लॉकडाउन से खतरे में हैं कई बैंक? विदेशी निवेशकों ने बैंकों में घटाई अपनी हिस्सेदारी

Posted By: Himmat Jaithwar
5/1/2020

कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण कई बैंकों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। विदेशी निवेशकों ने लॉकडाउन के चलते बैड लोन में बढ़ोतरी होने और लोन बांटने की रफ्तार में सुस्ती आने की चिंता बढ़ने पर मार्च क्वॉर्टर के दौरान ज्यादातर बड़े बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाई है। ऐनालिस्टों का कहना है कि इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ने सेंसेक्स और निफ्टी में बैंकों के दबदबे वाली स्थिति को देखते हुए उनमें लिमिट से ज्यादा पैसा लगा रखा था। उनकी अधिकांश बिकवाली 19 फरवरी के बाद होने का अनुमान है, जब इकॉनमी पर कोविड 19 के असर को लेकर चिंता बढ़ने पर मार्केट में गिरावट शुरू हुई थी।

फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) ने बैंक निफ्टी में शामिल 11 शेयरों में से 9 में मार्च क्वॉर्टर में अपनी हिस्सेदारी घटाई। उन्होंने एसबीआई में अपना स्टेक दिसंबर 2019 क्वॉर्टर के 10.84% से घटाकर 9.47% कर दिया, जबकि कोटक महिंद्रा बैंक में उनकी होल्डिंग तिमाही आधार पर 39.75% से घटकर 39.17% पर आ गई। उन्होंने HDFC बैंक में अपना स्टेक दिसंबर क्वॉर्टर के 30.8% से घटाकर मार्च क्वॉर्टर में 29.8% कर दिया। उन्होंने ICICI बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, एक्सिस बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, IDFC फर्स्ट बैंक और बंधन बैंक में भी अपना स्टेक घटाया है।

बैंकिंग को सबसे बड़ा झटका
2020 में अब तक बैंक निफ्टी लगभग 35% कमजोर हुआ है, जबकि निफ्टी 21.5% नीचे है। हालांकि, बैंक निफ्टी 24 मार्च को बने 16,116.25 के लो से 31% ऊपर आ चुका है। IIFL सिक्यॉरिटीज के डायरेक्टर संजीव भसीन कहते हैं, 'कोविड19 से सबसे बड़ा झटका बैंकिंग सेक्टर को लगेगा। रिटेल और कॉर्पोरेट को झटका लगा है, इसलिए स्लिपेज में बढ़ोतरी हो सकती है।' CLSA ने हाल ही में बैंकिंग शेयरों के टारगेट प्राइस में 20-70% की कटौती की है, क्योंकि पहले से ही सुस्ती की शिकार लोन ग्रोथ पर कोविड के चलते और दबाव बन गया है, लोन क्वॉलिटी खराब होने का जोखिम बढ़ गया है।

टारगेट प्राइस में कटौती
UBS ने बैंकिंग शेयरों के टारगेट प्राइस में 5-41% की कटौती की है, क्योंकि उसका मानना है कि रिस्क रिवॉर्ड रेशियो अनुकूल नहीं है और कलेक्शन को लेकर जोखिम बढ़ रहा है। ट्रेडर्स अब अपनी पोजिशन फार्मा काउंटर की तरफ शिफ्ट कर रहे हैं, जिसको एसेंशियल सर्विसेज में शामिल किया गया है और पिछले कुछ वर्षों से रेग्युलेटरी दिक्कतों के चलते इनमें जरूरत से काफी कम निवेश हो रहा था।



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