7 दिन में 585 किमी पैदल चले, 1100 किमी अभी और चलना बाकी; तब पहुंचेंगे घर की दहलीज पर

Posted By: Himmat Jaithwar
5/8/2020

इंदौर. बायपास पर पिछले कुछ दिनों से पलायन की दर्दनाक तस्वीर नजर आ रही है। सुबह 6 से रात 12 बजे तक तीन हजार से ज्यादा लोग पैदल, साइकिल, ऑटो, लोडिंग वाहनों से महाराष्ट्र और गुजरात से यूपी की तरफ जाते नजर आ जाएंगे। कोई दस दिन से पैदल चल रहा है तो कोई ऑटो या लोडिंग वाहन से पूरे परिवार को लेकर जा रहा है। किसी ट्रक में 50 से ज्यादा लोग गाय-भैंस की तरह ठूंसकर बैठाए गए हैं तो कोई ट्रक वाला 10 किमी के 100 रुपए वसूल रहा है। जिनके पास पैसा खत्म वे पैदल। खाना तो मिल रहा है लेकिन साधन नहीं। इन लोगों को भोजन, पानी, जूते-चप्पल के लिए बायपास पर 10 से ज्यादा संस्थाओं ने टेंट लगवाए हैं लेकिन साधन का कोई इंतजाम नहीं।

1. लिफ्ट दे रहे, पर 10 किमी के सौ रु. वसूल रहे

मेरा पूरा परिवार भोपाल के आगे बेगमगंज में है। नासिक में एक फैक्टरी में नौकरी करता था। डेढ़ महीने से बेरोजगार बैठा था। अब घर लौट रहा हूं। कभी-कभी ट्रक वाले लिफ्ट दे देते हैं लेकिन 10 किलोमीटर के 100 रुपए वसूल रहे हैं।

2. कुछ नहीं मिला तो रिक्शा में ही चल दिए

चाचा संतराम, रिश्तेदार पवन, पूनम और बच्चे सनी को लेकर ऑटो रिक्शा से निकल पड़े। सब कुछ छोड़कर लौट रहे हैं। नौकरी छूटने के बाद वहां मकान का किराया भरने के लिए भी पैसे नहीं बचे। गाड़ी में सीएनजी भी नहीं भरवा पा रहे हैं।

3. सेठ ने रवाना कर दिया, अब कोई काम नहीं


हम 20 साथियों के लिए रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है। गांव से काम की तलाश में हम लोग शहर गए थे, लेकिन अब बेरोजगार हैं। सेठ ने गाड़ी कर गांव भेजने का इंतजाम कर दिया लेकिन अब हमारे पास कोई रोजगार नहीं।

4.  कोई मदद नहीं, 7 दिन से पैदल ही चल रहे

मैं बंसीलाल और मेरे साथी पैदल चलते-चलते इंदौर पहुंचे हैं। हमारा गांव बलरामपुर 1100 किमी दूर है। रास्ते में खाना तो मिल रहा है लेकिन साधन नहीं। सरकार ने कोई मदद नहीं की। दस लोगों को कोई लिफ्ट भी नहीं दे रहा।

5.   27 अप्रैल से चल रहे, आप ही मदद कर दो

27 अप्रैल से पैदल चलते-चलते गुरुवार को इंदौर पहुंचे। न पुलिस ने और न किसी गाड़ी वाले ने हमारी मदद की। हमें बनारस जाना है, किसी गाड़ी में बैठा दीजिए। अब चलने की हिम्मत नहीं। पैसे भी नहीं बचे हैं। आप ही मदद कर दो।

6. कुछ पैसे बचाए थे, वो भी किराए में झोंक दिए

सात साथियों और परिवार के साथ बलरामपुर लौट रहे हैं। वहां हम्माली करते थे। लॉकडाउन के बाद से रहना मुश्किल हो गया। गांव के लोगों को जमा किया और पैसे इकट्‌ठे कर गांव तक पहुंचाने के लिए लोडिंग रिक्शा किया। सारी पूंजी भाड़े में जाएगी।



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