पूर्व आर्मी चीफ बिक्रम सिंह बोले-चीन जानता है कि ये 62 का हिंदुस्तान नहीं है

Posted By: Himmat Jaithwar
6/6/2020

लद्दाख की सरहद पर करीब एक महीने से चीन से जारी तनाव के बीच आजतक ने ई -एजेंडा कार्यक्रम की सीरीज में 'सुरक्षा सभा' का आयोजन किया है. 

चीन पर बात करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (रि.) बिक्रम सिंह ने कहा कि मैं आशावादी हूं क्योंकि आशावादी होने में कोई हर्ज नहीं है. इस समस्या का हल मिलिट्री और डिप्लोमेटिक दोनों तरीके से ही निकलेगा. मेरा मानना है कि चीन ने ये कदम जिस मकसद से उठाए थे अगर वो पूरे हो गए होंगे तो आज कोई न कोई हल निकल जाएगा. मुझे लगता है कि एक-दो और मीटिंग के बाद इस समस्या का हल निकल जाना चाहिए. यही दोनों देशों के हित में होगा. डोकलाम के बाद हमारे संबंध बेहतर रहे हैं. मुझे लगता है कि इसका भी हल निकल आएगा.

चीन के साथ सीमा विवाद के परमानेंट हल के मुद्दे पर बात करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष ने कहा कि यह तो राजनीतिक तरीके से ही निकलेगा. 1993 के बाद सेना ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर शांति और अनुशासन को बरकरार रखा है. देखा जाए तो 1975 के बाद से एलएसी पर एक भी गोली नहीं चली है. इसका मतलब है कि फौज ने अपना काम कर दिया है, अब इसको राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाने की जरूरत है.

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (रि.) बिक्रम सिंह ने आगे कहा कि 2014 में मोदी जी जब आए थे तब मैंने एक कॉलम लिखा था कि इस वक्त दोनों देशों में मजबूत नेतृत्व हैं और इसके हल के लिए ये सबसे सही समय है. अभी सरकार सशक्त है इसलिए हमें आगे बढ़ना चाहिए. मैं कहूंगा कि ये सबसे मुफीद वक्त है. सबको साथ में लेकर इसका परमानेंट हल निकालना चाहिए. ये भी उभर कर आया है कि 1962 वाली सेना नहीं है अब और ये बात चीन भी जानता है.

यही कारण है कि जब दो देश एकदूसरे की सैन्य ताकत को समझते हैं तो एक आपसी वैमनस्य पैदा होता है लेकिन चीन कभी हमसे पंगा नहीं लेगा. वो जनता है कि अगर पंगा लिया तो क्या होगा. दोनों सेनाएं जानती हैं कि अगर मामला बढ़ा तो इसके परिणाम भयानक होंगे. मैं एक बार फिर कहना चाहूंगा कि ये समस्या तभी हल होगी जब चीन जिस मुद्दे के लिए अंदर आया था तो वो मुद्दा जब तक हल नहीं होगा ये कार्रवाई चलती रहेगी.

62 की लड़ाई और सेना में आने की बात पर पूर्व सेनाध्यक्ष ने कहा कि मैंने अपने कार्यकाल में वेस्टर्न बॉर्डर से अपना फोकस चीन पर किया. इस्टर्न लद्दाख में इंजीनियर गए, नार्थ सिक्किम में भी कुछ कदम उठाए गए. पाकिस्तान अगर पंगा लेता है तो उसे हमने बता दिया है कि हम पलटवार करेंगे. हमने अपनी राजनीतिक दृढ़शक्ति भी दिखा दी है. चीन के मामले में हमें अभी इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत करना है. वैमनस्य क्यों पैदा हुआ, इस बात पर विचार करें तो जब हमने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू की तो चीन ने सब देखा. पाकिस्तान के फ्रंट पर हमारी सेना विषम परिस्थितियों में भी लगातार डटी रहती है. वहां एक ऐसा युद्धाभ्यास लगातार चलता रहता है जो हमारी सेना को मजबूत करता है. आज हमारा एक सिपाही अन्य देशों के 10 सिपाहियों के बराबर है.

भारतीय सेना की तारीफ करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (रि.) बिक्रम सिंह चीन जानता है कि हमारी मिलिट्री लीडरशिप काफी मजबूत है. हमारी लीडरशिप सक्षम होकर आती है. चीन में ऐसा नहीं है. वहां तीन साल के लिए लोग ऊपर भेज दिए जाते हैं. उन्हें पता ही नहीं होता कि क्या करना होता है. उन्हें युद्ध अभ्यास का कोई अनुभव नहीं होता. लीडरशिप में मजबूती तब आती है जब वह ट्रेनिंग लेकर आता है. मेरा सुझाव है कि हमारा जो लीडरशिप का सिस्टम है उसे छेड़ना नहीं चाहिए वरना हमारा हाल भी चीन की सेना जैसा होगा. सेना में कोई ऐसा अफसर नहीं है कोई जवान नहीं है जिसने वॉर प्रैक्टिस में हिस्सा न लिया हो. यूएन में हमेशा भारतीय सेना की मांग की जाती है क्योंकि यह ऐसी सेना है जिसने प्रॉक्सी वॉर के जरिए निडरता और जीत का स्वाद चख रखा है.

भारत की बढ़ती वैश्विक साख और अमेरिका से दोस्ती की वजह से है चीन का यह कदम, इस सवाल के जवाब में पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल (रि) बिक्रम सिंह ने कहा कि मेरा कल ही एक कॉलम आया था इस मुद्दे पर. चीन के हालात अभी ठीक नहीं है. शी जिनपिंग की जो इमेज थी उसको काफी चोट पहुंची है कोरोना महामारी की वजह से. उनकी अर्थव्यवस्था की हालत भी खस्ता है. और उनके जो पड़ोसी हैं उनमें भी चीन के खिलाफ आवाज खड़ी हो रही है. सभी देशों में चीन विरोधी आवाज तेज हो चुकी है हमें इसका फायदा उठाना चाहिए. 140 देश हैं जो चीन के लोगों को अपने यहां आने नहीं दे रहे हैं. उनकी इकोनॉमी खराब हो गई है.

अपनी बात जारी रखते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष ने कहा कि हांगकांग और ताइवान को आप देख ही रहे हैं कि वहां क्या हाल है. चीन ऐसा देश है कि अगर उसका पेट भरा हुआ है तो वह पंगे नहीं लेगा. और उसे ये भी पता है कि अब ये 62 की सेना नहीं है. पंगा लेगा तो मार खाएगा. इसलिए बेहतर यही है कि हमें तापमान नीचे कर तहजीब के साथ बातचीत के जरिए इसका हल निकालना चाहिए. हमें फालतू कोई बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे दोनों ही देशों का काफी नुकसान होगा.



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