भोपाल. जो इंदौर कोरोनावायरस का हॉटस्पॉट बना हुआ है, वहां अब मरीजों से कोरोना के नाम पर लूट की शिकायतें भी सामने आ रही हैं। कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें कोरोना की रिपोर्ट के आधार पर मरीजों को जबरन हॉस्पिटल में एडमिट किया गया और फिर लंबा बिल थमा दिया गया।
एक कोरोना मरीज की रिपोर्ट 26 अप्रैल को आ गई थी लेकिन मरीज को उसके बारे में 2 मई को पता चला। हॉस्पिटल ने मरीज से 2 मई तक का कुल 76 हजार रुपए बिल भरवाया।
इसी तरह के अन्य मामले में हॉस्पिटल मरीज की रिपोर्ट देने से इंकार करता रहा और मरीज के परिजन खुद ही लैब से रिपोर्ट लेकर हॉस्पिटल पहुंच गए, तब जाकर कहीं मरीज की छुट्टी हो पाई।
पहला मामला 59 वर्षीय ओमप्रकाश पांडे का है। उन्हें तेज बुखार के बाद 24 अप्रैल को गोकुलदास हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था।
निमोनिया से संक्रमित पाए गए ओमप्रकाश 28 अप्रैल तक ठीक हो चुके थे। इसके बाद परिजनों ने हॉस्पिटल प्रबंधन से डिस्चार्ज करने की बात कही।
इस पर हॉस्पिटल ने यह कहते हुए डिस्चार्ज करने से मना कर दिया कि अभी कोरोना की रिपोर्ट नहीं आई है और मरीज कोरोना संदिग्ध हैं। इसलिए डिस्चार्ज नहीं कर सकते।
परिजनों ने भी प्रबंधन की बात का समर्थन किया लेकिन उनका सब्र तब टूट गया जब रिपोर्ट अगले चार दिनों तक भी उन्हें नहीं दी गई।
मरीज की परिजन नम्रता पांडे ने बताया कि, प्रबंधन रिपोर्ट के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं दे रहा था। वे लोग सिर्फ इंतजार करने का कह रहे थे।
फिर जब 2 मई को हमने काफी ज्यादा पूछताछ की तो बताया गया कि आपकी रिपोर्ट धोखे से अहमदाबाद चली गई है, जो शाम तक आ जाएगी।
इसी बीच नम्रता के एडवोकेट भाई ने छोटी ग्वालटोली थाने के जरिए रिपोर्ट की जानकारी ली। वहां से पता चला कि ओमप्रकाश पांडे की रिपोर्ट नेगेटिव है। जो 26 अप्रैल को ही आ गई थी।
जबकि हॉस्पिटल ने इस बात की जानकारी मरीज को 2 मई को दी। उन्होंने पूछा कि, रिपोर्ट 26 अप्रैल को आ गई थी तो हमें 2 मई को क्यों दी गई तो प्रबंधन ने कहा कि, हमें 2 मई को ही मिली, इसलिए लेट दी।
इसके बाद मरीज से 2 मई तक का 76 हजार रुपए बिल जमा करवाया गया। इसका मरीज के परिजनों ने पहले विरोध किया लेकिन बाद में उन्हें पैसे जमा करना ही पड़े।
नम्रता का कहना है कि, हमारे पिताजी का निमोनिया का इलाज हुआ है। वो 27-28 अप्रैल को ही ठीक हो गए थे।
हमें 28 तक का पैसा भरने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन 2 मई तक रिपोर्ट के बारे में न बताकर हमारे साथ धोखाधड़ी की गई है।
मरीज को लिखित में रिपोर्ट नहीं दी गई। सिर्फ मौखिक बताया गया कि रिपोर्ट नेगेटिव है और 2 मई को डिस्चार्ज कर दिया गया।
नम्रता ने बुधवार रात इस मामले में पुलिस में लिखित में शिकायत दर्ज करवाई।
