बेंगलुरु. मेघना गिरीश, जम्मू के नगरोटा आतंकी हमले में शहीद हुए मेजर अक्षय गिरीश की मां हैं। 2016 में अपने बेटे को खोने के बाद वह ऐसी कई मांओं से मिली हैं जिन्होंने उन्हीं की तरह अपने बेटे को खोया है, 'लाइन ऑफ ड्यूटी' में। शहीदों के परिवारों से मिलने वह नॉर्थ से लेकर साउथ तक घूमी हैं, मेघना इसे तीर्थयात्रा कहती हैं। मदर्स डे पर ऐसे ही कुछ शहीदों की माओं से हमारी वर्चुअल मुलाकात करवा रही हैं मेघना गिरीश, पढ़िए-
जब मेरा बेटा अक्षय छोटा था तो मैं प्यार से उसे लोरी सुनाती थी, ‘चंदा है तू मेरा सूरज है तू...।’ और अक्षय मुस्कुरा देता, गले लग जाता मेरे। बड़ा हुआ तब भी कहा था, ‘अभी भी आप ही का राजा बेटा हूं।’ जब पिता बना तब भी उसे याद था, कहता था, ‘मां आप मेरे लिए वो गातीं थीं ना....वो गाना मेरा है।’
अक्षय बड़ा होकर मेजर अक्षय गिरीश बन गया और फिर 29 नवंबर 2016 को एक नेशनल हीरो। तब, जब वह जम्मू कश्मीर के नगरोटा में हुए जैश ए मोहम्मद के आतंकी हमले के दौरान क्यूआरटी यानी क्विक रिएक्शन टीम को लीड कर रहा था।
पाकिस्तानी आतंकी चार जवानों को मारकर सेना के रेसिडेंशियल इलाके में घुस आए थे। जहां बच्चे, महिलाएं और बिना हथियार कितने ही सैनिक थे। पूरी तरह सुबह भी नहीं हुई थी जब अक्षय की टीम ने अदम्य साहस दिखाया और मासूम जिंदगियों को उन आतंकियों से बचाया। बतौर अक्षय की मां मैं हमेशा यही कहूंगी कि, जिस बहादुरी से अपनी परवाह किए बिना उसने उन मासूम जिंदगियों को बचाया इसका हमें गर्व है।
देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर हमारी तरह के बाकी पैरेंट्स से मिलना बेहद भावुक कर देता है। लेकिन, ये काफी सुकून देने वाला और कई मायनों में इंस्पायरिंग भी है। मेरी पहली मुलाकात उधमपुर में आशा गुप्ता से हुई। जब हम पहली बार गले मिले तो बिना कुछ बोले, खुद ब खुद हमारी आंखें नम हो गईं। पैरा स्पेशल फोर्स के यंग कैप्टन तुषार महाजन फरवरी 2016 में कश्मीर के पाम्पोर में एक सरकारी बिल्डिंग में फंसे कई लोगों की जान बचाने के बाद उन्होंने देश के खातिर अपनी जान दे डाली। तुषार के घर जाकर मालूम हुआ कि उनके हीरो शहीद भगत सिंह थे। आशा और मैं पिछले तीन सालों से अपना दुख साझा कर रहे हैं।
बेंगलुरु में हमारे घर से थोड़ी ही दूर पर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पेरेंट्स रहते हैं। संदीप ने ताज होटल मुंबई में कई टूरिस्ट की जान बचाई थी, अपनी जान की कीमत पर। आज वह लीजेंड बन चुका है।
धनलक्ष्मी अक्का, मेजर संदीप की खूबसूरत मां की बातों से पता चलता है, अक्का हर वो कुछ करना चाहती हैं जो संदीप चाहता था। उन्होंने साइकिल चलाना सीखा, बैंक का काम भी। संदीप के मम्मी पापा कई ऐसे युवाओं से भी मिले जो उनके बेटे से इंस्पायर्ड और मोटीवेटेड थे। वह कहती भी हैं, ‘जब लोग कहते हैं आपका एक ही बेटा था और आपने उसे आर्मी में जाने दिया, तो मैं कहती हूं ये सारे बच्चे भी मेरे हैं।’
पहली बार जब मैं मेजर मोहित शर्मा के घर दिल्ली गई तो उस दिन मोहित का बर्थडे था। उसकी मम्मी सुशीला जी ने सुबह से कुछ नहीं खाया था और तो और वह कमरे से बाहर ही नहीं निकली थीं। मार्च 2009 में मेजर मोहित और उनकी स्पेशल फोर्स की टीम कश्मीर के कुपवाड़ा में एक आतंकी ऑपरेशन का हिस्सा थी। मोहित ने अदम्य साहस से मुकाबला किया, खुद कुर्बान होने से पहले उन्होंने चार आतंकियों को मार गिराया और अपने दो साथियों को बचा भी लाए।
