रीवा. 16 जून को रात साढ़े नौ बजे मेरे पास फोन आया। फोन पर किसी ने मेरा नाम पूछा। फिर पूछा कि दीपक आपके क्या लगते हैं? मैंने कहा, भाई है मेरा। फिर उन्होंने कहा कि, वो अब इस दुनिया में नहीं रहे।
गलवान में शहीद हुए दीपक सिंह के छोटे भाई आशीष सिंह ने बताया कि, इस बात पर मुझे बिल्कुल यकीन नहीं हुआ क्योंकि दीपक भैया की मजाक करने की आदत थी और वो अक्सर ऐसे मजाक करते रहते थे। इसलिए आशीष ने फोन काट दिया और पांच मिनट बाद उसी नंबर पर फिर कॉल किया। वहां से बोल रहे शख्स ने कहा कि, हम मजाक नहीं कर रहे। आपके भाई शहीद हो गए हैं। फिर आशीष ने उनके पिता का नाम, एड्रेस, यूनिट का नाम पूछा तो उन्होंने वही जानकारी दी जो दीपक भैया की थी।
इतना सुनते ही आशीष एक पल के लिए अवाक रह गए। घर में पापा और दादी भी थे। वे खाना खा चुके थे और सोने जा रहे थे। आशीष ने उन्हें कुछ नहीं बताया और घर के बाहर सड़क किनारे जाकर बैठ गए। उन्होंने शहीद दीपक कुमार के सबसे खास दोस्त सचिन सिंह बघेल को बुलाया। आशीष ने बताया कि, हमारे परिवार के कई लड़के आर्मी में हैं। हमारे गांव के भी बहुत लड़के हैं। इसलिए मैंने उन लोगों को फोन पर ये बात बताई। उन्होंने जिस नंबर से फोन आया था, वो नंबर मांगा। फिर बात करके बताया कि 'भाई खबर सही है। हमारा भाई शहीद हो गया।'
आशीष कहते हैं, मैं रातभर सोया नहीं और घर के बाहर ही बैठा रहा। फिर सुबह के 4 बज गए तो दौड़ने चला गया। मेरा दिमाग इस बात का यकीन करने को तैयार ही नहीं था कि, दीपक भैया शहीद हो गए। जब सब लोगों ने कन्फर्म कर दिया, तब फिर सुबह 7 बजे मैंने बड़ी भाभी को बताया कि, यूनिट से फोन आया था। उन्होंने बताया कि दीपक भैया नहीं रहे। इतना सुनते ही भाभी रोने लगीं। उन्हें यकीन नहीं हुआ। मैंने कॉल की रिकॉर्डिंग की थी। फिर उन्हें वो रिकॉर्डिंग सुनाई तब वो मानीं। उन्हें रोता देख पापा और दादी भी समझ गए और धीरे-धीरे सबको पता चल गया।
दीपक भैया की शादी 30 नवंबर को ही हुई थी। भाभी मायके में थीं। मैंने उन्हें शाम को फोन पर बताया। उनकी हालत बहुत खराब हो गई थी क्योंकि वो तो इस आस में थीं कि अगले महीने भैया घर आने वाले थे। शादी के बाद भैया, भाभी से सिर्फ दो बार ही मिल पाए थे। वो अगले महीने आने वाले थे।
दीपक के चचेर भाई साजन सिंह भी आर्मी में हैं और इन दिनों चंडीगढ़ में पोस्टेड हैं। उन्होंने बताया कि, दीपक सूडान जाने वाला था। उसका फॉरेन ड्यूटी वाली लिस्ट में नाम आया था। वो सूडान जाने को लेकर उत्साहित भी था। साजन के मुताबिक, दीपक की मां उसके बचपन में ही गुजर गईं थीं। इसके बाद दादी ने ही उसकी परवरिश की थी। वो आर्मी में जाने के लिए 5 से 6 बार भर्ती में जा चुका था। उसके पास सिर्फ 5 माह बचे थे, उसके बाद वो भर्ती में नहीं जा पाता और उसी आखिरी ट्राय में उसने भर्ती निकाल ली थी।
बकौल साजन, मैंने दीपक को कहा था कि भाई तू शादी के बाद ज्यादा गांव में रुका नहीं। अब चले जा घर। तो उसने कहा था कि थोड़े दिन में सूडान जाना है। उस वक्त घर आना होगा। तभी आऊंगा। लेकिन किस को पता था कि दीपक इस दुनिया से हमेशा के लिए दूर जाने वाला है।
22 जून को दीपक के परिजन अस्थि विसर्जन के लिए ग्राम फरेदा (रीवा) से इलाहाबाद के लिए निकले। परिवार के साथ ही गांव के दो सौ से ज्यादा लोग अपने निजी वाहनों से अस्थि विजर्सन के लिए निकले हैं। शहीद दीपक सिंह का अंतिम संस्कार 18 जून को उनके गांव फरेदा में ही किया गया था।