भोपाल में कोरोना मरीजों को होम आइसोलेट किया जा रहा है ताकि अस्पताल खाली रहे

Posted By: Himmat Jaithwar
6/20/2020

भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 दिन पहले तक यदि किसी व्यक्ति के भीतर कोरोनावायरस के लक्षण मात्र दिखाई दे जाए तो चिरायु अस्पताल की एंबुलेंस उसे लेने के लिए उसके घर आ जाती थी परंतु अब बात बदल गई है। लोगों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जा रहा है। उन्हें मोटिवेट किया जा रहा है कि वह अपने घर में ही आइसोलेट हो जाए। शायद यह सब कुछ इसलिए ताकि पीक टाइम में भोपाल के अस्पताल खाली रहे और प्रशासन उनका अपनी सुविधा के अनुसार उपयोग कर सके।


20 दिन में 97 मरीजों को होम आइसोलेट किया, 30 मरीज स्वस्थ हो गए

भोपाल जिले के स्वास्थ्य विभाग द्वारा बताया गया है कि करीब 20 दिन के भीतर भोपाल में 99 मरीजों को घर में आइसोलेट किया गया है। इनमें 30 मरीज अभी तक पूरी तरह स्वस्थ हो चुके हैं। दो रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उन्हें स्वस्थ घोषित किया गया है। हालांकि, स्वस्थ होने के बाद भी उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटाइन रहना होगा। भोपाल के सीएमएचओ डॉ. प्रभाकर तिवारी ने कहा कि सभी मरीजों को इस बात का पूरा भरोसा था कि वह घर में ही रहकर ठीक हो जाएंगे।

भोपाल में हर रोज 5 मरीजों को होम आइसोलेट किया जा रहा है

घर में आइसोलेशन के दौरान उन्होंने घोषणा पत्र दिया था कि आईसोलेशन के लिए बनाए गए नियमों का पालन करेंगे। बड़ी बात यह है कि जो मरीज घर में आइसोलेट हैं उनका आत्मबल गजब का है। उन्होंने बताया कि हर दिन चार -पांच मरीजों को घर में आईसोलेट किया जा रहा है। मोबाइल मेडिकल टीम उनके घर जाकर स्वास्थ्य जांच करती है। 

स्वास्थ्य विभाग की रणनीति पर संदेह क्यों 

यह सही है कि भारत सरकार की तरफ से गाइडलाइन जारी हुई है परंतु कलेक्टर ने कई बार बताया है कि केंद्र सरकार की गाइडलाइन का पालन करना अनिवार्य नहीं है। जिले की स्थिति को देखते हुए फैसले लिए जाते हैं। भोपाल, मध्य प्रदेश की राजधानी है। इंदौर की तुलना में यहां अस्पताल और बिस्तरों की संख्या कम है। यदि पीक टाइम आया और मरीजों की संख्या बढ़ेगी तो पॉलिटिकल व प्रशासनिक पहुंच पकड़ वाले भाई भतीजे भी अस्पतालों में भर्ती होने के लिए आएंगे। उनके लिए जगह बनी रहे इसलिए आम नागरिकों को होम आइसोलेशन के लिए मोटिवेट किया जा रहा है। क्योंकि इन दिनों जबकि भोपाल में पॉजिटिव मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जरूरी हो जाता है कि घोषणा पत्र पर विश्वास ना किया जाए बल्कि एक एक व्यक्ति को अस्पताल में दाखिल किया जाए।



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