जिम्मेदार बोले, 48 से 72 घंटे तक का लगता है समय
इंदौर में कोरोनावायरस की रिपोर्ट का कामकाज देख रहे एमवाय के डॉ.बृजेश लाहोटी (पीडियाट्रिक सर्जन) से रिपोर्ट तैयार होने की प्रक्रिया और समय जाना।
उन्होंने बताया कि, रिपोर्ट तैयार होने में 48 से 72 घंटे तक लग जाते हैं। लैब से रिपोर्ट आने के बाद डीन के पास जाती है।
वहां से सभी प्रक्रियाएं पूरी होने के बाद ईमेल के जरिए उसी दिन हॉस्पिटल को भेज दी जाती है।
उन्होंने बताया कि, रिपोर्ट के पहले और बाद की कागजी प्रक्रिया भी काफी लंबी है। सभी जानकारियों का दो बार मिलान होता है इसके बाद ही रिपोर्ट जारी कर पाते हैं, ताकि किसी तरह की गड़बड़ी न हो।
थाने से जो पीडीएफ मिली, उसमें तारीख 26 अप्रैल
नम्रता के भाई ने अपने व्यक्तिगत संपर्क से छोटी ग्वालटोली थाने से कोरोना जांच वाले मरीजों की लिस्ट निकलवाई तो वहां से पता चला कि ओमप्रकाश पांडे की रिपोर्ट 26 अप्रैल को ही नेगेटिव आ गई थी।
सभी एसडीएम द्वारा थानों को भी कोरोना मरीजों की रिपोर्ट मुहैया करवाई जा रही है, ताकि वे पॉजिटिव मरीजों को क्वारेंटाइन करवा सकें।
अब सवाल ये खड़े हो रहे हैं कि, जब रिपोर्ट 26 अप्रैल को आ गई थी तो फिर मरीज को छटवें दिन क्यों दी गई? और इन दिनों के पैसे भी जमा करवाए गए।
डॉक्टर ने कहा, बिल का क्या है मैडम
नम्रता ने बताया कि, डिस्चार्ज करने पर जब मैंने हॉस्पिटल में डॉक्टर से कहा कि सर हमारा बिल बढ़ रहा है और हम इतना अफोर्ड नहीं कर सकते।
उन्होंने जवाब दिया कि, बिल का क्या है मैडम। बाहर जाओ, पुलिस डंडे मारती है तब भी तो बचने के लिए पैसे देना ही होते हैं।
नम्रता के मुताबिक, हमारा परिवार जिस स्थिति से गुजरा, उसे बयां भी नहीं कर सकते। मेरे देवर आर्मी में हैं, जो अभी असम में पोस्टेड हैं। घर में चार बच्चे, देवरानी और पति हैं।
जब तक पिताजी की रिपोर्ट नहीं आई तब तक हम लोग मानसिक रूप से प्रताड़ित होते रहे। दिनरात चिंता लगी रहती थी। न खाने में मन लगता था, न ही नींद आती थी।
बोंली, रिपोर्ट देरी से आई या हॉस्पिटल ने देर से दी तो इसमें हमारी क्या गलती। यह खर्चा हम क्यों भुगतें।
रश्मि तिवारी का भी ऐसा ही मामला
राधानगर की रहने वाली कोरोना पॉजिटिव रश्मि तिवारी के साथ भी ऐसा ही मामला सामने आया है। वे भी एक निजी अस्पताल में एडमिट थीं। पहले उनकी रिपोर्ट 2 मई को आने वाली थी। लेकिन नहीं आई।
फिर उनका 4 मई को दोबारा सैंपल लिया गया और कहा गया कि पिछले सैंपल की रिपोर्ट नहीं आ पाई है, इसलिए ये सैंपल ले रहे हैं।
शक होने पर उनके पति विशाल तिवारी ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज में संपर्क किया तो उन्हें 4 मई को ही वहां से रिपोर्ट मिल गई जो नेगेटिव निकली। उन्होंने रिपोर्ट हॉस्पिटल में दिखाई तो मरीज की उसी दिनछुट्टी कर दी गई।