बॉर्डर मीटिंग में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल के सामने चीन से मेजर जनरल आने पर देश में गुस्सा, लेकिन यह बात रैंक नहीं, रोल की है

Posted By: Himmat Jaithwar
6/10/2020

नई दिल्ली. भारत-चीन के बीच जो कुछ लद्दाख में चल रहा है, वह अलग तरह का तेवर है। हफ्तों तक जारी तनाव, सेनाओं का आमना-सामना, धक्का-मुक्की, बहस और गुस्सा अब धीमा पड़ रहा है, शायद। और देखा जाए तो ये ठीक भी है। क्योंकि कोई नहीं चाहता कि सरहद के हालात बिगड़ें और झड़प में बदल जाएं, भले वह कितना ही सीमित हो।

भारत और चीन दो देश हैं, जिनकी सीमाएं अब तक अनसुलझी हैं। 23 ऐसे इलाके हैं, जिन्हें दोनों देश अपना बताते हैं। यही इलाके विवाद की जड़ हैं, जहां पहले भी हमारे सैनिकों के बीच झड़प हुई हैं। इसके बावजूद पिछले पचास सालों में यहां एक भी गोली नहीं चली है।

भारत और चीन की सीमाओं पर 23 ऐसे इलाके हैं, जिन्हें दोनों देश अपना बताते हैं।

इसके उलट पाकिस्तान से सटी नियंत्रण रेखा, जहां सरहद साफ है। दोनों देश जिसे लेकर राजी हैं, लेकिन फिर भी भयानक गोलीबारी से लेकर हर तरह की ताकत वाले हथियारों का इस्तेमाल यहां आए दिन होता है। कभी आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए, तो कभी किसी और वजह से।

आखिर कैसे संभव हो पाता है ये? हमारा ग्राउंड लेवल पर मिलिट्री मैकेनिज्म और देश की राजधानियों के बीच डिप्लोमैटिक मैकेनिज्म है। जो सरहद पर पनपी दिक्कतों और मसलों को सुलझाता है।

ये अलग-अलग स्तर पर होता है। जब निचले स्तर की बातचीत काम नहीं करती, तो बातचीत दूसरे लेवल पर ले जाते हैं। पिछले कुछ दिनों में हमें प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिंगपिंग के बीच वुहान और महाबलीपुरम में ऐसी ही एक बातचीत देखने को मिली।

पहली बार लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हुई। जो दिखाता है कि दोनों ही तरफ मसला सुलझाने की इच्छाशक्ति मजबूत थी, दोनों ही चाहते थे कि मामला न बढ़े और बड़ा भी न हो।  

इन गर्मियों में चीन के सैनिकों से लद्दाख में आमना-सामना थोड़ा ज्यादा था। उसकी वजह हमारा सड़क बनाना था या फिर कोरोना से जुड़ी दिक्कत? चीन से जुड़ी एफडीआई की छंटाई या अमेरिका से हमारी बढ़ती नजदीकियां? वजह हो सकता है कि साफ न हो या फिर मिलीजुली हो।

क्योंकि इस बार झगड़ा बड़ा था और वजह साफ नहीं, इसलिए सैन्य स्तर की बातचीत भी पहले से अलग थी। हमने बटालियन कमांडर और ब्रिगेड कमांडर स्तर पर सैन्य बातचीत देखीं हैं। कई बार मेजर जनरल स्तर की बातचीत भी हुई है। लेकिन पहली बार लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत यह दिखाता है कि दोनों ही तरफ मसला सुलझाने की इच्छाशक्ति मजबूत थी। दोनों ही देश चाहते थे कि मामला न बढ़े और बड़ा भी न हो।  

चुशूल मोल्डो मीटिंग पाइंट पर हुआ यूंं कि भारत की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल इस बातचीत का हिस्सा बने। लेकिन चीन के दल के नेता मेजर जनरल थे। इसका नतीजा ये हुआ कि देश में एक नेगेटिव सेंटिमेंट पैदा हुआ। इसमें निराशा से लेकर गुस्सा सब था। लेकिन सच समझना होगा। यह रैंक नहीं, रोल है जिसकी जिम्मेदारी ऐसा मीटिंग में हिस्सा लेना होता है।  