जब सुशीला जी ने हिम्मत बटोरी और बाहर हमसे मिलने आईं तो हमें उनके दुख का एहसास हो रहा था, लेकिन वह यही कोशिश कर रहीं थी कि हम असहज महसूस न करें। उस शाम के खत्म होने से पहले, मोहित की शरारतों, शौर्य और दीवानगी की कहानियां सुनकर हम दो परिवार एक बन चुके थे। गर्व और दर्द में हिस्सेदारी जो थी हमारी। खुशी हुई जब पता चला कि पिछले साल एक मेट्रो स्टेशन का नाम इस वीर के नाम पर रखा है।
लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह अशोक चक्र पर उस वक्त क्यूआरटी को लीड करने का जिम्मा था, जब 2004 में आतंकियों ने जम्मू रेलवे स्टेशन पर हमला किया और 7 लोगों की हत्या कर दी। लेफ्टिनेंट त्रिवेणी ने आतंकियों का पीछा किया और जान गंवाने से पहले दो को मार गिराया। मैं उनकी मां पुष्पलता के साथ किचन में आ गई और वह अपने बेटे की बातें सुनाते हुए हमारे लिए चाय बनाने लगीं।
वो बोलीं, ‘त्रिवेणी को तो काम करने की जरूरत ही नहीं थी। इतनी प्रॉपर्टी, लीची के बागीचे....लेकिन बचपन से ही उसको पैसों से नहीं, लोगों से प्यार था। शादी की पूरी तैयारी हो चुकी थी, मेन्यू डिसाइड हो रहा था जब हमें खबर मिली।’ उनके लिए अपना गम, गरिमा के पीछे छिपा पाना नामुमकिन हो रहा था। बाहर गेट पर जब हमनें पूछा कि क्या वो अक्षय की कार के साथ फोटो खिंचवाएंगी तो मां बोलीं, ‘हमारे भी बच्चे की कार है’, फिर अक्षय की कार पर हाथ रखकर बोलीं, ‘कितने प्यारे, निडर और दिलेर थे हमारे शेर बच्चे।’
हम उस दिन करगिल के पहले हीरो कैप्टन सौरभ कालिया की फैमिली से मिलने जा रहे थे। सौरभ की मम्मी हैं विजया दीदी। उन्होंने मुझे गले से लगाया और बोलीं, ‘मेरा बड़ा मन था आपसे मिलने का...विकास को भी कई बार बोला, अच्छा हुआ आप लोग आए।’ विजया दीदी सौरभ की कई कहानी सुनातीं हैं। कहने लगीं, ‘एक बार फैमिली में कोई गुजर गए थे, तो लोगों को रोते और उदास देखकर सौरभ बोला, मम्मी ये क्या है, डेथ तो कलरफुल होनी चाहिए...जब सौरभ शहीद हुआ तो लोगों की भीड़ किलोमीटर लंबी थी, सब चिल्ला रहे थे, भारत माता की जय और सौरभ अमर रहे।’ उनकी बातें सुनकर मेरा गला भर आया और आंसुओं को आंखों में रोके रखना बेहद मुश्किल था।
23 साल के सिपाही विकास डोगरा रेजिमेंट के उन 18 सैनिकों में से एक थे जो 2015 में मणिपुर में शहीद हुए। उनकी बस पर यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट के उग्रवादियों ने हमला किया था। आपने यदि उरी मूवी देखी है तो याद होगा फिल्म की शुरुआत मएक एम्बुश से होती है। जिसका हमारे सैनिक जवाब देते हैं। हिमाचल के एक गांव में विकास के पेरेंट्स रहते हैं। उनकी ज्यादा उम्र भी नहीं, आंखें दर्द से नम और उनकी बातें गुमसुम। विकास की मां, पिता और दादी को समझाती हैं, फिर अपनी बेटी की चिंता करते हुए कहती हैं, ‘बहन को भाई के जाने का बहुत दुख है, हमारी तो जिंदगी यूं ही कट जाएगी, पर उसे भाई का प्यार कहां से मिलेगा।’
