बीकानेर। बीकानेर रियासत के पूर्व महाराज स्व. नरेन्द्र सिंह की पत्नी पद्माकुमारी की बैकुंठी (अंतिम यात्रा) मंगलवार को जूनागढ़ से निकाली गई। बेटियां महिमा कुमारी और विधायक सिद्धि कुमारी ने बेटों का फर्ज निभाते हुए बैकुंठी को कांधा दिया। देवीकुंड सागर स्थित राज परिवार के अंतिम विश्राम स्थल पर उनकी अंत्येष्टि की गई। दोनों बेटियों ने अपनी मां को मुखाग्नि दी। इसके साथ ही पद्माकुमारी की देह पंचतत्व में विलीन हो गई।
विधायक सिद्धि कुमारी की माता पद्माकुमारी को हृदयघात के कारण पीबीएम के हार्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां सोमवार रात उन्होंने अंतिम सांस ली। मूल पैतृक निवास और राजगद्दी जूनागढ़ में होने के कारण उनके शव को रात को वहीं ले जाया गया।
राजपरिवार सहित उनके परिचित पूरी रात जूनागढ़ में ही रहे। सुबह करीब 11 बजे पद्माकुमारी की बैकुंठी निकाली गई। उनकी अंतिम यात्रा में लूणकरणसर विधायक सुमित गोदारा, शहर भाजपा अध्यक्ष अखिलेश प्रताप सिंह, पूर्व अध्यक्ष डा. सत्यप्रकाश आचार्य, महामंत्री मोहन सुराना, उपाध्यक्ष डॉ. भगवान सिंह मेड़तिया, अशोक बोरावड़, सुमन जैन, मंडल अध्यक्ष, रेंज के आईजी जोस मोहन, एसपी प्रदीप मोहन सहित शहर के गणमान्य लोग शामिल रहे। पूर्व विधायक डॉ. विश्वनाथ मेघवाल और गोकुल जोशी ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से पद्माकुमारी के पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किया। राजगुरु राधाकृष्ण श्रीमाली ने विधि विधान के साथ अंतिम क्रिया संपन्न कराई। इस दौरान पंडित गंगाधार व्यास, दुर्गादत्त व्यास सहयोगी रहे। सागर के पुरोहित और किले के जोशी ने दाग क्रिया करवाई।
अंतिम संस्कार के समय इन जातियों की रहती है महती भूमिका
राज परिवार में किसी की अपूरणीय क्षति में पुष्करणा ब्राह्मण समाज की तीन जातियों की भूमिका अहम होती है। निधन के समाचार से लेकर उन्हें पंचतत्व में विलिन होने तक के धार्मिक संस्कारों का निर्वहन इन जातियों द्वारा किया जाता है। राजपरिवार में किसी के निधन की सूचना मिलने पर पुष्करणा समाज की चोवटिया जोशी जाति का एक सदस्य संबंधित जगह पहुंच जाता है।
अगर निधन अस्पताल में होता है तो उनके पार्थिव शरीर को निवास तक पहुंचाकर उनकी अंतिम यात्रा के शुरू होने तथा श्मशान घाट तक प्रवेश के सभी संस्कारों का निर्वहन जोशी परिवार की ओर से किया जाता है। अंतिम यात्रा श्मशान घाट में प्रवेश करते ही आचार्य परिवार उनकी बैकुंठी बांधने का काम करता है। पुरोहित समाज के लोगों द्वारा उनके पार्थिव शरीर को कंधा देकर चिता तक लाया जाता है और मुखाग्नि से अंतिम प्रयाण तक पुरोहित परिवार के लोग ही धार्मिक रीति रिवाज अनुसार अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को सम्पन्न करवाते हैं।
500 सालों से चली आ रही परम्परा
लगभग 500 वर्षों से यही परम्परा चल रही है। सागर स्थित पुरोहित परिवार से जुड़े मनोज कुमार ने बताया कि वर्षों से राजपरिवार के अंतिम संस्कार का परम्पराओं का निर्वहन किया जा रहा है। महिला के निधन पर उनका पार्थिव शरीर रूई से लपेटा हुआ होता था। उनकी अंतिम संस्कार में मुखाग्नि के समय केवल पुरोहित परिवार के लोगों के अलावा मुखाग्नि देने वाला ही मौजूद होता आया है। परन्तु समय के बदलाव के साथ ही परम्पराओं में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं।