डॉ. नरेंद्र अरजरिया। टूट गई है माला मोती बिखर चले... कवि प्रदीप के भजन कि यह लाइन आज बुंदेलखंड की उस मजदूर परिवार पर साबित हुई। जिसने क्वॉरेंटाइन सेंटर में अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। 1 माह से अधिक का लॉक डाउन और मजदूरी का अभाव। घर आए तो प्रशासन ने शासकीय भवन में क्वॉरेंटाइन कर दिया। कोटा से छात्र आये तो उनकी स्क्रीनिंग करके उन्हें उनके घर में क्वॉरेंटाइन किया गया और मजदूर बाहर से आए तो उसे शासकीय बिल्डिंग में क्वॉरेंटाइन किया जाता है क्योंकि इस बीमारी का खतरा प्रशासन की नजरों में सबसे ज्यादा मजदूर से है?
प्रशासन है, भूल जाता है की कोरोना जैसी महामारी भारत में अमीर ही लेकर आए ना कि गरीब। रुलाने वाली है तस्वीर आपको विचलित कर सकती है। बुंदेलखंड के उस जिले से आई है जिसे भारत में टाइगर बचाने का गौरव हासिल है। 19 साल का एक नौजवान मजदूरी करने बाहर गया था। लॉक डाउन बढ़ा तो है वह अन्य मजदूरों की तरह अपने घर की ओर रवाना हुआ। 24 अप्रैल को जब उसने अपने गांव की सरजमी पर पैर रखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि वह अपने जन्म भूमि और अपनों के बीच पहुंच चुका था। स्क्रीनिंग भी हुई रिपोर्ट सही थी लेकिन वह घर में नहीं रह सकता था।
मजदूर था वह, कोई बड़े या अमीर आदमी का बेटा नहीं था जिसे सरकार कोटा से लाती भी है और क्वॉरेंटाइन भी उसको उसके घर में करती है। इस गरीब नौजवान को प्रशासन ने सरकारी भवन में क्वॉरेंटाइन कर दिया लेकिन 28 अप्रैल की दोपहर उसी भवन में फांसी पर लटकी हुई लाश मिली।
यह आत्महत्या है या हत्या, क्या कारण रहे होंगे यह विवेचना का विषय पुलिस के लिए हो सकता है लेकिन जिस परिवार ने अपने नौजवान को खोया है अब उनके जीवन में अंधेरा ही अंधेरा रहेगा क्योंकि वह उम्र में छोटा था लेकिन परिवार का भरण पोषण उसी के दम पर होता था। क्या एक प्रशासनिक गलती ने उसके परिवार का दीपक बुझा दिया ? जब उसकी रिपोर्ट सही थी तो उसको होम क्वॉरेंटाइन क्यों नहीं किया गया? क्या इस सेंटर पर शासन की सुविधाएं ठीक नहीं थी? ऐसी क्या वजह बनी कि एक घर के खेलते हुए 19 साल के चिराग कोरोनावायरस बच गया लेकिन क्वॉरेंटाइन में आकर मर गया?
यह ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब प्रशासन को देना चाहिए लेकिन शायद ही इन सब के जवाब उस परिवार तक पहुंचे जिसने अपने लाल को खो दिया है। पन्ना के वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिंह कहते हैं 10 लाख पन्ना जिले की आबादी है। शासकीय रिकॉर्ड के अनुसार 12000 मजदूर जिले में आए लेकिन प्रशासन 34 दिन में 152 लोगों के सिर्फ सैंपल ले सका। जिला प्रशासन ने जो क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए हैं उनमें लोगों की स्थिति ठीक नहीं है और व्यवस्थाएं बहुत खराब है। ऐसे में क्वॉरेंटाइन किए गए व्यक्ति की मनोदशा पर प्रभाव पड़ता है। जिस तरह मृतक की लाश क्वॉरेंटाइन सेंटर में मिली है वह कई संदेह को जन्म देती है क्योंकि जिस खिड़की से उसने फांसी लगाई है उसकी ऊंचाई 5 फुट से ज्यादा नहीं है लेकिन प्रशासन को तय करना है कि आखिर मामला क्या है ?