नरसिंहपुर। द्विपाठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद घोषित दोनों शंकराचार्यों की नियुक्ति पर आपत्ति जताई गई है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने हरिद्वार से एक पत्र जारी कर नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं।
महंत का कहना है कि अखाड़ों के सचिवों को बुलाए बिना ही दोनों पीठों पर यह नियुक्तियां वसीयत को आधार बताते हुए की गई है। बिना अखाड़ों की सहमति के यह नियुक्तियां मान्य नहीं हैं। महंत का कहना है कि वसीयत के वाचन दौरान संन्यासी अखाड़ों को नहीं बुलाया गया। जो नियुक्तियां हुई हैं, उस सम्बन्ध में वह संन्यासी अखाड़ों की बैठक में भी बात रखेंगे और प्रधानमंत्री, गृह मंत्री को भी लिखा जाएगा। नई दुनिया ने जब महंत से सवाल किया कि शंकराचार्य के ब्रह्मलीन होने के इतने दिन बाद 23 सितंबर को आपत्ति पत्र क्यों जारी हुआ तो उनका कहना रहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही इसकी जानकारी लगी थी, इसलिए वह समाराधना कार्यक्रम में परमहंसी नहीं गए और पत्र देर से जारी किया।
महंत का कहना है की ब्रह्मलीन शंकराचार्य का षोडसी कार्यक्रम भी विधान से नहीं किया गया। अखाड़े शंकराचार्य की सेना होते हैं, जब उनको ही नहीं पूछा जा रहा है तो वह कैसे इन नियुक्तियों को मान्य करेंगे। उल्लेखनीय रहे की शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के उपरांत उनके इच्छा पत्र अनुसार उनके दंडी संन्यासी स्वामी सदानन्द सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ व स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया है, जिनके पट्टाभिषेक महोत्सव की तिथि और मुहूर्त पर विद्वानों में विचार मंथन चल रहा है। इन शंकराचार्यों की नियुक्ति को शंकराचार्य के निज सचिव रहे ब्रह्मचारी और स्वयं दोनों शंकराचार्यों द्वारा शास्त्र सम्मत बताया जा रहा है।