर थे। बैठक में ही सरेंडर पॉलिसी पर दोबारा काम करने की बात कही गई।
ये इसलिए भी खास है क्योंकि सरकार ने हाल ही में मारे गए आतंकवादियों के बच्चों को स्कॉलरशिप देने का फैसला किया है। इसे लेकर एक सरकारी विज्ञापन पिछले महीने अखबारों में बतौर इश्तेहार छापा गया था। इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ।
कश्मीर में आतंकियों के लिए सरेंडर पॉलिसी सबसे पहले 1995 में लाई गई थी, जिसमें सरेंडर करने वाले आतंकवादी को डेढ़ लाख रुपए की एफडी और वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती थी। इस पॉलिसी के आने के बाद 2200 आतंकवादियों ने समर्पण किया।
इसके बाद 2004 में लाई रिहैबिलिटेशन पॉलिसी में सरेंडर करने वाले आतंकवादियों को डेढ़ लाख रुपए के अलावा हर महीने 2000 रुपए दिए जाने लगे। इस पॉलिसी का फायदा 400 से ज्यादा आतंकवादियों ने उठाया।
फिर 2010 में सीमा पार जाकर आतंकवादी बने लोगों को वापस बुलाने के लिए एक और पॉलिसी लाई गई। ये उन आतंकवादियों के लिए थी जो आतंक का रास्ता छोड़ कश्मीर लौटना चाहते थे। इसके लिए उन आतंकियों के लौटने के चार एंट्री पॉइंट रखे गए।
हालांकि, ज्यादातर जो लौटे वो इन चार पॉइंट्स की जगह भारत-नेपाल बॉर्डर के रास्ते आए। पॉलिसी में जो चार पॉइंट बनाए गए वो थे पंजाब का वाघा, कश्मीर का सलामाबाद, पुंछ का चकन दा बाग और नई दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट। इनमें वो लड़के भी थे जो पाकिस्तान में हथियारों की ट्रेनिंग के लिए चले गए और वहां जाकर शादी कर ली, जिनके बच्चे भी थे।
पिछले महीने जून में सरेंडर कर चुके आतंकवादियों की पत्नी ने श्रीनगर में नागरिकता की मांग करते हुए प्रदर्शन किया था। ये वो आतंकी थे जो नेपाल के रास्ते कश्मीर लौटे थे। 2018 में नई दिल्ली ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक को सरेंडर पॉलिसी दोबारा तैयार करने को कहा था, जिससे जुड़े कुछ कागज 2019 में सामने आए थे।
2004-2007 के बीच एक साथ दर्जनों आतंकी बंदूक छोड़ आत्मसमपर्ण करते थे। लेकिन, पिछले दस सालों में सरेंडर के बमुश्किल इक्का-दुक्का केस ही आए हैं। आतंकवादियों के लिए बनाई गई इस सरेंडर पॉलिसी को ज्यादा सफलता नहीं मिली है। सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती है फिलहाल युवाओं को आतंकी बनने से रोकना।