एक बार शरीर में एंटी-बॉडी बन गई तो कभी नहीं होगा कोरोना का संक्रमण? जानें ICMR ने क्या कहा

Posted By: Himmat Jaithwar
4/16/2020

कोरोना पर डेली ब्रीफिंग के दौरान आज भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के प्रतिनिधि ने एंटी-बॉडी और कोरोना वायरस के अटैक के बारे में बड़ी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जब भी कोई वायरस किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर उससे लड़ने के लिए एंटी-बॉडी तैयार करता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर आपका शरीर एंटी-बॉडी तैयार कर भी ले तो इसका मतलब यह नहीं है कि आगे जाकर फिर कभी कोरोना का अटैक हुआ तो वह एंटी-बॉडी उसे परास्त कर ही देगी।

उन्होंने कहा, 'लेकिन किसी भी वायरस के खिलाफ अगर कोई एंटी-बॉडी तैयार होती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह वायरस जब भी अटैक करेगा तो ऐंटि-बॉडी उसे परास्त कर देगी। यानी, एंटी-बॉडी दिखे तो भी यह नहीं कहा जा सकता है कि आप कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं होगे।'



पहले IGM फिर IGG, समझें क्या है चक्कर
उन्होंने इसे विस्तार से समझाते हुए बताया, 'हमारे शरीर में अगर कोई वायरस गया तो उससे लड़ने के लिए हमारा शरीर शस्त्र तैयार करता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में एंटी-बॉडी कहते हैं। एंटी-बॉडी वायरस के बिल्कुल उलट होती है। यह वायरस में चिपक जाती और वायरस नाकाम हो जाता है।' उन्होंने कहा कि एटी-बॉडी कई तरह की होती है। एक है आईजीएम जो शरीर में ज्यादा दिन नहीं रुकती, थोड़े दिन में यह चली जाती है। आईजीएम एंटी-बॉडी आती है तो इसका मतलब है कि संक्रमण कुछ वक्त पहले ही हुआ है। उन्होंने कहा, 'जब आईजीजी एंटी-बॉडी आएगी तो पता चलता है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है। लेकिन अगर सिर्फ आईजीजी एंटि-बॉडी दिखी और आईजीएम नहीं दिखी तो समझना चाहिए कि यह पुराना संक्रमण है।'



भारत आए 5 लाख रैपिड टेस्ट किट: ICMR
ICMR के प्रतिनिधि ने बताया कि देश में 5 लाख रैपिड टेस्टिंग किट आ गए हैं। उन्होंने कहा, 'दो किस्म के रैपिड टेस्ट किट आ चुके हैं। दोनों मिलाकर 5 लाख किट्स आए हैं। ल्यूजॉन और वॉनफ्लो के किट्स हैं। दोनों किट्स की सेंसेटिविटी 80 प्रतिशत से ज्यादा है। ये सिरॉलॉजिक किट्स हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'यह जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि जब रैपिड टेस्टिंग करेंगे तो ध्यान रखना होगा कि उन्हीं लोगों की बीमारी पकड़ पाएगी जिनमें संक्रमण थोड़ा पहले हुआ है, तुरंत नहीं। इसलिए रैपिड टेस्टिंग किट का इस्तेमाल रोगों की जांच के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि यह देखने के लिए होता है कि किसी खास क्षेत्र में वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा है या नियंत्रित है या घट रहा है।'



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