हमारी तरफ लेफ्टिनेंट जनरल पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल की जिम्मेदारी होती है। जिसके कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरजिंदर सिंह हैं। दूसरी ओर मेजर जनरल लिन ल्यू, साउथ सिनजियांग के डिस्ट्रिक्ट कमांडर हैं। इनके हिस्से लद्दाख की लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है। बिग्रेडियर स्तर की बातचीत में भी चीन की ओर से कोई सीनियर कर्नल रैंक का ऑफिसर आता है, क्योंकि उनके वहां ब्रिगेड की कमान सीनियर कर्नल के हाथ होती है।

चुशूल मोल्डो मीटिंग पाइंट पर भारत की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह इस बातचीत का हिस्सा बने। लेकिन चीन की तरफ से मेजर जनरल मीटिंग में शामिल हुए।

दोनों ही पक्ष ही अपनी अपनी जगह पर सही थे और इसलिए दोनों सेनाओं को इस पर कोई आपत्ति नहीं है। विरोध जताया तो सिर्फ बेखबर नागरिकों ने, कुछ मुखर समूह और राजनीतिक पार्टियों ने। यही वजह है कि मैं यहां समरूपता का कुछ उदाहरण देना चाहूंगा।

15 साल पहले मैं तीन साल वियतनाम, कंबोडिया और लाओस में बतौर डिफेंस अटैची पोस्टेड रहा। लाओस में सेना प्रमुख ब्रिगेडियर होता है। जब वह दूसरे देशों में जाता है तो वहां के सेना प्रमुखों से मिलता है, रैंक की सीमाओं से परे जाकर।

मिलिट्री और डिप्लोमैटिक लेवल पर कई तरीके हैं मसलों को सुलझाने के। दोनों ही देश परमाणु ताकत से लैस हैं तो जरूरी ये होगा कि जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार किया जाए।

एक और अहम उदाहरण है। हमारे और पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन्स डीजीएमओ के बीच हर हफ्ते फोन पर बात होती है। हमारे डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल होते हैं, जबकि पाकिस्तान के मेजर जनरल।

तो बजाए इसके कि ये सोचा जाए या फिर इस सोच को हवा दी जाए कि जो होता है, वो चीन का अहंकार या भारत की रजामंदी है, हमें समझना होगा कि ये सिर्फ सही तरीका है। ऐसी संवेदनशील मीटिंग्स उन लोगों के बीच होती हैं, जो जवाबदेह और जिम्मेदार हैं, बिना किसी झूठी प्रतिष्ठा के।

ये भी समझना होगा कि 1999 के पहले भारतीय सेना की ओर से भी इन बैठकों में मेजर जनरल ही जाते थे। क्योंकि लद्दाख में भारतीय सेना की कोर तो करगिल युद्ध के बाद बनी है।

और ये भी समझना होगा कि 1999 के पहले भारतीय सेना की ओर से भी इन बैठकों में मेजर जनरल ही जाते थे। क्योंकि लद्दाख में भारतीय सेना की कोर तो करगिल युद्ध के बाद बनी है। जो कि पूरे लद्दाख के लिए जिम्मेदार है। और तो और कोर की कमान लेफ्टिनेंट जनरल के हाथ होती है। तो समझना होगा कि ये रोल की बात है, न की रैंक की।

अहम ये है कि मिलिट्री और डिप्लोमैटिक लेवल पर कई तरीके हैं मसलों को सुलझाने के। तो बेहतर होता कि उसे उलझाने की कोशिश न करें। दोनों ही देश एटमी ताकत से लैस हैं तो जरूरी ये होगा कि जिम्मेदारी भरा बर्ताव किया जाए।

(रिटायर्ड ले. जनरल सतीश दुआ, कश्मीर के कोर कमांडर रह चुके हैं, इन्ही के कोर कमांडर रहते सेना ने बुरहान वानी का एनकाउंटर किया। जनरल दुआ ने ही सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग की और उसे एग्जीक्यूट करवाया था। वे चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पद से रिटायर हुए हैं।)



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