शीतलाष्टमी और मां शीतला की महत्ता का उल्लेख स्कन्द पुराण में बताया गया है। यह दिन देवी शीतला को समर्पित है। कुछ लोग इसे सप्तमी के दिन मनाते हैं और कुछ प्रांतों में यह पर्व अष्टमी के दिन मनाया जाता है। दोनों ही दिन माता शीतला को समर्पित हैं। महत्वपूर्ण यह है कि माता शीतला का पूजन किया जाए।
बसोड़ा की परंपरा
बसोड़ा की परंपराओं के अनुसार, इस दिन भोजन पकाने के लिए अग्नि नहीं जलाई जाती। इसलिए अधिकतर महिलाएं शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन पका लेती हैं और बसोड़ा वाले दिन घर के सभी सदस्य इसी ठंडे भोजन का सेवन करते हैं। माना जाता है शीतला माता चेचक रोग, खसरा आदि बीमारियों से बचाती हैं। मान्यता है, शीतला मां का पूजन करने से चेचक, खसरा, बड़ी माता, छोटी माता जैसी बीमारियां नहीं होती और अगर हो भी जाए तो उससे जल्दी ही छुटकारा मिलता है।
पूजा के बाद बसोड़ा बांट कर मनाया जाता है ये पर्व
इस दिन महिलाएं ठंडे पानी से नहाती हैं और उसके बाद पूजा की सभी सामग्री के साथ रात में बनाए गए भोजन को लेकर पूजा करती हैं। इस दिन व्रत किया जाता है तथा माता की कथा सुनी जाती है। इसके बाद शीतलाष्टक स्तोत्र पढ़ा जाता है। शीतला माता की वंदना के बाद उनके मंत्र पढ़ें जाते हैं। पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद बसोड़ा को बांटा जाता है। इस प्रकार पूजन समाप्त होने पर भक्त माता से सुख शांति की कामना करता है।
शीतला माता का स्वरूप
प्रचलित मान्यता के अनुसार शीतला मां का स्वरूप अत्यंत शीतल है और रोगों को हरने वाला है। इनका वाहन गधा है, तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है। इनकी उपासना का मुख्य पर्व शीतला अष्टमी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को बसोड़ा पूजन किया जाता है।