कोच्चि. केरल तैयार है अपने प्रवासियों के स्वागत को। आज पैसेंजर को लेकर पहली फ्लाइट केरल पहुंचेगी। जिस दिन से केरल के प्रवासियों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ है तभी से बड़ी संख्या में लोग वतन वापसी के लिए इस पर रजिस्टर कर रहे हैं।
केरल सरकार के एनओआरकेए नॉन रेसिडेंट केरलाइट्स अफेयर्स के डेटा के मुताबिक, 3 मई तक दुनिया के अलग-अलग देशों के कुल 4.13 लाख लोगों ने उन्हें वहां से वापस घर भेजने के लिए रजिस्टर किया था। इसके अलावा भारत के अलग-अलग राज्यों में फंसे 1.5 लाख केरल वालों ने भी इसके लिए रजिस्टर किया है। लेकिन ये केरल के कुल प्रवासियों का सिर्फ 10 प्रतिशत हैं जिन्होंने वापसी के लिए आवेदन किया। जबकि एनओआरकेए के मुताबिक केरल के 40 लाख लोग विदेशों में हैं।
विदेशों से रजिस्टर्ड 4.13 लाख लोगों में से 61 हजार सिर्फ इसलिए लौट रहे हैं क्योंकि उनको नौकरी से निकाल दिया है। वहीं 9 हजार के करीब गर्भवती महिलाएं हैं और 10 हजार बच्चे और और 11 हजार बुजुर्ग। 41 हजार वो लोग हैं जो टूरिस्ट वीजा पर विदेश गए हुए थे। इसके अलावा जिन्होंने वापस वतन आने को आवेदन दिया है उनमें 806 नॉन रेसिडेंट केरेलाइट्स हैं जिन्होंने जेल की सजा पूरी कर ली है। वहीं अकेले यूएई से आनेवाले डेढ़ लाख मलयाली हैं।
कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट इन प्रवासियों को रिसीव करने की तैयारी लगभग पूरी कर चुका है। ये फ्लाइट्स 7 से 13 मई के बीच आनी हैं। पहले फेज में 10 फ्लाइटें आएंगी जिनमें 2150 यात्री होंगे। एयरपोर्ट पर सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना से जुड़े सभी प्रोटोकॉल को लेकर एहतियात बरते जा रहे हैं। तीन फेज में डिसइंफेक्टेंट स्प्रे किया जाएगा, जिसकी मॉक ड्रिल की जा रही है। टेस्टिंग पूरी हो चुकी है। टेम्प्रेचर गन तैयार है। अराइवल गेट पर थर्मल स्कैनर इंस्टॉल किए जा रहे हैं। सिंथेटिक और टेक्सटाइल लगे सभी फर्नीचर को टेम्पररी फर्नीचर यानी प्लास्टिक चेयर से बदल दिया गया है।
इसके अलावा भारतीय नौसेना ने भी लोगों को वापस लाने के लिए ऑपरेशन चलाया है और इसके लिए जहाज तैनात किए हैं। ये जहाज लोगों को कोच्ची और कोझीकोड लेकर आएंगे।
हालांकि ऐसे भी प्रवासी हैं जिन्होंने वापस नहीं लौटने का फैसला किया है। लिजिथ शाहरजहां में काम करते हैं। वह कहते हैं, ‘मैं 15 सालों से इस कंपनी के लिए काम कर रहा हूं, मैंने यहीं रुकने का फैसला किया है। यदि मैं तुरंत लौट जाता हूं तो हो सकता है मुझे फायदा न हो। और इसकी भी कोई ग्यारंटी नहीं है कि मुझे वापस इस देश में एंट्री मिले। यदि एंट्री मिल भी गई तो नौकरी का क्या भरोसा।’
दुबई में सुपरवाइजर की नौकरी कर रहे सुधीश एनीडिल का कहना कुछ अलग है। सुधीश बोले, ‘मैंने लौटने के लिए रजिस्टर इसलिए नहीं किया क्योंकि ऐसे कई लोग हैं जिनका लौटना ज्यादा जरूरी है। मुझे उतनी दिक्कतों को सामना नहीं करना पड़ रहा है जितना बाकी कई लोगों को। कई की नौकरी चली गई है और कितनों के वीजा खत्म होने को हैं। कुछ ऐसे हालात में रह रहे हैं जहां फिजिकल डिस्टेंसिंग असंभव है। मैं रोज ऑफिस जा रहा हूं और वतन वापसी का हक किसी से छीनना नहीं चाहता।’
इस सबके बीच जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है वो है केरल की अर्थव्यवस्था। इतनी ज्यादा संख्या में प्रवासियों की नौकरी जाना यहां की अर्थव्यवस्था पर इसलिए भी बुरा असर डालेगी क्योंकि यह राज्य काफी हद तक विदेशों से आनेवाले पैसों पर निर्भर है।
कोच्चि स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च के चेयरमैन डॉ. डी धनुराज के मुताबिक 'केरल पर प्रवासियों के लौटने का भारत के किसी भी राज्य से ज्यादा बुरा असर होगा। यह न केवल अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा बल्कि सामाजिक तानेबाने को भी।’
थिंक टैंक के मुताबिक केरल की सम्पन्नता काफी ज्यादा विदेशों से आने वाले पैसों पर निर्भर है। हर साल यहां 60 हजार करोड़ रुपए विदेशों से आते हैं। यदि केरल में सर्विस सेक्टर से लेकर हेल्थ या फिर रीटेल में ग्रोथ हो रही है तो उसका सीधा कारण बाहर से आनेवाला पैसा है। हो सकता है केरल में लोन डिफॉल्टर बढ़ जाएं। राज्य की अर्थव्यवस्था में 65 प्रतिशत सर्विस सेक्टर से है।
धनुराज कहते हैं, ‘बाकी राज्यों में महामारी खत्म होते ही इंडस्ट्रीज खुल जाएंगी। लेकिन वह केरल में संभव नहीं होगा। इसके अलावा प्रवासियों का पुर्नवास भी बड़ी चुनौती होगा। जो भी लौटकर आ रहे हैं उनमें कई सारे ऐसे लोग हैं जिनकी नौकरी चली गई है। सरकार को इनके लिए कुछ सोचना होगा।’
बिनोय पीटर सेंटर फॉर माइग्रेशन एंड इन्क्लूजिव डेवलपमेंट सीएमआईडी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। उनका कहना भी कुछ ऐसा ही है। बिनोय के मुताबिक प्रवासियों का लौटना सिर्फ इकोनॉमी नहीं बल्कि समाज पर भी असर डालेगा क्योंकि ये मसला परिवारों से जुड़ा है। वह कहते हैं जो केरेलाइट्स विदेशों में ब्लू कॉलर जॉब कर रहे थे वो ऐसा केरल में नहीं कर पाएंगे। यही नहीं उन्हें विदेशों में पूरी सेफ्टी के साथ नौकरी करने की सुविधा थी जो यहां नहीं है।’