इंदौर. कोरोना के इलाज के नाम पर मरीजों से केंद्र सरकार की गाइड लाइन से भी ज्यादा फीस लिए जाने, सरकार से गलत तरीके से भुगतान हासिल करने को लेकर हाई कोर्ट की प्रिंसिपल बेंच में जनहित याचिका लगाई गई है। याचिका में एक स्वतंत्र कमेटी गठित कर अस्पताल को हुए भुगतान की जांच कराने की मांग की गई है। जांच होने तक भुगतान पर भी रोक लगाने को कहा गया है। प्रिंसिपल बेंच जल्द ही इस मामले की सुनवाई करेगी।
सामाजिक कार्यकर्ता भुवनेश्वर मिश्रा की ओर से अधिवक्ता प्रशांत चौरसिया ने यह याचिका लगाई है। इसमें आरोप है कि हमीदिया, भोपाल मेमोरियल अस्पताल में पर्याप्त बेड होने के बावजूद निजी अस्पताल में मरीजों को भेजा जा रहा है, जबकि भोपाल में इतने केस भी नहीं हैं कि उन्हें निजी अस्पतालों में रखा जाए।
21 सौ की गाइड लाइन 54 सौ वसूल रहे
अधिवक्ता चौरसिया के मुताबिक केंद्र सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए जो गाइडलाइन जारी की है। इसके तहत निजी अस्पताल एक दिन में अधिकतम 21 सौ रुपए फीस ले सकते हैं, लेकिन चिरायु अस्पताल ने मरीजों से एक दिन की 54 सौ रुपए तक वसूले। वहीं ऐसे मरीज जिनकी जांच स्वास्थ्य विभाग ने की है और उन्हें इलाज के लिए सरकारी खर्च पर चिरायु में भेजा गया था। उनके भी बिल अस्पताल प्रबंधन ने ज्यादा बनाकर सरकार से वसूले। याचिका में अस्पताल के मालिक अजय गोयनका के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की गई है।
मुफ्त में इलाज होना चाहिए
अधिवक्ता मिश्रा के मुताबिक सरकार ने 2009 में चिरायु अस्पताल बनाने के लिए महज दो करोड़ रुपए में जमीन दी थी। 2013 में यह अस्पताल बनकर तैयार हो गया। कायदे से महामारी के वक्त अस्पताल में मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाना चाहिए। लीज पर ली गई जमीनें, ट्रस्ट के अस्पतालों को दी गई जमीनों की लीज डीड में भी इसका उल्लेख रहता है कि वह गरीब, कमजोर वर्ग के मरीजों का इलाज मुफ्त में करेंगे, लेकिन महामारी के वक्त भी चिरायु ने फ्री में इलाज नहीं किया।