होली के बाद चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व देशभर में आज मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन आसमान में अबीर-गुलाल, हल्दी और चंदन के साथ ही फूलों से बने रंग उड़ाने से राजसिक और तामसिक प्रभाव कम होकर उत्सव का सात्विक स्वरूप निखरता है। देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं।
ब्रह्मांड में विद्यमान गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से संबंधित हैं। उसी प्रकार मानव के देह में विद्यमान कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओं से संबंधित हैं। रंगपंचमी मनाने का अर्थ है, रंगों द्वारा सातों देवताओं को जागृत कर उन्हें आकृष्ट करना। इस प्रकार सभी देवताओं के तत्व मानव के देह में परिपूर्ण होने से आध्यात्मि क दृष्टि से साधना पूर्ण होती है। इन रंगों द्वारा देव तत्व के स्पर्श की अनुभूति लेना ही रंगपंचमी का एकमात्र उद्देश्य है। इसके लिए रंगों का उपयोग दो प्रकार से किया जाता है। पहला है, हवा में रंग उड़ाना एवं दूसरा है, पानी से एक-दूसरे पर रंग डालना।
इसलिए निकलती है गेर
रंगपंचमी पर एक-दूसरे को स्पर्श कर रंग लगाकर नहीं बल्कि वायुमंडल में खुशी से रंगों को उड़ाकर ये पर्व मनाना चाहिए। ऐसा करके रंगों के माध्यम से देवताओं का आव्हान किया जाता है। इस समय मन में यह भाव रखना चाहिए कि हम अवतरित होने वाले देवताओं का स्वागत करने के लिए रंगकणों की दरी बिछा रहे हैं।
हवा में रंग उड़ाने का परिणाम
इस दिन पृथ्वी के चारों ओर विद्यमान नकारात्मक तत्वों पर दैवीय और चैतन्य शक्ति का असर ज्यादा होता है। इसके चलते वायु के साथ आनंद का प्रवाह पृथ्वी की ओर होता है। रंगपंचमी पर उड़ाए गए इंद्रीय रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण अनिष्ट शक्ति से युद्ध करते हैं। जिस तरह रंगपंचमी के रंग हवा में उड़कर पृथ्वी को दैवीय शक्तियों से पूर्ण करते हैं, उसी तरह मनुष्य का आभामंडल भी इन रंगों के माध्यम से शुद्ध और प्रबल होता है।
रंग डालना यानी ईश्वरीय तत्व की पूजा
वायुमंडल में रंग उड़ाना यानी ब्रह्मांड में विद्यमान देवतातत्व की पूजा करना है, तो दूसरी ओर पानी में रंग मिलाकर एवं उसे पिचकारी की मदद से एक-दूसरे पर डालना, यह दूसरे जीव में विद्यमान ईश्वरीय तत्व की पूजा करना है।