भोपाल/जयपुर/पटना/रायपुर. पिछले तीन महीने से देशभर के थिएटर वीरान पड़े हैं। न कलाकार हैं न दर्शक, कोरोनाकाल में जो पर्दा गिरा वो अब तक नहीं उठ पाया है। पहली बार जब 25 मार्च को देशभर में लॉकडाउन लगा तो कलाकारों को लगा कि चलो 21 दिन ही तो हैं, लेकिन उसके बाद लगातार तीन लॉकडाउन ने उनका सबकुछ लॉक कर दिया।
1 जून से जब अनलॉक-1 की शुरुआत हुई तो थोड़ी आस जगी कि धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर लौट आएगा, लेकिन अभी तक रंगमंच पर पाबंदी जारी है। इन तीन महीनों में थिएटर से जुड़े कलाकारों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा, इसको लेकर दैनिक भास्कर की टीम ने देश के चार बड़े शहर भोपाल, जयपुर, पटना और रायपुर के रंगकर्मियों से बातचीत की।
हमारे लिए काल बनकर आया कोरोना
भोपाल के बालेंद्र सिंह बालू, 26 साल से थियेटर से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ जब तीन-तीन महीने घर पर बैठना पड़ा। कोरोना हमारे लिए काल बन कर आया। जो कलाकार गाना गाकर, एक्टिंग करके कुछ कमा रहे थे, वह सब कुछ बंद हो गया। हमारे पास जो सेविंग्स थीं वह भी अब नहीं बची। सैकड़ों कलाकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया।
वे बताते हैं कि कोरोनाकाल में एक अच्छी बात दिखी कि सभी कलाकार एक मंच पर आए और जिसे जरूरत थी, उसकी मदद की। हमारी संस्था आर्टिस्ट वेलफेयर सोशल एसोशिएशन ने उन कलाकारों की मदद की जो भूखमरी की कगार पर आ गए थे। उन कलाकारों को ढूंढकर, उनके घर जाकर राशन का वितरण किया गया।
ऑनलाइन क्रिएटिविटी शेयर करना शुरू की
वे कहते हैं कि हमें सिखाया गया है 'शो इज मस्ट गो ऑन'। इसलिए हमने ऑनलाइन, यूट्यूब, फेसबुक और इंस्टाग्राम के जरिए कुछ न कुछ अपनी क्रिएटिविटी शेयर करना शुरू की ताकि हमारी कला डाउन न हो जाए। मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से कहानी पाठ का शुरू किया।
इसके बाद शिकागो (अमेरिका) के मंडी थिएटर ग्रुप से जुड़ा। उन्होंने 'क्वारैंटाइन थिएटर फेस्टिवल' का आयोजन किया, जिसमें हर शनिवार और रविवार शिकागो और इंडिया में प्ले चलाए गए। जिसमें मेरा एक सोलो परफार्मेंस 'पॉपकॉर्न' भी चलाया गया। इसकी काफी सराहना हुई।
थिएटर खुलने के सवाल पर- बालेंद्र कहते हैं कि एक नाटक को शुरू करने के लिए लाख-सवा लाख रुपए चाहिए, जो भी हमारी सेविंग्स थी। वह भी खर्च हो चुकी हैं। इसलिए हमें पहले फंड जुटाने पड़ेगें तभी थियेटर शुरू हो सकेगा।
थिएटर एक नशा है, यह बंद तभी होगा जब ब्रेन डेड हो जाएगा
भोपाल के ही वरिष्ठ रंगकर्मी केजी त्रिवेदी कहते हैं कि थियेटर एक नशा है, हम इसके एडिक्ट हो चुके हैं। शाम को 6 बजता है तो हमारे हाथ-पैर कुलबुलाने लगते हैं। लगता है हमें कुछ करना चाहिए। वे कहते हैं कि लॉकडाउन जरूर है, लेकिन काम बंद नहीं है, काम उस दिन बंद होगा, जिस दिन ब्रेन बंद हो जाएगा।
वे कहते हैं कि हमें थिएटर शुरू करने के लिए दिसंबर तक इंतजार करना पड़ेगा। तब तक हम अपना प्रोडक्शन तैयार कर रहे हैं। कोरोनाकाल के बाद थिएटर भी पहले की तरह नहीं रह जाएगा। पहले हमारी एक्टिंग टीम में 60-70 कलाकार होते थे, अब तीन-चार तक सीमित रखना पड़ेगा।
लॉकडाउन ने हमारा हाल दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर कर दिया
जयपुर के साबिर खान पिछले 45 साल से रंगमंच से जुड़े हैं। वे कहते हैं कि थियेटर हमारी जिंदगी है, इसमें हमारी आत्मा बसती हैं, हम कभी इससे अलग होने का सोच भी नहीं सकते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से हमारा हाल दिहाड़ी मजदूरों से भी बदतर हो गया है। उधार लेकर घर का खर्च चल रहा है। सरकार ने वादे तो बहुत किए लेकिन किसी को कई आर्थिक मदद नहीं मिली।
