मुंबई. देश के चर्चित जेसिका लाल हत्याकांड मामले मे उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा को हाल ही में रिहा कर दिया गया। उसकी रिहाई वक्त से पहले जेल में किए गए अच्छे बर्ताव की वजह से हुई। इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए विद्या बालन ने कहा कि ऐसे लोगों को कितनी भी लंबी सजा दी जाए काफी नहीं होगी। विद्या ने इस हत्याकांड पर बनी फिल्म में काम किया था।
एक अंग्रेजी मीडिया हाउस से बातचीत में विद्या बालन ने कहा, 'व्यक्तिगत रूप से मुझे नहीं लगता कि उसके लिए या उसके जैसे लोगों के लिए जेल की कितनी भी सजा पर्याप्त होगी। इसलिए वो हमेशा मेरे दिमाग में घूमता रहेगा। हां, हो सकता है कि वो तरह बदल गया हो। ऐसा ही हुआ हो। मुझे उम्मीद है कि अब वो सुधर गया होगा।'
जेल में रखने का मकसद भी सुधारना होता है
आगे उन्होंने कहा, 'इतना वक्त जेल में बिताने के बाद सभी आपसे यही उम्मीद कर सकते हैं। जेल में रखने का मकसद भी यही होता है, कि तुम सुधार करो। तो हमें यही उम्मीद करना चाहिए कि ऐसा ही हुआ होगा।'
हत्याकांड पर बनी फिल्म में बहन का किरदार निभाया था
विद्या ने जेसिका हत्याकांड पर साल 2011 में बनी डायरेक्टर राज कुमार गुप्ता की फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' में मृतका की बहन सबरीना का किरदार निभाया था। इस फिल्म में उन संघर्षों को दिखाया गया था, जिनका सामना सबरीना को अपनी बहन के दोषियों को सजा दिलाने के लिए करना पड़ा था।
शराब परोसने से इनकार किया तो गोली मार दी थी
मनु ने 29 अप्रैल 1999 की रात दिल्ली के एक होटल में शराब परोसने से मना करने पर मॉडल जेसिका लाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद दिसंबर 2006 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। वो पूर्व केंद्रीय मंत्री और हरियाणा कांग्रेस के नेता विनोद शर्मा का बेटा है।
दिल्ली के उपराज्यपाल ने रिहाई के आदेश दिए
इससे पहले दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने सेंटेंस रिव्यू बोर्ड (सजा की समीक्षा करने वाला बोर्ड) की सिफारिश पर उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा की रिहाई के आदेश दिए थे। जिसके बाद सोमवार को उसकी रिहाई हो गई। इसकी वजह जेल में उसका अच्छा बर्ताव बताया गया। मनु तिहाड़ जेल में 14 साल की सजा काट चुका था।
14 साल की सजा के बाद होता है रिव्यू
सेंटेंस रिव्यू बोर्ड को उम्रकैद की सजा के मामले में 14 साल की सजा पूरी होने के बाद सजा को रिव्यू करने का अधिकार होता है। कैदियों के नाम रिव्यू बोर्ड को भेजने के पहले दिल्ली पुलिस के अलावा पीड़ित पक्ष और जेल सुप्रिटेंडेंट की राय भी लेनी होती है।