नई दिल्ली. कोरोनावायरस ने देश और दुनिया को बहुत गम और दर्द दिया है। कोरोना के डर से सबकुछ बंद हो चुका है। एक महीने से लोग घरों में बंद हैं। ट्रेनें स्टेशनों पर, हवाई जहाज एयरपोर्ट्स पर, बसें अपने अड्डों पर बंद हैं। दुकानें खरीददारों के बिना बंद हैं। इस सबके बीच कोरोना का एक उजला पक्ष भी है, जिससे उम्मीद की रोशनी दिखती है, सबक मिलता है और बदलाव की खुशबू भी आती है। वह प्रकृति का अश्क है। जिसमें लॉकडाउन का चेहरा साफ दिख रहा है। हवा पहले से कहीं ज्यादा साफ हो गई है, नदियों के किनारों से गंदगी गायब दिख रही है। सड़कों पर अनावश्यक भीड़ भी नहीं है। शहर हरे-भरे नजर आ रहे हैं। अब दिल्ली को ही देखो तो लगता है, मानो दिल वही है, बस धड़कन तेज हुई है। बनारस को देखो तो लगता है, रस वही है, बस रवैया नया है।
लॉकडाउन के दौरान देश की कुछ प्रमुख जगहों की मौजूदा और पुरानी तस्वीरों को देखने से यह अंतर साफ समझ में आता है। तो आज फ्लैशबैक में देश की कुछ ऐसी ही अनदेखी तस्वीरें आपके लिए...
बदली और उजली नजर आ रही दिल्ली
दोनों तस्वीरें दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके की हैं। जगह एक ही है, अंतर बस वक्त का है। पहली तस्वीर 8 नवंबर 2018 की है। दूसरी तस्वीर 8 अप्रैल 2020 की है। इसमें लॉकडाउन का असर साफ दिख रहा है। लॉकडाउन से दिल्ली में पहले 21 दिन में ही प्रदूषण का स्तर काफी कम हो गया है।
दोनों तस्वीरें इंडिया गेट के सामने की हैं। पहली तस्वीर इसी साल 24 मार्च की है, जिस दिन से देश में लॉकडाउन शुरू हुआ था। दूसरी तस्वीर 2 अप्रैल यानी 10 दिन बाद की है। तस्वीरों में एक बाइक सवार व्यक्ति इंडिया गेट के सामने से गुजर रहा है। पहले की तस्वीर की तुलना में दूसरी तस्वीर में वायुमंडल ज्यादा साफ नजर आ रहा है।
दोनों तस्वीरें राष्ट्रपति भवन के सामने की हैं। पहली तस्वीर इसी साल 24 मार्च की है, जिस दिन से देश में लॉकडाउन शुरू हुआ। दूसरी तस्वीर 2 अप्रैल यानी 10 दिन बाद की है। तस्वीरों में एक व्यक्ति पैदल जा रहा है। पहले की तस्वीर की तुलना में दूसरी तस्वीर में वायुमंडल ज्यादा साफ नजर आ रहा है।
दोनों तस्वीरों में दिल्ली स्थित युमना नदी का किनारा नजर आ रहा है। पहली तस्वीर एक साल पहले यानी 21 मार्च 2018 की है। दूसरी तस्वीर इसी 8 अप्रैल की है। दोनों में नदी के किनारे पर नाव खड़ी है, जगह भी एक है। बस फर्क वक्त का है। इसमें साफ दिख रहा है कि पहले की तुलना में यमुना का पानी कितना साफ हो गया है। गंदगी भी नदारद है।
दोनों तस्वीरें दिल्ली की हैं। पहली तस्वीर 30 मार्च 2019 की है। जब बिजली के हाई बोल्टेज तारों के बीच पक्षी चहचहा रहे हैं और आसमान में धुंध नजर आ रही है। दूसरी तस्वीर इसी 13 अप्रैल की है। इस तस्वीर में उन्हीं हाई वोल्टेज तारों के बीच आसमान साफ दिखाई दे रहा है। पहले जैसा प्रदूषण भी नहीं है। ऐसा लगता है कि मानो अब आसमान के इरादे भी साफ हो गए हैं।
बनारस
दोनों तस्वीरें बनारस में गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट की हैं। यहां शवों का दाह संस्कार किया जाता है। इस तरह का देश का सबसे बड़ा घाट है। पहली तस्वीर 10 मई 2015 की है। दूसरी तस्वीर इसी 10 अप्रैल की है। सामान्य दिनों में यहां काफी भीड़ होती है। बड़ी संख्या में शवों का अंतिम संस्कार हो रहा होता है। पहले 200 से 300 शव तो बनारस के बाहर से आते थे। लेकिन इन दिनों दो-चार शव ही बाहर से आ रहे हैं।
दोनों तस्वीरें बनारस के दश्वाशमेध घाट की हैं। पहली तस्वीर 3 मई 2019 की है। दूसरी तस्वीर 9 अप्रैल 2020 की है। यहां रोजाना भव्य गंगा आरती होती है। पहली तस्वीर में साफ दिख रहा है कि पहले गंगा आरती के दौरान किस कदर भीड़ होती थी। आरती करने वाले पुजारी भी ज्यादा होते थे। लेेकिन अब लॉकडाउन के चलते यहां सिर्फ 10-15 लोग ही आ रहे हैं। आरती करने वाले पुजारी भी बस एक-दो आ रहे हैं।
13 दिन में ही जिंदगी धुंध से बाहर निकल आई
दोनों तस्वीरों में दयाराम कुशवाहा और उनका पांच साल का बेटा शिवम है। पहली तस्वीर इसी 26 मार्च की है, जब लॉकडाउन के चलते दयाराम बच्चे को कंधे पर बैठाकर दिल्ली से अपने गांव जुगयाई (मध्य प्रदेश) लौट रहे थे। उन्हें न वाहन मिल रहा था, न ही खाना। दूसरी तस्वीर 8 अप्रैल की है, जब दयाराम अपने गांव में खेत से काम करके घर लौट रहे हैं। महज 13 दिन में दयाराम की जिंदगी दिल्ली के धुंध और गुबार से बाहर निकल आई। यह तस्वीर में भी झलक रही है।