हममें से कितने लोग मेजर सुधीर वालिया के बारे में जानते हैं? इंडिया के रैंबो रियल हीरो हैं वह। 4 जाट रेजिमेंट के मेजर सुधीर वालिया श्रीलंका में पीस कीपिंग फोर्स का हिस्सा थे। उन्होंने पैरा स्पेशल फोर्स को चुना, करगिल युद्ध लड़े, सेना प्रमुख जनरल वेद मलिक के एडीसी चुने गए, दो बार सियाचिन ग्लेशियर पर पोस्टेड रहे और जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया।
किसी वक्त में जोश से सराबोर रहनेवाली उनकी मां अब बोल भी नहीं पातीं और चलना फिरना भी बंद है। उनके दिमाग में खून के थक्के जम गए थे और फिर स्ट्रोक। मैंने जब कहा, ‘आप तो शेर की मां हैं’, तो उनकी आंखों में चमक थी, उन्होंने सिर हिलाकर हामी भी भरी और मेरी हथेली को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।
मेजर शिखर के पेरेंट्स अरविंद कुमार और पूनम थापा हैं। उनकी मां कहती हैं, ‘क्या करें जीना तो पड़ेगा, जब मैं सुवीर (अपने पोते) को देखती हूं तो और बुरा लगता है। कम से कम हम पेरेंट्स को शिखर के साथ 30 साल मिले, बहन के 24 साल और बीवी को 2 साल, लेकिन बेचारे इस बच्चे को तो पिता का प्यार बस 2 महीने ही नसीब हुआ।’ शिखर की पत्नी सुविधा ने अपने पति के नक्शे कदम पर चलने का फैसला किया। वह ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में वह कैडेट है। और बेटा सुवीर अपने दादा दादी के पास।
वैसे तो सभी हीरो और उनके बहादुर पेरेंट्स के साथ मैं न्याय नहीं कर सकी हूं। लेकिन कैप्टन अनुज नैय्यर, मेजर पी आचार्य, कैप्टन अमोल कालिया, कैप्टन उदयभान सिंह, कैप्टन देविंदर सिंह जस, राइफलमैन सोहनलाल, कैप्टन अमित भारद्वार, कैप्टन पवन कुमार, नायक चितरंडन देबारम, मेजर कुनाल गोसावी, कांस्टेबल एच गुरू, फ्लाइट लेफ्टिनेंट समीर अबरोल, सिपाही रविकांत ठाकुर उनमें से हैं जो मेरी ताकत का हिस्सा रहेंगे और उनकी बदौलत हमारे देश का झंडा उंचा।
हाल ही में हंदवाड़ा एनकाउंटर में हमने 5 वीरों को खो दिया, मातृभूमि की रक्षा करते, अधर्म से धर्म का युद्ध चलता रहेगा। हर वो युवा सैनिक जो युद्ध भूमि में धोखेबाज दुश्मन से मुकाबले को दाखिल होता है, यह जानकर कि उसका लौटना असंभव है, आज का अभिमन्यु है। अभिमन्यु की तरह उनमें काबीलियत है हिम्मत और शौर्य भी, दुश्मन के चक्रव्यूह में घुसने और उसे तोड़ने का।
हां वह मारे गए हैं लड़ते हुए, लेकिन उनकी महिमा हमेशा जिंदा रहेगी। इन शहीद सैनिकों को सैल्यूट कर और उनके खूबसूरत और अद्भुत परिवारों से मिलकर हमारी जिंदगी और ज्यादा अमीर और सार्थक हो गई है।
अब हमें अपने उन बेटों के फोन नहीं आते, चिटि्ठयां भी नहीं मिलतीं लेकिन वो हमेशा हमारे साथ हैं। आश्चर्य लगेगा लेकिन मेरी तरह की मांएं जो सांस लेती हैं तो हर सांस में जी रहा होता है उनका बेटा। वो अपने भाई बहनों के जरिए भी जिंदा रहते हैं, और हां अगर शादी शुदा हैं तो पत्नी और बच्चों में भी। एक मां आसपास के बच्चों में अपने बेटे को देखती है। मुझे लगता है, ‘हम सब के चंदा और सूरज जैसे बच्चे अब एक साथ गगन के तारों में चमकते हैं।’
मेरी ओर से आप सभी को हैप्पी मदर्स डे। ऊपर वाला आपके परिवारों को खुशी और साथ दे, हमेशा। मैं उम्मीद करती हूं आप आजादी और सुरक्षा के लिए लड़नेवाले हमारे सैनिकों के लिए गर्व और सम्मान महसूस करते होंगे।
जय हिंद की सेना। जय हिंद।