नई दिल्ली। जाति आधारित आरक्षण में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब लोगों को प्राथमिकता दिए जाने संबंधी आदेश की संभावना से घबराए आरक्षित जातियों के नेता बिहार में पार्टी की गाइड लाइन तोड़कर लामबंद हो गए। बिहार में आरक्षित जातियों की 40 में से 22 विधायक विधानसभा की लॉबी में जमा हुए और साझा संघर्ष का ऐलान किया। शपथ लेकर कहा कि आरक्षण को बचाने के लिए नेता और पार्टी से ऊपर हम सब काम करेंगे। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी मौजूद थे।
मामला क्या है, क्यों लॉक डाउन में लामबंदी हो रही है
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण संबंधी मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि जाति आधारित आरक्षण में जिन लोगों को पूर्व में आरक्षण का लाभ मिल चुका है और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी (आयकरदाता) है, उन्हें आरक्षण के लिए प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए। इसे एक प्रकार से अनुसूचित जाति जनजाति में क्रीमी लेयर का फार्मूला माना जा रहा है। हालांकि ना तो ऐसा कोई कानून बना है और ना ही कोई आदेश जारी हुआ है परंतु जाति आधारित आरक्षण में अनुसूचित जाति जनजाति के गरीबों को प्राथमिकता की संभावना मात्र ने यह स्थिति निर्मित कर दी है।
लामबंद हुए विधायक क्या चाहते हैं
विधायकों ने कहा कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका के जरिए आरक्षण के संविधान प्रदत्त अधिकार में कटौती की कोशिश हो रही है, इसलिए केंद्र सरकार आरक्षण को संविधान की नौंवी अनुसूची का अंग बनाए, ताकि इसमें छेड़छाड़ की गुंजाइश खत्म हो। उद्योग मंत्री श्याम रजक ने बताया कि विधायकों ने प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। पत्र पर मांझी के अलावा श्याम रजक, ललन पासवान, रामप्रीत पासवान, शिवचंद्र राम, प्रभुनाथ प्रसाद, रवि ज्योति, शशिभूषण हजारी, निरंजन राम, स्वीटी हेम्ब्रम सहित 22 विधायकों के दस्तखत हैं।
उन्होंने बताया कि बाहर रहने के कारण कुछ विधायक बैठक में नहीं आए। उन सबने टेलीफोन पर अपनी सहमति दी। विधायकों ने लॉकडाउन के बाद प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से मुलाकात का समय मांगा है। समय नहीं मिला तो हम सब बिहार के राज्यपाल से मुलाकात करेंगे। ज्ञापन देंगे। लड़ाई लंबी होगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही विधिवत मोर्चा बनेगा। इसका अलग कार्यालय रहेगा।
वहीं विधायकों का कहना है कि हाल के वर्षों में आरक्षण में कटौती के कई प्रयास किए गए हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण भी इसी प्रयास का हिस्सा है। उत्तराखंड सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सेवकों को प्रोन्नति में मिलने वाले आरक्षण को रद्द कर दिया। दुर्भाग्य यह है कि सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कह दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।