जयपुर. राजधानी जयपुर में कोरोना संक्रमण की वजह से मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली यह कहानी है 40 वर्षीय हंसराज जोरावत की। हंसराज अजमेर जिले के अराईं कस्बे के देवपुरी गांव के रहने वाले थे। कोरोना की वजह से हंसराज की मौत ने ना सिर्फ पत्नी की मांग का सिंदूर उजाड़ दिया, बल्कि छह बेटियों और दो मासूम बेटों के सिर से पिता का साया भी छीन लिया। शनिवार को अंतिम संस्कार के समय बेटियों ने मां को संभाला और 15 दिन बाद चिता पर पिता के अंतिम दर्शन किए।
जयपुर के आदर्श नगर मोक्षधाम में लकड़ियों से सजी चिता पर पॉलिथिन में लिपटे हंसराज को आखिरी बार देखने के लिए अजमेर से पत्नी और बच्चे पहुंचे। चिता के पास खड़ी होकर रो रही अपनी बड़ी बहन मीनाक्षी की गोद में सबसे छोटा भाई यह सब देख रहा था। लेकिन, वह इस दुख से अनजान था। वह कभी मां को देखता, कभी बहन को। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद अन्य की आंखें भी भीग गईं।
भर्ती टिकट में गलत पता भरा होने से हंसराज के परिजन से नहीं हो सका संपर्क
हंसराज 16 जून को पॉजिटिव होने पर अजमेर से रैफर होकर जयपुर आए। यहां 24 जून को प्रतापनगर स्थित आरयूएचएस में दम तोड़ा। भर्ती टिकट में पता गांव देवपुरी, किशनगढ़ लिखा था। जबकि वे देवपुरी,अराईं के रहने वाले थे। ऐसे में प्रताप नगर पुलिस दो दिन तक परिजन काे तलाशने में जुटी रही। फार्म में उनके ही मोबाइल नंबर रिश्तेदार के कॉलम में लिखे हुए थे। पुलिस स्टाफ ने शव की पहचान कर परिजन को सूचना देनी चाही तो भर्ती टिकट में लिखा पता गलत निकला। मोबाइल नंबर हंसराज के थे। वह फोन बंद हो चुका था।
अन्य रिश्तेदारों के नंबर नहीं थे। ऐसे में हंसराज का शव दो दिन तक एसएमएस अस्पताल की मर्च्युरी में लावारिस के जैसे पड़ा रहा। आखिरकार, प्रताप नगर थाने के सब इंस्पेक्टर सुंदरलाल और हेडकांस्टेबल किशन सिंह नाग ने मोबाइल नंबरों के आधार पर पता जुटाया। तब मदनगंज किशनगढ़ के थानाप्रभारी ने देवपुरी गांव उनके इलाके में नहीं होना बताया। इसके बाद स्थानीय पुलिस ने अराईं कस्बे में संपर्क किया।
तब हंसराज के परिजन का पता चला। 26 जून को सुबह पुलिस ने हंसराज के घर पहुंचकर बेटी मीनाक्षी और उनकी पत्नी को सूचना दी। तब दोनों मां-बेटी, अपने छोटे भाई, मामा प्रभुलाल, ताऊ शिवराज और बुआ समेत कार किराए पर लेकर देर शाम को जयपुर पहुंचे। इसके बाद हेडकांस्टेबल किशनलाल ने कागजी प्रक्रिया पूरी कर शव परिजन को सुपुर्द किया। इसके बाद हंसराज का अंतिम संस्कार किया जा सका।
चार साल से किड़नी खराब थी, डायलिसिस करवाने गए तब कोरोना पॉजिटिव हो गए
हंसराज की बड़ी बेटी मीनाक्षी ने बताया कि पापा को चार साल पहले किडनी खराब होने के बारे में बताया गया था। उनका सप्ताह में तीन बार डायलिसिस होता था। लॉकडाउन में भी उपचार जारी रहा। मीनाक्षी के मुताबिक, आखिरी बार पापा 10 जून को अराईं में ही एक नर्सिंग होम में डायलिसिस के लिए गए थे। लेकिन, कोरोना संक्रमण की वजह से वह नर्सिंग होम बंद हो गया।
इसकी वजह से पापा का 13 जून को डायलिसिस नहीं हो सका। वे 14 जून को किशनगढ़ चले गए। वहां से उन्हें अजमेर रैफर कर दिया। वहीं, कोरोना पॉजिटिव होने पर उन्हें 16 जून को जयपुर में आरयूएचएस रैफर कर भर्ती करवाया गया। यहां वे करीब 7 दिन भर्ती रहे। लेकिन, डायलिसिस नहीं हो सका। इसी बीच 16 जून से 24 जून तक हंसराज की अपनी बेटी मीनाक्षी, उनके साले प्रभुलाल की मोबाइल फोन पर बातचीत होती रही। तब हंसराज ने कहा यहां किसी को मिलने नहीं देते हैं। इसलिए आने की जरूरत नहीं है। पापा अजमेर में गांव के आसपास मजदूरी कर परिवार के नौ सदस्यों की जिम्मेदारी उठा रहे थे।
पापा ने आखिरी बार कहा था- मैं दो-तीन दिन बाद घर आऊंगा, क्या पता था मौत की खबर आएगी
मीनाक्षी के मुताबिक, आखिरी बात 24 जून दोपहर करीब 12 बजे पापा से फोन पर बात हुई तो बोले- कल-परसों मेरा डायलिसिस होगा। इसके दो तीन दिन बाद मैं घर आ जाऊंगा। सब सही हो जाएगा। इसके बाद हंसराज की उसी दिन मौत हो गई। वहीं, परिजन का कहना है कि उन्होंने शाम को फोन किया तो कुछ देर तो घंटी गई। इसके बाद मोबाइल फोन बंद आने लगा। मीनाक्षी ने 25 जून को पंचायत में बातचीत की तो जवाब मिला कि तुम्हारे पापा ठीक है। वहां डॉक्टर इलाज कर रहे हैं। मोबाइल पर बातचीत नहीं करवा सकते।
पापा की मौत का उन्हें 26 जून को पता चला। जब स्थानीय पुलिस ने उन्हें इसकी सूचना दी। इसके पहले दो दिन तक वे पापा का मोबाइल बंद होने से परेशान होते रहे। घबराहट भी हुई। लेकिन, पापा उसी दिन हमारा साथ छोड़ गए। ये सपने में भी नहीं सोचा था। उनके रिश्तेदारों का कहना है कि संकट की इस घड़ी में हंसराज के बच्चों और पत्नी को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए। ताकि वे घर खर्च चला सकें।