ब्रह्मपुरी के रंगकर्मी विशाल भट्ट 20 साल से इस कला से जुड़े हुए हैं। उनकी कई पीढ़ियां भी थियेटर से जुड़ी रही हैं, लेकिन कभी किसी को ऐसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने बताया कि सरकार की तरफ से कलाकारों के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाने और एक फिक्स अमाउंट देने की बात कही गई थी। लेकिन, अभी तक किसी को यह पता नहीं है कि किसके वीडियो सिलेक्ट हुए या किसको कितनी मदद मिली।
वे बताते हैं कि कोरोना ने हमें यह सिखाया कि कलाकार के पास दूसरे सोर्स भी होने चाहिए। अब रंगकर्मी थिएटर के बजाए डिजिटल प्लेटफार्म पर जा रहे हैं। जहां वे अपनी एक्टिंग के वीडियो डाल रहे हैं और थोड़ा- बहुत कमा रहे हैं।
50 साल के करियर में कभी थिएटर का इतना बुरा हाल नहीं देखा
रायपुर के राजकमल नायक, करीब 50 सालों से रंगमंच से जुड़े हैं। मशहूर निर्देशक हैं और संगीत नाटक अकादमी सम्मान पा चुके हैं। वे बताते हैं कि देश में करीब 6 करोड़ कलाकार थिएटर से जुड़े हैं। लॉकडाउन की वजह से आर्थिक स्थिति खराब हो गई है, जीवन गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है। मैंने 50 साल के करियर में कभी थिएटर का इतना बुरा हाल नहीं देखा। रंगमंच की रौनक कब तक लौटेगी कहा नहीं जा सकता है, कम से कम आठ महीने का वक्त तो लगेगा ही।
जलील रिजवी 1958 से थिएटर से जुड़े हैं। वे कहते हैं कि लॉकडाउन में मंच पर नाटक जरूर थमा है, लेकिन बोलना, लिखना और पढ़ना जारी है। हम थिएटर और अपनी कला नहीं छोड़ सकते हैं। रिजवी को उम्मीद है कि अभी बुरा वक्त है, लेकिन आगे कुछ बेहतर जरूर होगा।
कई कलाकार बेच रहे सब्जी
युवा रंगकर्मी और निर्देशक रोहित भूषणवार बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से कोई नया प्रोजेक्ट नहीं मिला है। 6 महीने से सबकुछ बंद है। कुछ स्कूलों के लिए नाटक और वर्क शॉप किया तो थोड़े पैसे मिले जिससे गुजारा किया, लेकिन अब तो वो भी खत्म हो गए। वे बताते हैं कि उनके कई साथी कलाकार डिप्रेस्ड हो गए हैं तो कई आर्थिक तंगी से निपटने के लिए सब्जी बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए ताकि कला जीवित रह सके।
लॉकडाउन ने हमारी कमर तोड़ दी
पटना के थिएटर आर्टिस्ट मनीष माहिवाल कहते हैं कि बिहार में तो पहले से ही कला को कम बढ़ावा दिया जाता रहा है, ऊपर से लॉकडाउन ने हमारी कमर तोड़ दी। पिछले सात महीने से एक भी पैसा नहीं मिला है।जो कलाकार पटना में किराए के मकान में रहकर नाटक करते थे उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा। ज्यादातर तो गांव चले गए हैं।
वे बताते हैं कि देश में धीरे-धीरे सबकुछ शुरू हो रहा है, लेकिन हमारे लिए तो दर्शक और भीड़ ही सबकुछ होती है, जो कोरोनाकाल में हम जुटा नहीं सकते। फिर नाटक कैसे करेंगे, किसके लिए करेंगे।
सरकार से नहीं मिली कोई मदद
मनीष माहिवाल कहते हैं कि सरकार ने कलाकारों के लिए किराया माफ करने का फरमान जारी किया था लेकिन किसी का किराया माफ नहीं हुआ। सरकार के नुक्कड़-नाटक के प्रोजेक्ट भी बंद हो गए हैं।
मनीष बताते हैं कि सरकार ने कहा था कि कोरोना को लेकर वीडियो बनाइए। जिस कलाकार का वीडियो सिलेक्ट होगा उसे एक-एक हजार रुपए दिए जाएंगे। कला मंत्री कह रहे हैं कि हम कलाकारों की टीम बना रहे हैं। लेकिन, अभी तक किसी को कोई मदद नहीं मिली है। मनीष ने कहा कि हमारी मांग है कि सोशल डिस्टेंसिंग के साथ थिएटर को खोलने की छूट दी जाए।
एक- दूसरे की मदद से चल रहा हमारा घर
धर्मेश मेहता पिछले 20 साल से थिएटर से जुड़े हैं। वे बताते हैं कि लॉकडाउन में हमारी रोजी-रोटी पर आफत आ गई है। यूं समझ लीजिए कि एक- दूसरे कलाकार की मदद से हमलोगों का घर चल रहा है। कला की जड़ से जुड़े हैं हम लोग इसलिए थिएटर छोड़ भी नहीं सकते।