हमीरपुर. शादी के दस साल बाद तक हम मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे तक में गए। खूब पूजा-पाठ किया। मन्नतें कीं। एक ही कामना था कि कैसे भी घर में बच्चा आ जाए। लोग हमें अलग-अलग जगह जाने की सलाह देते थे। कोई किसी मंदिर का पता बताता था तो कोई इबादत के लिए मस्जिद में जाने को बोलता था। हमने सब किया तब कहीं जाकर शादी के दस साल बाद अंकुश पैदा हुआ था।
यह कहते हुए गलवान में शहीद हुए हिमाचल के हमीरपुर के अंकुश ठाकुर के पिता और रिटायर्ड फौजी अनिल ठाकुर का गला भर आया। बोले, साहब 1988 में मेरी शादी हुई थी और अंकुश का जन्म 24 नवंबर 1998 को हुआ। मैंने अपनी दस साल की नौकरी में सेना से जो कमाया था, वो तो इसी में खर्च कर दिया था कि मेरे घर में भी बच्चे की किलकारियां गूंजे। मेरी पत्नी को भी मां बनने का सुख मिले और मेरा परिवार भी आगे बढ़े।
बड़ी मुश्किलों के बाद हमारे घर में खुशियां आई थीं। 1998 में जब अंकुश का जन्म हुआ, तब मेरी पोस्टिंग मेरठ में थी। 2002 में धर्मशाला आया और 2003 में 17 साल 6 महीने सेना में सेवा देने के बाद मैं रिटायर हो गया। घर की माली हालत खराब थी इसलिए 2005 में डिफेंस सिक्योरिटी कोर (डीएससी) ज्वॉइन कर ली थी, ताकि मेरा बच्चा अच्छे से पढ़-लिख सके।
अंकुश पढ़ने में भी बहुत तेज था लेकिन न जानें क्यों उसमें शुरू से ही सेना में जाने का जुनून और जोश था। मैं नहीं चाहता था कि वो सेना में जाए। मैंने सोचा कि बड़ी मन्नतों के बाद तो पैदा हुआ है, लेकिन उसने साफ कह दिया था कि मैं सेना में ही जाऊंगा। उसका फौलादी इरादा देखकर मैंने भी फिर उसे मना नहीं किया। उसने तो सेना में जाने की कसम खा रही थी।
12वीं के बाद उसने बीएससी में एडमिशन लिया। दूसरी बार में ही भर्ती में उसका सिलेक्शन हो गया था। जनवरी 2019 में उसने सेना ज्वॉइन की थी। अंकुश के सिलेक्शन के वक्त हमारे गांव कडोहता में 16 साल बाद ऐसा हुआ था कि गांव का कोई लड़का सेना में भर्ती होने में कामयाब हुआ है। पहले हमारे गांव में हर घर से लड़के सेना में ही जाते थे। मैं सेना में रहा। मेरे पिताजी सेना में थे। शायद हमारे खून में ही सेना में भर्ती होना लिखा है।
सेना में जाने के बाद भी अंकुश ने पढ़ाई करना नहीं छोड़ा था। वो कमांडिंग अफसर बनना चाहता था। मेरी उससे आखिरी बार बात 20 मई को हुई थी। तब उसने बताया था कि, चीन से कुछ टेंशन चल रही है और हालात अभी ठीक नहीं हैं। इसके बाद मैंने उससे कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन बात हो ही नहीं सकी। 16 जून को सीधे उसके शहीद होने की खबर ही मुझे मिली।
दूसरा बेटा 12 साल का है, वो भी सेना में जाना चाहता है
अंकुश के पिता अनिल कहते हैं कि अंकुश के जन्म के दस साल बाद हमारे घर दूसरा बेटा 2008 में हुआ। वो सातवीं क्लास में है, लेकिन अभी से ही सेना में जाना चाहता है। कहता है मुझे सेना में ही जाना है। मैं उसे भी नहीं रोकना चाहता। अंकुश की शहादत पर मुझे गर्व है। उसने हमारे पूरे गांव का नाम रोशन किया है।
ऐसा पहली बार हुआ है, जब हमारे गांव से किसी ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। अब गांव का एक स्कूल उसके नाम से जाना जाएगा। अस्पताल में उसका स्मारक बनेगा। इससे नए लड़के प्रेरणा लेंगे और सेना में जाने के लिए मोटिवेट होंगे। 19 जून को अंकुश पंचतत्व में विलीन हो गए। पूरे सैन्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई।